मुट्ठी भर के दान अउ, दाता कस अभिमान।
देने वाला मन कभू, नइ छोड़य पहिचान।
नइ छोड़य पहिचान, जेन मन जी भर देथे।
मगरमच्छ कर रोय, तेन मन सेल्फी लेथे।
स्टेटस ये चमकाय, नेट मा शेयर कर के।
लाइक पावय लाख, दान दे मुठ्ठी भर के।
जिनगी मा सब मौज हे, उखरे चारोखूट ।
भरे हवे भंडार ला, जेन मचा के लूट।
जेन मचा के लूट ,भरे हे अपन खजाना।
उखरे बर सरकार , रोज के डारय दाना।
परे रथे दरबार, पाँव मा उखरे जब तब।
बिपत कहाँ छू पाय, मजा हे जिनगी मा सब।
भय भर के सामाज मा, मार मचाये लूट।
जन गण मन शोषित हवे, देश म चारोखूंट।
देश म चारोंखूंट, झूठ हा पाँव पसारे।
सत हर लाँघन पेट, फिरत हे मारे मारे।
हाँसय भ्रष्टाचार, जीभ ला लप लप कर के।
मनखे सिधवा हाय, मरत हे मन भय भर के।