मेरे बारे में

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कोलिहा लवन , बलौदाबजार, छत्तीसगढ, India
नाम- मथुरा प्रसाद वर्मा पिता- स्व. जती राम वर्मा माता- श्रीमती पितरबाई वर्मा जन्मतिथि- 22-06-1976 जन्मस्थान - ग्राम -कोलिहा, जिला-बलौदाबाजार (छ ग ) कार्य - शिक्षक शा पु मा शाला लहोद, जिला बलौदाबाजार भाटापारा शिक्षा - एम् ए ( हिंदी साहित्य, संस्कृत) डी एड लेखन- कविता, गीत, कहानी,लेख,

गीत : गाड़ी आही जब टेसन मा सबला चढ़ के जाना हे।





ये दुनियाँ  इक गाड़ी टेशन,
पल दु पल सुस्ताना हे।
गाड़ी आही जब टेशन मा,
सब ला चढ़ के जाना हे।

कोन रहे बर आय इहाँ हे,
काकर इहाँ ठिकाना हे।
गाड़ी आही जब टेशन मा,
सब ला चढ़ के जाना हे।

अपन करम के गठरी बाँधे,
रद्दा खर्ची राख बने।
खीसा  टमरय घेरी बेरी, 
टमर टमर के फेर गने।

कतको मन हर ब्याकुल हावे, 
डर मा चोर लुटेरा के।
ताकत हावय  घड़ी ल कतको
गाड़ी आये बेरा के।

टिकिस कटा के करत अगोरा,
भीड़ इहाँ मनमाना हे।
गाड़ी आही जब टेशन मा,
सब ला चढ़ के जाना हे।

ककरो ककरो रिजर्वेशन हे,
स्लीपर ऐसी कोच म।
वेटिंग वाले टिकिट धरे हे,
कतको हे परे सोच मा।

जनरल वाला धक्का खा खा
खड़े खड़े पछताही।
जेकर जइसे करम कमाई,
सीट ल वइसन पाही।

कतको झन हा बिना टिकिट के,
जाही करत बहाना हे।
 




कुण्डलिया : जूता मार

लम्पट लबरा लालची, स्वार्थी अउ मक्कार।
बात बोलबे बाद में, पहली जूता मार।
पहली जूता, मार नहीं ते, मुड़ चढ़ जाही।
गाँव गली घर, रिश्ता नाता, आग लगाही।
मार दु थपरा, पाट जमो ला, खन के डबरा।
बात बना के, फेर फसाही, लम्पट लबरा।

रूपमाला : मोर गुरुवर

गुरु वंदना

वंदना गुरु आपके पग, मा करँव कर जोर।

कर कृपा आशीष दे दव, प्रार्थना हे मोर।

जेन पाए ये चरणरज, जिंदगी तर जाय।

हँव खड़े प्रभु आश करके, कब कृपा हो जाय।


मान गुरु के बात जिनगी भर नवा के माथ।

हर बिपत ले जे उबारे, वो धरे हे हाथ।

एक अँगरी के इशारा, हा उहाँ पहुचाय।

खोज मा जेखर भटकते, ये उमर खप जाय।


मँय सुने हँव मोर गुरु के, हाथ पारस आय।

जेन पथरा हा छुवाये, सोन वो हो जाय।

अर्थ पाइस मोर जिनगी, साथ पा के तोर।

पाय हँव जब ले चरणरज, भाग खुलगे मोर।


व्यर्थ भटकत शब्द मन ला दे सके नव अर्थ।

अर्थ के सार्थक गठन बर, होय जेन समर्थ।

जे सदा परमार्थ खातिर, ही करे कविकर्म।

हे उही हकदार कविपद के बताए धर्म।


गुरुचरण मा सीख मिलथे, गुरु कहे मा ज्ञान।

गुरु बिना अँधियार लागे, ये जगत दिनमान।

एक अँगरी के इशारा, गुरु कृपा जब पाय।

हर कठिनपथ हा बताए ले सरल हो जाय।


पाँख जामे ले उड़े बर, हौसला नइ आय।

ये जमाना के चकाचक रोशनी भटकाय।

भागथे पल्ला सबोझन, कोन मंजिल पाय।

देख अँगरी ला गुरु के, चल सफल हो जाय।


मँय खड़े मजधार मा हँव, कोन करही पार।

हे लहर बड़ तेज अउ छाँय हे अँधियार।

कुछ समझ नइ आत हावय राह अब देखाव।

मोर गुरुवर हाथ धर के, पार मा ले जाव।


हे कठिनपथ साधना के, बिन थके चल पाय।

पाँव मा काँटा गड़े के बाद भी मुस्काय।

रोंठ गुरु के पोठ चेला, हा कहाँ घबराय।

टोर के सब पाँव बँधना, सोज चलते जाय।

(साधना गुरुज्ञान पाके, पोठ होते जाय।)



एक मन के हे भरोसा, एक हे विश्वास।

जब बिपत हर घेर लेही, टूट जाही आस।

मोर गुरुवर हाथ धर के, लेगही वो पार।

वो कभु नइ हाथ छोड़य, छोड़ दय संसार।


गुरु बताए सोज रद्दा, चल सको ते आव।

मेहनत दिनरात कर अउ झन कभू सुस्ताव।

हे सफलता के मरम ये, जान लव सदुपाय।

कर सकय जे साधना सिरतोन मंजिल पाय।

गीत : अउ कतका अखबार पढ़ौ ।


पढ़त पढ़त अब मति छरियागे, अउ कतका अखबार पढ़ौ ।
मन ला अतका भटकावत हे, काकर काकर सार पढ़ौ।

पढ़े लिखे मन निज स्वारथ मा, मानवता नीलाम करे।
जहर उगावय ये भुइयाँ मा, देश धरम बदनाम करे।
जात पात के भेद भाव ला, बगरावत दरबार पढ़ौ।
पढ़त पढ़त अब मति छरियागे, अउ कतका अखबार पढ़ौ।

खावत हावय मनखे ला अब, रक्सा हर महंगाई के।
पाई पाई खातिर होगे, बैरी भाई भाई के।
काकर गरदन कोन काटही, तानत हे तलवार पढ़ौ।
पढ़त पढ़त अब मति छरियागे, अउ कतका अखबार पढ़ौ ।


अप्पड़ मनखे जांगर पेरे, मिहनत के ये घानी मा।
सींच सींच के रोज पसीना,करजा लुवव किसानी मा।
सत्ता के सँग फुगड़ी खेलत, फलत फुलत बैपार पढ़ौ।
पढ़त पढ़त अब मति छरियागे, अउ कतका अखबार पढ़ौ ।

बबा ह कहिथे मनखे पढ़लिख, हो जाथे हुसियार बने।
सीख जथे सिधवा मनखे तक, चुहके बर कुसियार बने।
महुँ बने बर रस चुहकइया, बन जावव सरकार पढ़ौ।
पढ़त पढ़त अब मति छरियागे, अउ कतका अखबार पढ़ौ।

सड़क तिरन के खेत बेचागे, सुनथव कीमत भारी हे,
सहर लिलत हे हमर गांव ला, रुख राई तीर आरी हे।
बेजा कब्जा भूमि माफिया, माते हाहाकार पढ़ौ।
पढ़त पढ़त अब मति छरियागे, अउ कतका अखबार पढ़ौ।

सतवंता हर फाँसी चढ़गे, फेर मिलही अब न्याय कहाँ।
कोट कचहरी पुलिस दरोगा, खोजय चारा पाय कहाँ।
लहू सनाये बेवस्था मा, मँय कतका चीत्कार पढ़ौ।
पढ़त पढ़त अब मति छरियागे, अउ कतका अखबार पढ़ौ।

मनहरण घनाक्षरी



येती वोती  चारो कोती, बोलो जी काकर सेती,
भ्रष्टाचार के ये खेती, हा लहलहात हे।।
योजना ला सरकारी, नेता अउ अधिकारी, 
मिल बाँट आरी पारी, दिनरात खात हे।।
बादर मा बना बरी, ठठा के करम मरी,
काकर भरोसा करी, समझ न आत हे ।।
जिनगी के मारा मारी, भाजी भाटा तरकारी,
मँहगी होवत भारी, मनखे लुलुवात हे।।


नदी मा उफान आय, आंधी या तूफान आय,
कोनो हर पार नइ, पाए मजधार ले।
ऋषि मुनि जोगी मन, संसारी व भोगी मन,
कोन बाँच पाय नहीं, नैना के कटार ले।
जीव के जंजाल हरे, मनखे के काल हरे,
तब ले झपाय मरे, आदमी अजार ले।
कतको बचाबे भले, पड़ जाथे तभो गले,
कोनो बाँच पाय नही, जवानी म प्यार ले।


तोर मया मोहनी रे, जोग हरे जोगनी रे, 
जानबुच  ठगनी रे, तोर ले ठगाय हँव।।
नैना तोर कजरारे, मोहनी मंतर मारे,
करके भरोसा वा रे,भारी धोखा खाय हँव।।
गुनत रेहेंव काली, छू के ओठ के वो लाली, 
मया म वो मतवाली, तोर काय पाय हँव।।
अतके हे लेना देना, जब ले छुएव है ना,
तोर सँग फुलकैना, महुँ ममहाय हँव।।

गीत : फोकट खाये के चक्कर म


फोकट खाये के चक्कर मा, होगे बारा हाल।
लालच मा पर के जनता हा, होवत हवे अलाल।

मिहनत के अब खून पछीना, नइ पावत हे मान।
लम्पट मन सब अटियावत हे, महल अटारी तान।
ठलहा बइठे जीभ चलइया, ऊंचा  पीढ़ा पाय।
मिहनत के देवता ह रोवय, बइठे मुड़ ठठाय।

रोजी रोटी नोहर होगे, सिरिफ चलत हे गाल।
फोकट खाये के चक्कर मा, होगे बारा हाल।

कर्जा ले ले घीव पियत हे, सुख भोगे भरपूर।
भावी पीढ़ी के सपना हर, होही चकनाचूर।
राजनीति सौखी मारत हे, फेंक कोडहा  देख।
मछरी मन के भाग म मरना, लिखत विधाता लेख।

आँखी राहत अँधरा हो के, देखत नइ हन जाल।
फोकट खाये के चक्कर मा, होगे बारा हाल।

कागज मा छम छम नाचत हे, सबो योजना खूब।
गाँव गली बस पहुँचे नारा,  धन हर जाथे डूब।
भ्रष्टाचार ह सड़क बनाथे, बइमानी हर पूल।
वादा के का मरजादा हे, पल मा जाथे भूल।

तभे कोलिहा सत्ता पाथे, रेंग टेडगा चाल।
फोकट खाये के चक्कर मा, होगे बारा हाल।

गजल : मानथे कइसे

कोन तोला जानथे अउ मानथे कइसे।
जान जाबे देख हाका पारथे कइसे।

का हे मन मा जानना हे कब सुवारी के,
देख ले रोटी बनावत सानथे कइसे।

जे मया मा मार खाके भी डटे रहिथे,
वो मयारू ले मया मा हारथे कइसे।

घाव जादा अउ पिराथे जान जाए ले,
बान सँगवारी लुका के तानथे कइसे।

कोन बेटा के अयासी देख पाथे ये,
बाप दू पइसा कमा के लानथे कइसे।

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