चुल्हा माटी के हमर, घर भर बर जर जाय।
पेट जरे झन काकरो, मालिक करव उपाय।1।
छेना लकड़ी नइ बरय, चुल्हा हर कुहराय।
कलकलहिन हो बहुरिया ,सुख घर के जर जाय।2।
सबला देथे राँध के ,सुग्घर मन हरसाय।
घर के चुल्हा हाँसथे, नारी जब मुस्काय।3।
आगी चुल्हा मा बरे, घर भर हर सकलाय।
डबकत चाहा संग जी, सबके मया बंधाय। 4।
दाई चुल्हा गोरसी, छेना लकड़ी बार।
घर के सुनता झन बरे, सुखी रहे संसार। 5।
जब घर के चुल्हा फुटय, मुड़धर रोय सियान।
भाई-भाई लड़ मरय, तिरिया चरित महान।6।
गोरस चुरोय गोरसी , चुल्हा हा जी चाय।
नेवरनिन के मन चुरय, छोड़ बिछौना जाय।7।
चुल हा चुल्हा म चु लहा, बारे बर बम्बार।
जिनगी हे दिन चार के, चलना सोच विचार।8।
✍🏼मथुरा प्रसाद वर्मा "प्रसाद"
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