गुरु वंदना
वंदना गुरु आपके पग, मा करँव कर जोर।
कर कृपा आशीष दे दव, प्रार्थना हे मोर।
जेन पाए ये चरणरज, जिंदगी तर जाय।
हँव खड़े प्रभु आश करके, कब कृपा हो जाय।
मान गुरु के बात जिनगी भर नवा के माथ।
हर बिपत ले जे उबारे, वो धरे हे हाथ।
एक अँगरी के इशारा, हा उहाँ पहुचाय।
खोज मा जेखर भटकते, ये उमर खप जाय।
मँय सुने हँव मोर गुरु के, हाथ पारस आय।
जेन पथरा हा छुवाये, सोन वो हो जाय।
अर्थ पाइस मोर जिनगी, साथ पा के तोर।
पाय हँव जब ले चरणरज, भाग खुलगे मोर।
व्यर्थ भटकत शब्द मन ला दे सके नव अर्थ।
अर्थ के सार्थक गठन बर, होय जेन समर्थ।
जे सदा परमार्थ खातिर, ही करे कविकर्म।
हे उही हकदार कविपद के बताए धर्म।
गुरुचरण मा सीख मिलथे, गुरु कहे मा ज्ञान।
गुरु बिना अँधियार लागे, ये जगत दिनमान।
एक अँगरी के इशारा, गुरु कृपा जब पाय।
हर कठिनपथ हा बताए ले सरल हो जाय।
पाँख जामे ले उड़े बर, हौसला नइ आय।
ये जमाना के चकाचक रोशनी भटकाय।
भागथे पल्ला सबोझन, कोन मंजिल पाय।
देख अँगरी ला गुरु के, चल सफल हो जाय।
मँय खड़े मजधार मा हँव, कोन करही पार।
हे लहर बड़ तेज अउ छाँय हे अँधियार।
कुछ समझ नइ आत हावय राह अब देखाव।
मोर गुरुवर हाथ धर के, पार मा ले जाव।
हे कठिनपथ साधना के, बिन थके चल पाय।
पाँव मा काँटा गड़े के बाद भी मुस्काय।
रोंठ गुरु के पोठ चेला, हा कहाँ घबराय।
टोर के सब पाँव बँधना, सोज चलते जाय।
(साधना गुरुज्ञान पाके, पोठ होते जाय।)
एक मन के हे भरोसा, एक हे विश्वास।
जब बिपत हर घेर लेही, टूट जाही आस।
मोर गुरुवर हाथ धर के, लेगही वो पार।
वो कभु नइ हाथ छोड़य, छोड़ दय संसार।
गुरु बताए सोज रद्दा, चल सको ते आव।
मेहनत दिनरात कर अउ झन कभू सुस्ताव।
हे सफलता के मरम ये, जान लव सदुपाय।
कर सकय जे साधना सिरतोन मंजिल पाय।