बढत हे नवा-नवा कर अऊ महगाई
करमचारी मन के होवत हे छटाई
अरे भाई !
ये का अतियाचार हे
ये बाबा ते नि जानस,
हमर देश के अर्थव्यवस्था बीमार हे .
कईसे ?
कब ले परे हे ?
मूड पीरा हे
कि जर धरे हे ?
घेरी-बेरी जर चघत हे ;
सरी जांगर कपकपावत हे ;
कनिहा पीरा हे;
अऊ
नाक घलो चुचावावत हे ।
तभो ले डाक्टर मन
रोग नि बतावत हे .
सरकारी डाक्टर मन
एक-एक थान नाड़ी ला ब हे .
जनता के लहू निचो-निचो के
राजनिति के मईक्रोसकोप मा जाँचत हे .
अरे !
इही तो सरकारी अस्पताल के फेर हे ,
इंहा देर नहीं ,
अंधेर हे
!
जा ओला बने देख
बेसुध हे कि जगत हे ,
?
तै , न जनस बाबु ! वोला
भ्रष्टाचार के भुत धरे हे
तेन न भगत हे !
1 टिप्पणी:
24-01-2000 KO DAINIK HASKAR ME PRAKASI HUA THA . KUCH SANSHODHAN KE SATH PRASTUT HAI.
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