का रे कारी, कारी नैना हा तोर ।
अइसे मारे बान, जीव ल लेवत हे मोर ।
घर ले जब निकलथव, रुक रुक के चलथव ।
कतको सम्हलथव , मँय तभो ले हपटथव ।
खचवाँ डिपरा दिखय नहीं, दिखथे चेहरा तोर ।
का रे कारी, कारी नैना हा तोर ---
काबर तँय इतराथस, मोला देख के बिजराथस !
मोर तीर नइ बोलस अउ पर सँग बतियाथस !
मर जाँहु अइसे झन दाँत ला निपोर ।
का रे कारी, कारी नैना हा तोर ---
झाँक ले न मन भीतर, सूरत मा झन जा।
अपन बना ले मोला, रानी मोर बन जा।
दिया बार कर दे ना जिनगी मा अंजोर---
3 टिप्पणियां:
काबर गोरी तै इतराथस..
देख के बिजराथस..
मर जहू मय ,तै झिन दन्त ला निपोर...
मथुरा प्रसाद जी बने लागिस आपके कविता हा
आपे मन के किरपा हे नही ते बईहा के गोहार ला सुनथे कोन । सराहे बर बहुत बहुत धन्यवाद ।
बहोत बढ़िया
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