रोला छन्द - मथुरा प्रसाद वर्मा
जिनगी के दिन चार, बात ला मोरो सुनले।
माया ये संसार, हरे रे संगी गुन ले।
जोरे हस जे नाम, तोर माटी हो जाही।
तोरे धन भरमार, काम नइ कोनों आही।
बाँधे पथरा पेट, कभू झन कोनों सोवय।
भूखन लाँघन लोग , कहूँ मत लइका रोवय।
दे दे सब ला काम, सबों ला रोजी रोटी ।
किरपा कर भगवान, मिलय सब ला लंगोटी ।
नेता खेलय खेल, बजावय जनता ताली ।
जरय पेट मा आग, खजाना होगे खाली ।
फोकट चाउर दार, बाँट के गाल बजावय।
राजनीत हर आज , सबो ला पाठ पढ़ावय।
धन बल कर अभिमान, आज झन मनखे नाचय ।
पर के घर ला लेस, छानही काकर बाँचय ।
काँटा बों के कोन , फूल ला भाग म पाथे ।
अपन करम बोझ, सबे हा इहे उठाथे ।
पर के आँशु पोंछ, हाँस के मन ला जोरय
खावय सब ला बाँट, मया रस बात म घोरय
मनखे उही महान, जेन परहित मर जाथे ।
पर दुख देखय रोय, उही सुख मन मा पाथे ।
जाँगर पेरय रोज, घाम मा तन ला घालय ।
जेखर बल परताप, काँप के पथरा के हालय ।
माथ बिपत के नाच, करम के गाना गाथे ,
उदिम करइया हाथ, भाग ला खुद सिरजाथे ।
जूता चप्पल मार, फेंक के वो मनखे ला।
खन के गड्ढा पाट, चपक दे माटी ढेला।
जेन देश के खाय, उहे गद्दारी करथे।
चाटय बैरी पाँव, देश के चारी करथे।
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