1.
आज मोर देश मा हे, चारो कोती बेईमानी,
बाढ़त मंहगाई ले, लोग परेसान हे।
पक्ष अउ विपक्ष मा, माते हावे झगरा ह,
जनता के हित बर, कोन ल धियान हे?
नेता मन मीठ मीठ, गोठ कर भुलवारे,
मजदूरी किसानी मा, छुटत परान हे।
झन कही बात सहीं, तही बैरी बन जाबे,
चोर पहरेदार के, बनगे मितान हे।
2.
छत्तीसगढ़ी भाखा ल, छत्तीसगढ़ म सँगी
राजभासा हक अब, देवाये ल परही।
उही कवि लेखक ह, रही इतिहास म जी,
जे निज भाखा बर, जिही अउ मरही।
जे हा बैरी मन के जी, पाँव तरी परे रही,
उही बेशरम चारा, चार दिन चरही।
कहे परसाद ह जी,हाथ जोड़ पाव पर,
मर जा तै हक बर, पुरखा ह तरही।
3.
मया मा बंधा के गोरी, मैं हा तोर चोरी चोरी,
कारी कारी नैनन म, नैन अरझाये हौं।
भूख प्यास लागे नहीं,जिहां देखो तोरे सहीं,
रही रही गली गली , चक्कर लगाये हौं।
अब कोनो ताना मारे, कोनो मोला भुलावारे,
तारे-नारे तारे-नारे, गीत तोर गाये हौं।
बइहा सही घुमथौ, नाचत अउ झुमथौ,
घूम घूम तोरे संग, पिरित लगाये हौं।
4
देश के भविष्य गढ़, पढ़-पढ़ पढ़-पढ़,
अनपढ़ झन रह , चल आगे बढ़ जी।
आखर के खेती कर, कर म कलम धर,
अंधियारा मेटे बर, डट कर लड़ जी।
उबड़ खाबड़ रद्दा, जिनगी के हावे तभो
उठ-गिर गिर-उठ, पाहड़ मा चढ़ जी।
अड़बड़ गड़बड़, चारो कोती मचे हे जी,
सम्हल के चल तँय, जिनगी ल गढ़ जी।
5,
अब कोनो ह काबर, हक बर लड़े नहीं,
जेला देख तिही अब, मुड़ ल नवाये हे।
डर डर डर डर, जियत हे मर मर,
अत्याचारी बैरी करा, सब ला लुटाय हे।
इही माटी हरे जिन्हां, वीर नारायण सिंह,
देश बर लड़ लड़ , शीश ल चढ़ाये हे।
गुंडाधुर जैसे वीर,बइरी के छाती चीर।
लहू के तरिया मा, तौर के नहाये हे।