कारी मोटियारी टूरी रोपा लगात हे ।।
असाढ के बरसा
मा तन ला भिजोए,
अवइया सावन के सपना सजात हे ।।
धान के थरहा
ला धर के मुठा मा,
आज अपन भाग ला सिरतोन सिरजात हे ।।
भूख अउ पियास
हा तन ला भुला गे हे,
जांगर के टूटत ले गउकिन कमात हे ।।
मेहनत के
देवता ला आज मनाए बर,
माथ के पसिना ला एडी मा चुचवात हे ।।
सावर देह मा
चिखला अउ माटी के,
श्रृगार हर मोर संगी कइसन सुहात हे ।।
भिजे ओनहा ला
सरीअंग मा लपेट के ,
कोन जानी कोन धन ला छुपात हे ।।
सुरूर सुरूर
चारो कोती चलत पुरवाई मा,
गोरी के जाड मा ओठ कपकपात हे ।।
सिर तोन कहत हव कवि देखके वोला ,
तन मा लगत हे आगी मन हा जुडात हे ।।
महादेव लागत हे जइसे आज पारवती के,
प्रेम मा मतंग हो के मदरस बरसात हे ।।
कभू खिलखिला के हासे करे रे ठिठोली,
कोन जनी का सोच के मने मन लजात हे ।।
गीत गा के
मनमोहनी हिरदे मा हुक मारे,
अउ कभू नाचे सही कनिहा डोलात हे ।।
देख के रूप
गोरी के मय हो गेव पानी पानी,
देख के देखत मोला मुड ला नवात हे ।।
ताना मारे
सहीं अपन संगी संगवारी मन ला,
कोन जाने कोन भाखा म काय समझात हे ।।
जतिक तउरत हौ
मै हा डूब डूब मरत हावव,
प्यास मोर काबर आज नई सिरात हे ।।
गुरू मोर मन
ला छोड आज कहां चलदे तै,
अब मोला कोनो नहीं रददा बतात हे ।।
मथुरा प्रसाद
वर्मा ‘ प्रसाद’
gurturgoth मा घलो हे