पढ़त पढ़त अब मति छरियागे, अउ कतका अखबार पढ़ौ ।
मन ला अतका भटकावत हे, काकर काकर सार पढ़ौ।
पढ़े लिखे मन निज स्वारथ मा, मानवता नीलाम करे।
जहर उगावय ये भुइयाँ मा, देश धरम बदनाम करे।
जात पात के भेद भाव ला, बगरावत दरबार पढ़ौ।
पढ़त पढ़त अब मति छरियागे, अउ कतका अखबार पढ़ौ।
खावत हावय मनखे ला अब, रक्सा हर महंगाई के।
पाई पाई खातिर होगे, बैरी भाई भाई के।
काकर गरदन कोन काटही, तानत हे तलवार पढ़ौ।
पढ़त पढ़त अब मति छरियागे, अउ कतका अखबार पढ़ौ ।
अप्पड़ मनखे जांगर पेरे, मिहनत के ये घानी मा।
सींच सींच के रोज पसीना,करजा लुवव किसानी मा।
सत्ता के सँग फुगड़ी खेलत, फलत फुलत बैपार पढ़ौ।
पढ़त पढ़त अब मति छरियागे, अउ कतका अखबार पढ़ौ ।
बबा ह कहिथे मनखे पढ़लिख, हो जाथे हुसियार बने।
सीख जथे सिधवा मनखे तक, चुहके बर कुसियार बने।
महुँ बने बर रस चुहकइया, बन जावव सरकार पढ़ौ।
पढ़त पढ़त अब मति छरियागे, अउ कतका अखबार पढ़ौ।
सड़क तिरन के खेत बेचागे, सुनथव कीमत भारी हे,
सहर लिलत हे हमर गांव ला, रुख राई तीर आरी हे।
बेजा कब्जा भूमि माफिया, माते हाहाकार पढ़ौ।
पढ़त पढ़त अब मति छरियागे, अउ कतका अखबार पढ़ौ।
सतवंता हर फाँसी चढ़गे, फेर मिलही अब न्याय कहाँ।
कोट कचहरी पुलिस दरोगा, खोजय चारा पाय कहाँ।
लहू सनाये बेवस्था मा, मँय कतका चीत्कार पढ़ौ।
पढ़त पढ़त अब मति छरियागे, अउ कतका अखबार पढ़ौ।
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