बहुत अभिमान मँय करथव, छत्तीसगढ़ के माटी मा।
मोर अन्तस जुड़ा जाथे बटकी भर के बासी मा।
ये माटी नो हय महतारी ये,एकर मान तुम करव,
ये बइला आन के चरथे, काबर हमर बारी मा।
मय तोरे नाव लेहूँ, तोरे गीत गा के मर जाहूं ।।
जे तँय इनकार कर देबे, त कुछु खा के मर जाहुं ।
अब तो लगथे ये जी हा जाही संगी तोरे मया मा
कहुँ इकरार कर लेबे, त मँय पगला के मर जाहुं ।।
ये कैइसे पथरादिल ले, मँय हा काबर प्यार कर डारेव ।
जे दिल ल तोर के कहिथे का अतियाचार कर डारेव।
नइ जनिस वो बैरी ह कभू हिरदे के पीरा ला,
जेकर मया मा जिनगी ला मँय अपन ख्वार कर डारेव।
मोर घर म देवारी के दिया दिनरात जलते फेर।
महूँ ल देख के कोनो अभी तक हाथ मलत फेर।
मैं तोरे नाव ले ले अभी तक प्यासा बइठे हौ
मोरो चारो मु़ड़ा घनघोर बादर बरसथे फेर।।
महू तरसे हव तोरे बर, तहु ल तरसे ला परही।
मँय कतका दुरिहा रेंगे हँव,तहूँ ल सरके ला परही।
मँय तोरे नाव क चातक अभी ले प्यासा बइठे हौं,
तड़प मोर प्यास म होही त तोला बरसे बर परही।
मोर घर छितका कुरिया अऊ, तोर महल अटारी हे ।
तोर घर रोज महफिल अऊ, मोर सुन्ना दुवारी हे ।
तहु भर पेट नई खावस, महु भर पेट नई खावव,
तोर अब भूख नई लागय, मोर करा जुच्छा थारी हे ।
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