येती वोती चारो कोती, बोलो जी काकर सेती,
भ्रष्टाचार के ये खेती, हा लहलहात हे।।
योजना ला सरकारी, नेता अउ अधिकारी,
मिल बाँट आरी पारी, दिनरात खात हे।।
बादर मा बना बरी, ठठा के करम मरी,
काकर भरोसा करी, समझ न आत हे ।।
जिनगी के मारा मारी, भाजी भाटा तरकारी,
मँहगी होवत भारी, मनखे लुलुवात हे।।
नदी मा उफान आय, आंधी या तूफान आय,
कोनो हर पार नइ, पाए मजधार ले।
ऋषि मुनि जोगी मन, संसारी व भोगी मन,
कोन बाँच पाय नहीं, नैना के कटार ले।
जीव के जंजाल हरे, मनखे के काल हरे,
तब ले झपाय मरे, आदमी अजार ले।
कतको बचाबे भले, पड़ जाथे तभो गले,
कोनो बाँच पाय नही, जवानी म प्यार ले।
तोर मया मोहनी रे, जोग हरे जोगनी रे,
जानबुच ठगनी रे, तोर ले ठगाय हँव।।
नैना तोर कजरारे, मोहनी मंतर मारे,
करके भरोसा वा रे,भारी धोखा खाय हँव।।
गुनत रेहेंव काली, छू के ओठ के वो लाली,
मया म वो मतवाली, तोर काय पाय हँव।।
अतके हे लेना देना, जब ले छुएव है ना,
तोर सँग फुलकैना, महुँ ममहाय हँव।।