मीठलबरा के गोठ ह चलथे।
सिरतोन कहे म जम्मो उसलथे।
करम कमाई कोनो नई पूछय,
बेईमानी के सिक्का चलथे।
उही बनाते इहाँ सड़क ल,
खा के डामर पेट ह पलथे।
कानून कायदा, खेलवारी होंगे
मतलब परगे साचा म ढलथे।
राजनीती के चिक्कन रद्दा
सोजमतिहा के पांव खसलथे ।
झपट परे सब गुर कस चाटा,
जे नई पावय हाथ ल मलथे।
उहि ह पाथे ठीहा ठिकाना
गिरे परे म घलो खासलथे ।
धीरज धर चल परसाद सरलग,
दौड़ाइए हर हपट के मरथे।
मथुरा प्रसाद वर्मा प्रसाद