हर पँछी ला दाना चाही।
ये सरकारी हुकुम हे खच्चित,
फांदा मा फँद जाना चाही।
लोकतंत्र के खुले खजाना,
देश भले लूट जाना चाही।
ये धरती मा जनम धरे हन्,
भाग अपन सगराना चाही।
बस स्कूल म नाँव लिखादिन,
पास सबो हो जाना चाही।
रेचका मेचका हगरु पदरू,
पढ़ लिख गे पद पाना चाही।
अस्पताल बर लइन लगावव,
हमला तो मयखाना चाही।
रिस्तेदारी बहुत निभा देन,
सब ल अपन घर जाना चाही।
हमर मया के कोन पुछारी।
सँगी ला सब भाना चाही।
टूट जथे सब दिन के सपना,
नींद घलो तो आना चाही।
मया करे अउ आँशु पाय,
अउ का तोला खजाना चाही।
फेर सँगी के सुरता आ गे,
चल प्रसाद अब गाना चाही।
2 टिप्पणियां:
गजब गुरुदेव जी
Bahut gahrai he sar baat ma
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