छप्पय =रोल+उल्लाला।
रच-रच रच-रच आय,
सड़क मा बइला गाड़ी।
गाँव गँवतरी जाय, करँय
जी खेती बाड़ी ।
घन्नर घेंच बँधाय,
बाजथे घनघन घनघन।
दउड़त सरपट जाय,
हवा कस सनसन सनसन।
आज नँदागे हे सबो,
बइला गाड़ी छाँव रे।
मोटर गाटा भागथे,
तब ले सुन्ना गाँव रे।
भ्रष्टाचारी आज, बेच के देश ल खावय।
सब होगे बइमान, कोन हा देश बचावय।
कव्वा कुकूर बाज, सहीं सब माँस चिथइया।
जनता रोवय रोज, कोन हे हमर बचइया ।
रखवारी कर देश के, नेता मन ले आज रे।
बेचत हे बइमान मन , महतारी के लाज रे ।
नाली भरगे हाय, सरे कस बस्सावत हे।
कोन ह करही साफ, समझ मा नइ आवत हे।
कचरा के हे ढ़ेर, फेर ये झिल्ली पन्नी।
लाखों होगे पार, फेक के चार चवन्नी।
कचरा भ्रष्टाचार के, लेसव अब चतवार के।
धर बहरी सब साफ कर, बेरा हे इंसाफ कर।
वादा के भरमार चार, दिन चलही संगी।
टकली बर सरकार, लान के देही कंघी।
अब चुनाव हे पास, खास हो जाही जनता।
नेता आही गाँव, पेट भर खाही जनता।
जनता के हर बात ला, दार साग अउ भात ला।
नेता मन भरमाय रे, देश बेंच के खाय रे।
आशा अउ बिस्वास, माँग के कोन हा पाथे।
करम करइया हाथ, भाग अपने सिरजाथे।
पर के आसा छोड़, जेन दिन आघु बढ़बे।
अपने हाथे गोड़, चला के पाहड़ चढ़बे।
आलस तज दे बीर बन, करम कमा रणधीर बन।
हर बाधा ला टार दे, जिनगी ला चतवार दे।
चोवा चंदन पोत, पात के घर घर जाथे।
धरम करम के नाँव, डरा के दान कराथे।
काम करय ना काज, हमर मति ला भरमाथे।
होथे जाँगर चोर, माँग के जेन ह खाथे।
पोंगा पंडित आज रे, बन जाथे महराज रे।
डरना का भगवान ले, ठग जग ला पहिचान ले।
आँटे पैरा डोर, बइठ के खटिया जिनगी।
बेंचत चलथे चाय, तलत हे भजिया जिनगी।
काम करे का लाज, काम छोटे झन जानव।
मिहनत ले मिल जाय, भाग के अपने मानव।
खाय बइठ के ठेलहा, अउ जादा अटियाय जी।
बड़े बड़े धनवान तक, बखत म धोखा खाय जी।
रोना रोए आज, करम के गठरी बाँधे।
संसो के तँय साग, अपन जिनगी भर राँधे।
काम करे ना काज, काय तँय हक मा पाबे।
फैला के तँय हाथ, झोंकवा अन्न ल खाबे.
अपने माथा पीट के, अपन भाग जे रोय जी।
बइठाँगुर के हाथ मा, धन राखे ना कोय जी।
भूखे हम रह जान, कमाथन रोजे तब ले।
गड़थन डर के हाय, गोड़ मा काँटा हब ले।
चिरहा हमरे भाग, ढ़ाक के तन दूसर के।
मरथन भूख म फेर, नहीं हक मारन पर के।
छत्तीसगढ़िया सोज रे , मरथे पर बर रोज रे।
अपन मनाथे जोग रे, बाँटय छप्पन भोग रे।
मया ला काबर मोर, नहीं तँय जाने बइरी।
मन मा करथे सोर, पाँव के तोरे पइरी।
निरदइया तोर नैन, करेजा चानी चानी।
परथौ पइयाँ तोर, करे कर झन मनमानी।
बइहा होगे हे टुरा , कइथे जम्मों गाँव रे।
जाही मोरे जान हा , ले के तोरे नाँव रे।
अब तो तँय ललकार, उठा के हाथ अपन ला।
माँगे ले कर जोर, मिलय हक नहीं हमन ला।
कब तक करन गोहार, पाँव मा माथ नवाँ के।
हक पाये बर यार, देखबो जान गवाँ के ।
हाथ जोड के हार अब, नइ मानन सरकार अब।
तोर भरम अब तोड़बो, हम हक ले के छोड़बो।

