मेरे बारे में

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कोलिहा लवन , बलौदाबजार, छत्तीसगढ, India
नाम- मथुरा प्रसाद वर्मा पिता- स्व. जती राम वर्मा माता- श्रीमती पितरबाई वर्मा जन्मतिथि- 22-06-1976 जन्मस्थान - ग्राम -कोलिहा, जिला-बलौदाबाजार (छ ग ) कार्य - शिक्षक शा पु मा शाला लहोद, जिला बलौदाबाजार भाटापारा शिक्षा - एम् ए ( हिंदी साहित्य, संस्कृत) डी एड लेखन- कविता, गीत, कहानी,लेख,

प्रसाद के दोहा : इंटरनेट

गूगल बाबा हे गजब, खोज जिनिस सब लाय।
कोन वेबसाइट कहाँ, का का करे बताय । 1।

मजेदार यू ट्यूब हे, विडियो के भरमार।
बइठ अपन घर देख ले, पल भर मा संसार ।2।

फेमस हे संसार मा ,  फेसबुक महाराज।
पहली करथे पयलगी ,छोड़ जबो सब काज।3।

सुग्घर  हे विकिपीडिया , भरे ज्ञान भंडार।
सब भाखा सब  विषय मा, मिलही तोला सार।4।

पनिहारिन मन घाट मा,सुख दुख ल गोहराय।
ट्विटर म घलो वइसने , चहल पहल सकलाय।5।

नेट रेट हा बाढ़गे, सर्वर होगे लेट।
गेट गेट मा वेट हे ,काकर भरबो पेट। 6।

दिन भर नाचय अंगरी, रंग मंच  कीबोड।
मेमोरी कतको बढ़े ,डेटा ओवरलोड।7।

रिश्ता नाता  नेट मा , मया मयारू गोठ ।
सोसल मिडिया मा जुरे, बतियावत हे पोठ।8।

इंटरनेट  रईछई, दुनियाँ भर बगराय।
जइसे जाला मेकरा, भितरभितर लपटाय। 9।

एम एस ऑफिस मा सरल,  सब दफ्तर के काम।
पढ़ना लिखना पोछना , सकल  बुता आराम।10।

नेट म बैंकिंग ह सरल, लेन देन सदुपाय।
जल्दी जल्दी  मा घलो ,सकल काज सलटाय।11।

प्रसाद के दोहा : चुल्हा

चुल्हा माटी के हमर, घर भर बर जर जाय।
पेट जरे झन काकरो, मालिक करव उपाय।1।

छेना लकड़ी नइ बरय, चुल्हा हर कुहराय।
कलकलहिन हो बहुरिया ,सुख घर के जर जाय।2।

सबला देथे राँध के ,सुग्घर मन हरसाय।
घर के चुल्हा हाँसथे, नारी जब मुस्काय।3।

आगी चुल्हा मा बरे, घर भर हर सकलाय।
डबकत चाहा संग जी, सबके मया बंधाय। 4।

दाई चुल्हा गोरसी, छेना लकड़ी बार।
घर के सुनता झन बरे, सुखी रहे संसार। 5।

जब घर के चुल्हा फुटय, मुड़धर रोय सियान।
भाई-भाई लड़ मरय, तिरिया चरित महान।6।

गोरस चुरोय गोरसी , चुल्हा हा जी चाय।
नेवरनिन के मन चुरय, छोड़ बिछौना जाय।7।

चुल हा  चुल्हा  म चु लहा, बारे बर बम्बार।
जिनगी हे दिन चार के, चलना सोच विचार।8।

✍🏼मथुरा प्रसाद वर्मा "प्रसाद"

प्रसाद के दोहा : गुरु घासीदास बाबा

🙏🏼 बबा गुरु घासीदास जी के चरण म मोर  दोहा 🙏🏼

जात पात मानय नहीं ,सत के महिमा गाय।
पावन  जेखर आचरण, वो सतनामी आय।1।

नशापान अब बंद कर , मांसाहार ल  त्याग।
ज्ञान गुरु के हे इही , सतनामी तँय जाग।2।

मनखे आघू झन नवव, करव सिरिफ सम्मान।
जात पात ला त्याग के, सत बर दे दव जान।3।

अमरौतिन के लाल तँय ,मँहगू  के संतान ।
जनम धरे सतकाज बर, बाँटे सत के ज्ञान।4।

जैतखाम सत बर खड़े,धजा स्वेत लहराय।
गिरौदपुर के धाम हर , सत के  जस बगराय।5।

कपट करे मा साधना, अउ लालच मा त्याग।
भोग करे महिमा घटय ,मोह मया बैराग ।6।

सत बर देथे प्रान ला ,  तप बर त्यागे भोग।
साधक बाबा के सरल, जिनगी उंखरे जोग ।7।

चमत्कार तो ज्ञान हे, दिये गुरु बगराय।
ठगनी जग ठगता फिरय, निज स्वार्थ बिलमाय । 8।

🙏🏼

मथुरा प्रसाद वर्मा ' प्रसाद'

ये तो साले हद होगे यार।

ये तो साले हद  होगे यार।

गुदुम बजात , गद होगे यार ।
ये तो साले हद होगे यार।

बनाये बात बिगड़ जाथे।
नवा सड़क कस उखड़ जाथे।

लइका सिखाये म सिखय नही।
मुड़ पटक फेर लिखय नही।

रोग गुरुजी गारी खाथे।
एरे-गेरे मन आँखी दिखाथे।

उदिम जम्मो फोकट होगे यार।
ये तो साले हद होगे यार।


नेता मन ककरो सुनय नहीं।
ये बात ल जनता गुनय नहीं।

कुर्सी पा गे लबारी म।
देश बुड़ गे उधारी म।

बैपारी मोटात हे।
किसनहा दुबरात हे।

ससताहा चाँउर बिपत हो गे यार।
ये तो साले हद  होगे यार।

अस्पताल प्राइवेट , भट्टी सरकारी।
स्कूल म ताला, मास्टर बर तुतारी।

फोकट म राशन।
रोज नवा आस्वासन।

अखबार हरे के विज्ञापन।
पइसा पा के छापन।

साँस लेवाई झंझट हो गे यार।
ये तो साले हद  होंगे यार।

अधिकारी जे बुता कमीशनखोरी ।
दुकानदार बर कर(tex) के चोरी।

जनता बर लाने नवा योजना।
मिल बाँट खीसा म बोजना।

दुर्गति का ये, बेरोजगार ले पूछ।
योग्यता रहन दे , पहिली घुस।

बीमारी ये कइसे निचट हो गे यार।
ये तो साले हद  होगे यार।

प्रसाद के दोहा


जियत भर तो लगे रही, मोह मया के राह।
ये तन इहें जर  जही, छूूूट जही  सब चाह।१।

रोटी पानी पेट ला , दे दे पालनहार।
रोज रोज के बइठका, करत रही सरकार।२।

नीति कुनीति बिचार के, जीभ तोर लहुटार।
जीभ डोले जिया जले, जर जाए संसार।३।

मुफ़त म देथे  बाँटके, दार भात सरकार।
पुरसारथ  गिरवी धरे, जनता हे लाचार।४।

छोड़न छाडन बर कहूँ, छोड़ दिही संसार ।
छि छि अइसन प्रेम ला, बार बार धिक्कार।५।

पेट म रोटी ओनहा, तन बर दे दे आज।
छइहाँ दे दे  ढाकहूँ, मुड़ ल घलो महराज।।६

माँगत माँगत तोर से , लगे नहीं अब लाज।
देने वाला  हस  तहीं, देवत हस महाराज।७।

कइसे होही कहव का,  ये जिनगी हा पार।
डोंगा डगमग डोलथे, फसे बीच मजधार।८।

नीयत मा हे गंदगी,  कुछ तो होय निदान।
भ्रष्टाचारी बर चलय, हाथ सफइ अभियान।९।

शाला में ताला लगे, मदिरालय आबाद।
व्यापारी राजा हमर, पीढ़ी एक बर्बाद।१०।

लोभी कामी मन इहाँ,बने पुजेरी आज।
करम धरम जानै नही,हमर हवै महराज।11।

लोकतंत्र मा वोट के, महिमा अपरंपार
बेचारा जनता बने, मजा करे सरकार।12।

बिन पइसा के आप ला , मिले नहीं अब मान
दो कौड़ी के भाव मा, बेचावत  ईमान।13

मया अउ बन के मिरगा, भटकत खारे-खार।
मया  करे ले ही कहूँ, मिलय मया नइ यार।14।

प्रसाद के दोहा : मया


मया मरम जानय नहीं, मया मया चिचियाय।
पल भर मा जर के सहीं,  चढहे उतरे हाय। ।1।

काकर बर मैं राखहूँ, ये हिरदे सिपचाय।
बइरी  होंगे हे मया, जीय ल मोर जलाय।2।

मया परे तन हा जरय, मन प्यासे मर जाय।
तन  मन पैरावट सहीं, भितर भितर गुगवाय।3।

आँखी  काजर आँज के, लाली ओठ रँगाय।
रूप सजा के मोहनी , बिजुरी मन म गिराय।4।

संगी रे तोर  सुरता, जब जब मोला आय।
जिनगी  बोझा  कस लगे, सांस आय अउ जाय।।5।

कइसे होही का कहव ,  ये जिनगी हा पार।
डोंगा डगमग डोलथे, फसे बीच मजधार।6।

मन मिरगा संसार मा, भटकय खारे-खार।
मया  करे ले ही कहूँ, मिलय मया नइ यार।7।

मथुरा प्रसाद वर्मा

हपट के मरथे

मीठलबरा के गोठ ह चलथे।
सिरतोन कहे म जम्मो उसलथे।

करम कमाई कोनो नई पूछय,
बेईमानी के सिक्का चलथे।

उही बनाते इहाँ सड़क ल,
खा के डामर पेट ह पलथे।

कानून कायदा, खेलवारी होंगे
मतलब परगे साचा म ढलथे।

राजनीती के चिक्कन रद्दा
सोजमतिहा के पांव खसलथे ।

झपट परे सब गुर कस चाटा,
जे नई पावय हाथ ल मलथे।

उहि ह पाथे ठीहा ठिकाना
गिरे परे म घलो खासलथे ।

धीरज धर चल परसाद सरलग,
दौड़ाइए हर हपट के मरथे।

मथुरा प्रसाद वर्मा प्रसाद

मोर छत्तीसगढ़ मुक्तक






नसा  नस-नस मा समागे , आज के समाज के ।
नसा के गुलाम होगे , नवजवान आज के ।
पीढी -दर -पीढी एखर  परचार चलत हे
अरे एखरे कमाई मा  सरकार चलत हे ।



मोर घर छितका कुरिया अऊ, तोर महल अटारी हे ।
तोर घर रोज महफिल अऊ, मोर सुन्ना दुवारी हे ।
तहु भरपेट नई खावस, महु भरपेट नई खावव ,
तोला  अब भूख नई लागय, अउ मोर  जुच्छा थारी हे ।




मोर छत्तीसगढ़ी गीत: गणतंत्र

मोर छत्तीसगढ़ी गीत: गणतंत्र

गणतंत्र

अपील हे, अनुरोध है।
बालक ये अबोध हे।
कहत हौ सुन लव
मने मन गु लव
हाथ जोड़ के बिनती हे।

साल दर साल
देश के माथा म
चटक जाथे
एक अउ गिनती हे।

में आज तक नई
समझ पायेव
खुश होवव
की रोवव

काबर कि
जेला गणतंत्र
तुमन कहिथव
वो  समझ के भूल हे।

अउ जेला गणतंत्र
मैं समझथव
वोकर बारे में
गोठियाना फिजूल हे।

आओ पढ़बो अउ पढ़ाबो,

आओ पढ़बो, अउ पढ़ाबो,
गियान के उजियार फैलाबो।
अंधियारी ल मिटारे खातिर,
चल न दिया जलाबो।
गाँव गाँव अउ घर घर म।
गली गली अउ डगर डगर म।

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