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ये जिनगी तोर करजा ला, बहुत रो रो चुकाए हन।
कहाँ जाना रिहिस हमला,कहाँ आ के थिराये हन।
भियाँ मा गोड नइ माढ़य,मया के सोर जब मिलथे,
हपट जाथन कभू गिरथन,कभू उठ के लजाये हन।
मया जेला घलो मिलथे, मया के मोल नइ जानय,
समझ के बात हे लेकिन समझ ये कोन पाए हन।
मुहब्बत चार दिन के अउ उमर भर के जुदाई हे,
तभो ले रास्ता जोहत सरी जिनगी सिराये हन।
खबर अखबार ला पढ़ के, ये दुनियाँ लागथे जंगल,
कभू कोई शेर नइ जानय,कि कइसे राज पाए हन।
सियासत का जतन करथे,कि मनखे भेड़ हो जाथे,
सबो जानत बुझत हन अउ,तभो आ के झपाये हन।
मजा ये बात मा आथे, हमर जे खात पीयत हे,