हद ले जादा बाढ़त हावय, निस दिन अत्याचार कका।
मुड़ी नवाँ के करन मजूरी, तब ले खाथन मार कका।
ललकारे के बेरा आगे, छोड़ अभी जोहार कका।
जे बैरी हा उतलँग करथे, खिच के लवड़ी मार कका।
छतरी कुल के कुलदीपक हम, बड़े बड़े निपटाए हन।
अब का होगेे काकर डर मा, बइठे मुहूं लुकाए हन।
जबले छुटगे हमर हाथ ले, मुरचा खावत धार काका।
पजा डार अब बेरा आगे, कहाँ करे तलवार कका।
लक्ष्मीबाई नाम सुने हन, झाँसी वाली रानी के।
हक के खातिर लड़ के मरगे, पूत उही बलिदानी के।
बरछी भाला गिरवी धर के, बन गे हन बनिहार कका।
फेर मान ला नइ बेचे हन, बिक गे खेती खार कका।
वीर शिवाजी के गाथा ला, अब ले नहीं भुलाए हन।
हमी समर मा रार मचा के, लहू धार बोहाये हन।
हमर लहू का पानी होगे, जाँगर खाय दियार कका।
करै कोलिहा मन हर कइसे, बघवा ऊपर वार कका।
परबुधिया बन कब तक रहिबो , गँवा अपन चिन्हार कका।
गाँव गली घर पर के कब्जा, हमन सिरिफ रखवार कका।
हमर बाट ला छेकत हावय, बगरन्डा भरमार कका ।
काँटा खूंटी काट काट के , बाट अपन चत्वार कका।

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