साँस मोरे जब जुड़ाए, तोर अचरा पाँव।
जब जनम लौं मँय दुबारा, तोर ममता छाँव।
मोर दाई तोर बर मँय, हाँस के दँव प्रान।
हम रहन या मत रहन वो, तोर बाढ़य मान।।
तोर सुरता अब बही रे, नैन बर बरसात।
ढेंकना कस सोय दसना, चाबथे दिन रात।
तँय करे चानी करेजा , साथ छोड़े मोर।
मँय उही रद्दा म करथौं , अब अगोरा तोर।।
आज तक देखव न सपना, यार तोरे बाद।
मँय मया बर काकरो अब , नइ करँव फरियाद।
तोर सुरता ला सजाके,पूजथौं दिनरात।
रोज करथे मोर कविता, तोर ले अब बात।।
हाँसती मुँह तोर चन्दा आज ले भरमाय ।
मोर ले झन पूछ मँय हा का मया मा पाय।
मँय बने बइहा मया के गीत गाथव तोर।
अउ तहीं हा प्यार ला खेलवार कहिथस मोर।
मन भितर के रोग जाने कोन बइगा हाल।
तोर हाँसी मोर होगे जान के जंजाल ।
का बतावव का हरे रे मोर मन के पीर।
तोर माया मोर बर होगे हवे कश्मीर।
अब मया के मोल का हे, तोर बर तँय जान।
देख के सपना सदा मँय हारथव दिनमान।
का बिधाता खेल करथे , जान पाए कोन।
भाग मा काकर लिखाये , लेग जाए कोन।
मन भटकथे रे मरुस्थल, नइ मिलय अब छाँव।
खोजथौं मँय बावरा बन, अब मया के गाँव।
डगमगाथे मोहनी रे, मोर अब विस्वास।
कोन जाने कब बुताही, मोर मन के प्यास।
तोर खातिर मोर जोड़ी, कोन पारा जाँव।
कोन तोरे घर बताही, कौन तोरे नाँव।
तँय बतादे सावरी रे, मोर सपना सार।
कोन होही मोर सोये, नींद के रखवार।।
गाँव देथे तब सहर हर, पेट भरथे रोज।
गाँव हर बनिहार होगे, सहर राजा भोज।
गाँव सिधवा मोर हावे, अउ शहर मक्कार ।
आदमी के खून चूसे, रोज ये बाजार।।
तोर बिन ये जिंदगानी, हे कुलुप अँधियार।
मोर जम्मो साधना ला, तँय करे साकार।
मँय उहाँ तक जा सकत हँव, हाथ थामे तोर।
भूमि ले अगास मिलथे, जब छितिज के छोर।।
मोर गुरुवर के कृपा दे दिस हवे सद्ज्ञान।
मोह बँधना मा परे मँय, राह ले अनजान।
गुरु चरण मा मँय नवा के, राख दे हँव माथ।
भाग मोरो जाग गे हे, अब करम के साथ।।
ये चरन मा राख मोला , तँय बढ़ाये मान।
रोज सेवा कर सकव मँय, तोर हे भगवान।
तँय बनाये मोर माटी आदमी के रूप।
पोठ करदे तँय पका के, ज्ञान के दे धूप।।
मोर हे शुभकामना हो , जिंदगी खुशहाल।
आपके सूरज सही मुख, होय लालेलाल।
मोंगरा कस तोर खुसबू आज हे ममहाय
आज गुरुजी आप ला मोरो उमर लग जाय।
जान जाए फेर मोला, देश खातिर आज।
बात अइसन बोलना हे, खोल ले आवाज।।
बाद मा बइरी ल होही, जे सजा तँय यार।
देश के गद्दार मन ला, आज गोली मार।।
जेन थारी खाय छेदय, अब उही ला लोग।
जेल मा हे फेर भोगे, रोज छप्पन भोग।
कोन हे आतंकवादी, मन घलो के साथ।
खोज के वो लोग मनला, आज कातव हाथ।
मोर माटी ला उही मन, नइ लगावै माथ।
जेन बैरी के मितानी, बर करत हे घात।
साँप बन के लील देथे, देश के सुख चैन।
अब गटारन खेलबो रे, हेर उखरे नैन।
छोड़ दे तँय आलसी ला, बात सुनले मोर।
मेहनत के संग आही,गाँव मा अब भोर।
हमन शिक्षा जोत घर घर,चल जलाबो यार।
लोग लइका हमर पढ़ के, बन जही हुसियार।
खींच लानिस तीर सबला , तोर सुरता आज।
तोर सुग्घर गीत कविता, मोहनी आवाज।
कोन कहिथे तँय चलेगे, छोड़ के संसार।
गीत तोरे ले जही तोला समय के पार।
भीख नइ माँगय कभू भी आपले बनिहार।
हाथ ला दे काम के तँय, साल भर अधिकार।
हम कमाथन टोर जाँगर ,दे अपन मन प्राण।
हाथ मा छेनी हथौड़ी , देश नव निर्माण।
कोन जनता के सुनत हे वोट दे के बाद।
बाढ़गे कांदी भकाभक चूसथे सब खाद।
सब कमीशन खात हे जी, बाँट के भरपूर।
चोर नेता भष्ट अफसर,न्याय चकनाचूर।
कोन सच के राज खोलय, चुप हवे संसार।
जेन जनता बर लडत जी, पोठ खावय मार।
न्याय कारावास भोगय, हो जथे बीमार।
जब कलम मजबूर हो के, नाचथे दरबार।
जेन ला रखवार राखन, हे उही मन चोर।
कोन जाने अब कहाँ ले, गाँव आही भोर।
पेज पसिया बर लड़त हम, जिन्दगी भर रोन ।
मोर बाँटा के अँजोरी , लेग जाथे कोन ?
जोगनी बन जेन लड़थे, रात भर अँधियार।
वो बिहिनिया मान जाथे, रोशनी ले हार।।
कोंन जाने कब सिराही,देश मा संग्राम।
रार ठाने हे भरत हा, रोय राजा राम।।
गाँव मोरो आज होतिस, सब डहर खुशहाल।
अब किसानी मा कमाई, होय सालोसाल।
चाहिये ना गाँव ला जी, काकरो उपकार।
बस फसल के मोल दे दय, अब बने सरकार।
गाँव देथे तब सहर हर, पेट भरथे रोज।
गाँव हर बनिहार होगे, सहर राजा भोज।।
गाँव सिधवा मोर हावे, अउ शहर मक्कार ।
आदमी के खून चूसे, रोज ये दरबार ।।
हाथ ला दे काम के तँय, साल भर अधिकार।
भीख नइ माँगन कभू हम हन भले बनिहार।।
हम कमाबो टोर जाँगर ,दे अपन ये प्राण।
हाथ धर छेनी हथौड़ी , देश बर निर्माण।।
साँझ दे के आन ला मँय हर बिसाथव घाम।
साँस चलही मोर जब तक नइ करँव आराम।।
ले किसानी छोंड़ के आ सहर मा तोर।
मँय किसानी ला करे बर लें उधारी तोर।
( कोन कर्जा ला चुकाही जान जाथे मोर।।)
( मँय किसानी छोड़ आ गें अब सहर मा तोर।)
हे शरद के पूर्णिमा मा, चंद्रमा हर गोल।
आज चंदा हा धरे हे , रूप जी अनमोल।।
हे जगत के जीव मन बर,मोहनी कस रात।
ओस बन के आज अमरित, बरसथे बरसात।।
कैद होगे आज बचपन, अउ जवानी मोर।
होत हे काबर अकेल्ला, अब बुढापा तोर।।
कोन घर मा बाँध देथे , खींच के दीवार।
आज मोबाइल तको तो, बाँटथे परिवार।।
मुड़ म बाँधे लाल पागा, डोकरा हरसाय।
आज नाती के बराती, बर बबा अघुवाय।।
हे कहाँ अब डोकरी हा, डोकरा गे भूल।
छोकरा बन अब गली मा, बाँटथे जी फूल।।
रूप अइसन हे सजाए, सालहो सिंगार।
लान दे ना डोकरी बर, डोकरा तँय हार।।
हे रचाए हाथ मेहदी, अउ महावर पाँव।
ओठ में लाली लगा के,घूमे सारा गाँव।।
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