मथुरा प्रसाद वर्मा एक क्रियाशील शिक्षक है साथ ही एक कवि और साहित्यकार है . छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य के

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कोलिहा लवन , बलौदाबजार, छत्तीसगढ, India
नाम- मथुरा प्रसाद वर्मा पिता- स्व. जती राम वर्मा माता- श्रीमती पितरबाई वर्मा जन्मतिथि- 22-06-1976 जन्मस्थान - ग्राम -कोलिहा, जिला-बलौदाबाजार (छ ग ) कार्य - शिक्षक शा पु मा शाला लहोद, जिला बलौदाबाजार भाटापारा शिक्षा - एम् ए ( हिंदी साहित्य, संस्कृत) डी एड लेखन- कविता, गीत, कहानी,लेख,

भ्रष्टाचार के भुत !

बढत हे नवा-नवा कर अऊ महगाई
करमचारी मन के होवत हे छटाई
अरे भाई !
ये का अतियाचार हे
ये बाबा ते नि जानस,
हमर देश के अर्थव्यवस्था बीमार हे .

कईसे ?
कब ले परे हे ?
मूड पीरा  हे
कि जर धरे हे ?

घेरी-बेरी जर चघत हे ;
सरी जांगर कपकपावत हे ;
कनिहा पीरा हे;
अऊ
 नाक घलो चुचावावत हे ।

तभो ले डाक्टर मन
रोग नि बतावत हे .

सरकारी डाक्टर मन
एक-एक थान नाड़ी ला ब हे .
जनता के लहू निचो-निचो के
राजनिति के मईक्रोसकोप मा जाँचत हे .

अरे !
इही तो सरकारी अस्पताल के फेर हे ,
इंहा देर नहीं ,
अंधेर हे !
जा ओला बने देख
बेसुध हे कि जगत हे ?
तै , न जनस बाबु ! वोला
भ्रष्टाचार के भुत धरे हे
तेन न भगत हे !



गजल : नैन सपना नवा बसावन दे।



नैन सपना नवाँ बसावन दे।
टूटे मन ला बने सजावन दे।

घर जलय जल के राख हो जावय
गीत मोला मया के गावन दे।

तोर सुरता बहाना रोये के,
प्यास भड़के हे आज सावन दे।

होस मोला गिरे के बाद आथे,
पी के अब फेर लड़खडावन दे।

जेन आथे इहाँ ले चल देथे,
झर जहूँ रे महक के जावन दे।

याद करबे नवाँ नवाँ घर मा,
हाथ मा मेंहदी लगावन दे।


आज तो पेट भर के खावन दे।

छत्तीसगढ़ी गजल : ये मजघार है पर सहारा नहीं है।

भँवर है लहर है किनारा नहीं है।
ये मजघार है पर सहारा नहीं है।


चलो आजमाएं खुदी हौसले को,
हमीं हम है कोई हमारा नहीं है।


जिन्हें जीतना हो, वो खुद से ही लड़ ले,
किसी और से कोई हारा नहीं है।


जमीन पर जो मां है, वो दोनों जहां क्या,
फलक पे भी ऐसा सितारा नहीं है।


जहां देखता था, वहां तुम ही तुम थे,
नजर है मगर अब नजारा नहीं है।


बहुत दिल किया था चलो लौट जायें,
मगर कोई हमको पुकारा नहीं है।


उठेगा चलेगा भले गिर गया है,
अभी हौसला वो भी हारा नहीं है।


जहाँ तुम नहीं हो वहाँ भी है खुशियाँ,
मगर कोई तुमसा ही प्यारा नहीं है।

गजल : महगाई ह फेर मसान हो गे।

महगाई ह फेर मसान हो गे।

जनता के मरे बिहान हो गे।

हमरे खा के हमी ल भूँकय,
घर घर हा पाकिस्तान हो गे।

सच कहत हँव फेर मार खाहुँ,
लबरा मन हा आसमान हो गे।

मिठ मिठ खा करू उगल दे,
संविधान घलो पान हो गे।

हक बर लड़े गरीब मन के,
तोर महल आलीशान होगे।

आशीष जभे गुरु के मिलगे
गंगाधर शक्तिमान होगे।

बिपत म जेन साथ दे थे
सम्मत म उही आन हो गे।

संसद मा बोलत हे घुघवा।
गाँव गली हर वीरान होगे।

दारू भट्ठी हे बहुत जरूरी,
सरकारी स्कूल बेजान हो गे।


गजल : तोर चर्चा

2122 2122 2122

रोज करथे आजकल अखबार चर्चा।
गाँव घर होवत गली अउ खार चर्चा।

भूखे ला रोटी नहीं पव्वा घरा दे,
काम खोजत झन करै बनिहार चर्चा।

झन नवाँ माथा न अत्याचार सह तँय,
हक के खातिर कर ले बारम्बार चर्चा।

वो फलाना सँग फलानी भाग गे हे, 
गाँव भर माते हवय जी मार चर्चा।

कान मा ठेठा हवे झन बोलबे तँय,
नइ सुनय जी काखरो दरबार चर्चा ।


चुप हवय सिधवा भले, डरपोक  नइ हे,
बोलही तब हो जही सरकार चर्चा।

मेरखू फ़ोकट कथे आवास दे दे,
बिन कमीशन बंद हे बेकार चर्चा।

तब कलम लड़थे इहाँ मजबूर हो के,
हार जाथे जब करत तलवार चर्चा।

चल घुमा दे ना शहर पिज़्ज़ा खवा दे,
छी दई ये रात दिन के टार चर्चा।

प्यार के दु बोल मिट्ठी बोल अब तो,
सुन मया हे तब सुहाथे सार चर्चा।

छत्तीसगढ़ी

नदियाँ तीर रहिथव फेर मँय हा प्यासा आँव,
मोर मयारू मँय जन जन के आसा आँव,
अपने घर मा काबर हँव निर्वासित मँय,
छत्तीसगढ़ म छत्तीसगढ़ी भासा आँव।


कहाँ नदावत हम सब के चिन्हारी हा।
ये छत्तीसगढ़ी भाखा महतारी हा।
कइसे परबुधिया होगे सब लइका मन,
मार डरिस हमसब ला लाचारी हा।

पियासे मन ला मधुरस कस ये बोर दिही।
अपन बनाही बैरी के बल टोर दिही।
छत्तीसगढ़ी भाखा अतेक मयारू हे,
मोर बनकोयली हिरदे म रस घोर दिही।


शिक्षा दीक्षा सबला ज्ञान अंजोर दिही।
सरल सुगम सुंदर भाखा हे सोर दिही।
उही ल अब मँय राज दुहु छत्तीसगढ़ के,
मोला छत्तीसगढ़ी भाखा मोर दिही।
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छत्तीसगढ़ी गजल : तैं वोला जानथस कब ले वो तोला जानथे कइसे।

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जमेझन पूछथे तोला, वो अतका जानथे कइसे।
तैं वोला जानथस कब ले, वो तोला जानथे कइसे।

बतावंव का बता न तैं, मैं समझे नइ सकंव काहीं,
मया के गोठ हिरदे ले मुहूं तक लानथे कइसे।

ये बैरी मन के आँखी मा, गड़त रहिथे मया काबर,
पिरीत हो जाए चिटकुन ,त कोनो सानथे कइसे।

बता ना तैं मयारू रे, मया मा जान जाही का,
करोथे तोर सुरता दिल, करेजा चानथे कइसे।

जताना जब जरूरी हो, कनखी डार के कहिबे, 
में अड़हा काय जानत हँव,मया ला छानथे कइसे।

धड़क जाथे ये हिरदे सुन, के छुन छुन पाँव के पैरी,
ये धड़कन तोर आरो ला बता पहिचानथे कइसे।

लजा के झुक जथे नैना, के मोला देख भर लेथे,
वो अंगरी मा फंसा अचरा,ल अपने तानथे कइसे।

छत्तीसगढ़ी गजल : ये जिनगी तोर करजा ला, बहुत रो रो चुकाए हन।





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ये जिनगी तोर करजा ला, बहुत रो रो चुकाए हन।
कहाँ जाना रिहिस हमला,कहाँ आ के थिराये हन।

भियाँ मा गोड नइ माढ़य,मया के सोर जब मिलथे,
हपट जाथन कभू गिरथन,कभू उठ के लजाये हन।

मया जेला घलो मिलथे, मया के मोल नइ जानय,
समझ के बात हे लेकिन समझ ये कोन पाए हन।

मुहब्बत चार दिन के अउ उमर भर के जुदाई हे,
तभो ले रास्ता जोहत सरी जिनगी सिराये हन।

खबर अखबार ला पढ़ के, ये दुनियाँ लागथे जंगल,
कभू कोई शेर नइ जानय,कि कइसे राज पाए हन।

सियासत का जतन करथे,कि मनखे भेड़ हो जाथे,
सबो जानत बुझत हन अउ,तभो आ के झपाये हन।

मजा ये बात मा आथे, हमर जे खात पीयत हे,
यकीं हमला दिला देथे,कि हम चारा चराये हन।




मुक्तक

पाँव भले हो फोरा हाथ ह छिल जाही।
मोर करम के रोटी मोला मिल जाही।
मौसम चाहे कतको टेडगा चाल चलय,
जेन फूल ला खिलना होही, खिल जाही।

छत्तीसगढ़ी मुक्तक

कोनो तोला कतको बोलय,हर काम ल टाले कर।
मतलब अपन निकाले खातिर,हाँसी मुख मा पाले कर।
तँय कतका गुनवन्ता होथस,ये तो सब झन जानत हन,
तोला कुछु करना ही नइ हे, गलती मोर निकाले कर।

छोड़ सबो ला जाना पड़थे।




जमे जमाय बिराना पड़थे।
रीता कर रितियाना पड़थे।
जोड़े कतको गोटी माटी,
छोड़ सबो ला जाना पड़थे।

खोंदरा नवां बनाना पड़थे ।
खोज के दाना खाना पड़थे।
ये जिनगी ले जतका लेबे,
करजा जमो चुकाना पड़थे।

वोखर बुलाय आना पड़थे।
अपन करम सोरियाना पड़थे।
का बोये हँव काटे परही ,
सुरता कर पछताना पड़थे।

निभय नहीं त निभामा पड़थे ।
अचरा मा गठियाना पड़थे।
मया ह माँगे मिलय नहीं जी,
जोहत जिनगी बिताना पड़थे।

गजल : हमला तो मयखाना चाही।

नित नवां बहाना चाही।
हमला तो मयखाना चाही।

अब चुनाव मा सब दल मिलके
पव्वा रोज पियाना चाही ।

तुमन कमाहूं पाँच साल जी,
हमला फ़ोकट खाना चाही।

वादा के हे काय भरोसा,
सोच समझ गुठियाना चाही।

रतिहा मँय सपना देखे हँव,
हरहा ला हर्जाना चाही।

आंख रहत जे बन गे अन्धरा,
वो मनखे मर जाना चाही।

डिस्पोजल हर मुड़ मा चढ़गे,
अब 'प्रसाद' घर जाना चाही।

गजल : हर पँछी ला दाना चाही।


जइसे भी हो आना चाही।
हर पँछी ला दाना चाही।

ये सरकारी हुकुम हे खच्चित,
फांदा मा फँद जाना चाही।

लोकतंत्र के खुले खजाना,
देश भले लूट जाना चाही।

ये धरती मा जनम धरे हन्, 
भाग अपन सगराना चाही।

बस स्कूल म नाँव लिखादिन,
पास सबो हो जाना चाही।

रेचका मेचका हगरु पदरू,
पढ़ लिख गे पद पाना चाही।

अस्पताल बर लइन लगावव,
हमला तो मयखाना चाही।

रिस्तेदारी बहुत निभा देन,
सब ल अपन घर जाना चाही।

हमर मया के कोन पुछारी।
सँगी ला सब भाना चाही।

टूट जथे सब दिन के सपना,
नींद घलो तो आना चाही।

मया करे अउ आँशु पाय,
अउ का तोला खजाना चाही।

फेर सँगी के सुरता आ गे, 
चल प्रसाद अब गाना चाही।



खाना वाना खाया कर।


बीवी तो कहती है अक्सर
रोज कमा के लाया कर।
और पिताजी दे कर घुड़की
कहते और कमाया  कर।

 

कहने को सब क्या क्या कहते
जब  मिलती माँ कहती है
कितना काम करेगा बेटा
समय पे खाना खाया कर।

कितना पाबन्दी है मुझ पर
इधर उधर मत जाया कर।
जिधर भी जाये सबसे पहले
मुझको रोज बताया कर।

 

मां है तो है टोकाटाकी
माँ के बाद जमाने मे
कौन कहेगा दुबला हो गया
खाना वाना खाया कर।


टूट गया हूँ अब लगता है
सोंच सोंच दुखता है सर।
इस दुनियां के भाग दौड़ में,
कब तक भागूं मैं मर मर।

 

ताना दे दे सब कहते है
मैं भी हुआ नकारा हूँ,
बाबूजी होते तो कहते
बेटा खुद पे भरोसा कर।

रण है ये दुनियादारी भी
कब तक किसे पुकारेगा।
अपने ही साहस के बल पर
नैया पार उतारेगा।

 

भले थका है लड़ते लड़ते
ये बाजी तू मारेगा।
बाबूजी होते तो कहते
बेटा तू नइ हारेगा।

गजल : सुनना कहाँ हे।

तै आये कहाँ तोला जाना कहाँ हे।
ये दुनियां रहे के ठिकाना कहाँ हे।

दु पइसा कमा देवता बन जथे सब,
इहाँ आदमी अब बता ना कहाँ हे।

अपन जेन होथे पिरा ला समझथे,
पिरोहिल करा दुख जताना कहाँ हे।

मनौनी जे खोजे फुलाये हे मुँह ला,
बता पूछ के ओला आना कहाँ हे।

बिकट तोल के चाल चलथे जमाना,
कहाँ रोना हे मुस्कुराना कहाँ हे।

चिरैया चलो छोड़ के गाँव घर ला, 
इहाँ पेट बर चार दाना कहाँ हे।

महुँ बेच दौ भूख ईमानदारी
मिलै पेज पसिया, बियाना कहाँ हे।

सड़क मा गरु अउ बियारा मा पैरा,
कका तोर गोठान ला ना कहाँ हे।

बने रोज "परसाद" कहिथे कहानी ,
मगर कोन सुनथे सुनाना कहाँ हे।

गीत : गाड़ी आही जब टेसन मा सबला चढ़ के जाना हे।





ये दुनियाँ  इक गाड़ी टेशन,
पल दु पल सुस्ताना हे।
गाड़ी आही जब टेशन मा,
सब ला चढ़ के जाना हे।

कोन रहे बर आय इहाँ हे,
काकर इहाँ ठिकाना हे।
गाड़ी आही जब टेशन मा,
सब ला चढ़ के जाना हे।

अपन करम के गठरी बाँधे,
रद्दा खर्ची राख बने।
खीसा  टमरय घेरी बेरी, 
टमर टमर के फेर गने।

कतको मन हर ब्याकुल हावे, 
डर मा चोर लुटेरा के।
ताकत हावय  घड़ी ल कतको
गाड़ी आये बेरा के।

टिकिस कटा के करत अगोरा,
भीड़ इहाँ मनमाना हे।
गाड़ी आही जब टेशन मा,
सब ला चढ़ के जाना हे।

ककरो ककरो रिजर्वेशन हे,
स्लीपर ऐसी कोच म।
वेटिंग वाले टिकिट धरे हे,
कतको हे परे सोच मा।

जनरल वाला धक्का खा खा
खड़े खड़े पछताही।
जेकर जइसे करम कमाई,
सीट ल वइसन पाही।

कतको झन हा बिना टिकिट के,
जाही करत बहाना हे।
 




कुण्डलिया : जूता मार

लम्पट लबरा लालची, स्वार्थी अउ मक्कार।
बात बोलबे बाद में, पहली जूता मार।

पहली जूता, मार नहीं ते, मुड़ चढ़ जाही।
गाँव गली घर, रिश्ता नाता, आग लगाही।

मार दु थपरा, पाट जमो ला, खन के डबरा।
बात बना के, फेर फसाही, लम्पट लबरा।

रूपमाला : मोर गुरुवर

गुरु वंदना

वंदना गुरु आपके पग, मा करँव कर जोर।

कर कृपा आशीष दे दव, प्रार्थना हे मोर।

जेन पाए ये चरणरज, जिंदगी तर जाय।

हँव खड़े प्रभु आश करके, कब कृपा हो जाय।


मान गुरु के बात जिनगी भर नवा के माथ।

हर बिपत ले जे उबारे, वो धरे हे हाथ।

एक अँगरी के इशारा, हा उहाँ पहुचाय।

खोज मा जेखर भटकते, ये उमर खप जाय।


मँय सुने हँव मोर गुरु के, हाथ पारस आय।

जेन पथरा हा छुवाये, सोन वो हो जाय।

अर्थ पाइस मोर जिनगी, साथ पा के तोर।

पाय हँव जब ले चरणरज, भाग खुलगे मोर।


व्यर्थ भटकत शब्द मन ला दे सके नव अर्थ।

अर्थ के सार्थक गठन बर, होय जेन समर्थ।

जे सदा परमार्थ खातिर, ही करे कविकर्म।

हे उही हकदार कविपद के बताए धर्म।


गुरुचरण मा सीख मिलथे, गुरु कहे मा ज्ञान।

गुरु बिना अँधियार लागे, ये जगत दिनमान।

एक अँगरी के इशारा, गुरु कृपा जब पाय।

हर कठिनपथ हा बताए ले सरल हो जाय।


पाँख जामे ले उड़े बर, हौसला नइ आय।

ये जमाना के चकाचक रोशनी भटकाय।

भागथे पल्ला सबोझन, कोन मंजिल पाय।

देख अँगरी ला गुरु के, चल सफल हो जाय।


मँय खड़े मजधार मा हँव, कोन करही पार।

हे लहर बड़ तेज अउ छाँय हे अँधियार।

कुछ समझ नइ आत हावय राह अब देखाव।

मोर गुरुवर हाथ धर के, पार मा ले जाव।


हे कठिनपथ साधना के, बिन थके चल पाय।

पाँव मा काँटा गड़े के बाद भी मुस्काय।

रोंठ गुरु के पोठ चेला, हा कहाँ घबराय।

टोर के सब पाँव बँधना, सोज चलते जाय।

(साधना गुरुज्ञान पाके, पोठ होते जाय।)



एक मन के हे भरोसा, एक हे विश्वास।

जब बिपत हर घेर लेही, टूट जाही आस।

मोर गुरुवर हाथ धर के, लेगही वो पार।

वो कभु नइ हाथ छोड़य, छोड़ दय संसार।


गुरु बताए सोज रद्दा, चल सको ते आव।

मेहनत दिनरात कर अउ झन कभू सुस्ताव।

हे सफलता के मरम ये, जान लव सदुपाय।

कर सकय जे साधना सिरतोन मंजिल पाय।

गीत : अउ कतका अखबार पढ़ौ ।


पढ़त पढ़त अब मति छरियागे, अउ कतका अखबार पढ़ौ ।
मन ला अतका भटकावत हे, काकर काकर सार पढ़ौ।

पढ़े लिखे मन निज स्वारथ मा, मानवता नीलाम करे।
जहर उगावय ये भुइयाँ मा, देश धरम बदनाम करे।
जात पात के भेद भाव ला, बगरावत दरबार पढ़ौ।
पढ़त पढ़त अब मति छरियागे, अउ कतका अखबार पढ़ौ।

खावत हावय मनखे ला अब, रक्सा हर महंगाई के।
पाई पाई खातिर होगे, बैरी भाई भाई के।
काकर गरदन कोन काटही, तानत हे तलवार पढ़ौ।
पढ़त पढ़त अब मति छरियागे, अउ कतका अखबार पढ़ौ ।


अप्पड़ मनखे जांगर पेरे, मिहनत के ये घानी मा।
सींच सींच के रोज पसीना,करजा लुवव किसानी मा।
सत्ता के सँग फुगड़ी खेलत, फलत फुलत बैपार पढ़ौ।
पढ़त पढ़त अब मति छरियागे, अउ कतका अखबार पढ़ौ ।

बबा ह कहिथे मनखे पढ़लिख, हो जाथे हुसियार बने।
सीख जथे सिधवा मनखे तक, चुहके बर कुसियार बने।
महुँ बने बर रस चुहकइया, बन जावव सरकार पढ़ौ।
पढ़त पढ़त अब मति छरियागे, अउ कतका अखबार पढ़ौ।

सड़क तिरन के खेत बेचागे, सुनथव कीमत भारी हे,
सहर लिलत हे हमर गांव ला, रुख राई तीर आरी हे।
बेजा कब्जा भूमि माफिया, माते हाहाकार पढ़ौ।
पढ़त पढ़त अब मति छरियागे, अउ कतका अखबार पढ़ौ।

सतवंता हर फाँसी चढ़गे, फेर मिलही अब न्याय कहाँ।
कोट कचहरी पुलिस दरोगा, खोजय चारा पाय कहाँ।
लहू सनाये बेवस्था मा, मँय कतका चीत्कार पढ़ौ।
पढ़त पढ़त अब मति छरियागे, अउ कतका अखबार पढ़ौ।

मनहरण घनाक्षरी



येती वोती  चारो कोती, बोलो जी काकर सेती,
भ्रष्टाचार के ये खेती, हा लहलहात हे।।
योजना ला सरकारी, नेता अउ अधिकारी, 
मिल बाँट आरी पारी, दिनरात खात हे।।
बादर मा बना बरी, ठठा के करम मरी,
काकर भरोसा करी, समझ न आत हे ।।
जिनगी के मारा मारी, भाजी भाटा तरकारी,
मँहगी होवत भारी, मनखे लुलुवात हे।।


नदी मा उफान आय, आंधी या तूफान आय,
कोनो हर पार नइ, पाए मजधार ले।
ऋषि मुनि जोगी मन, संसारी व भोगी मन,
कोन बाँच पाय नहीं, नैना के कटार ले।
जीव के जंजाल हरे, मनखे के काल हरे,
तब ले झपाय मरे, आदमी अजार ले।
कतको बचाबे भले, पड़ जाथे तभो गले,
कोनो बाँच पाय नही, जवानी म प्यार ले।


तोर मया मोहनी रे, जोग हरे जोगनी रे, 
जानबुच  ठगनी रे, तोर ले ठगाय हँव।।
नैना तोर कजरारे, मोहनी मंतर मारे,
करके भरोसा वा रे,भारी धोखा खाय हँव।।
गुनत रेहेंव काली, छू के ओठ के वो लाली, 
मया म वो मतवाली, तोर काय पाय हँव।।
अतके हे लेना देना, जब ले छुएव है ना,
तोर सँग फुलकैना, महुँ ममहाय हँव।।

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रूपमाला छन्द

you tube में सुने साँस मोरे जब जुड़ावय, तोर अचरा पाँव। जब जनम लँव मँय दुबारा, तोर ममता छाँव। मोर दाई  तोर बर हम , हाँस के दँन प्र...