नित नवां बहाना चाही।
हमला तो मयखाना चाही।
अब चुनाव मा सब दल मिलके
पव्वा रोज पियाना चाही ।
तुमन कमाहूं पाँच साल जी,
हमला फ़ोकट खाना चाही।
वादा के हे काय भरोसा,
सोच समझ गुठियाना चाही।
रतिहा मँय सपना देखे हँव,
हरहा ला हर्जाना चाही।
आंख रहत जे बन गे अन्धरा,
वो मनखे मर जाना चाही।
डिस्पोजल हर मुड़ मा चढ़गे,
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