हे कुर्सी देव तोर महिमा हे भारी।।
देश के जम्मो नेता तोरे हरन पुजारी।।
हमला तो रइथे तोरेच आसरा
चाहे बैठन हम चाहे हमर सुवारी।।
तोरे दरस बर बन जाथन भिखारी।
तोरे खातिर जनता के सूनथन गारी।
तोला गवां के कुकुर अस गिजरथन
हवा म उडाथन तय जब बनथस संगवारी।
हे कुर्सी देव ....
घेरी बेरी तोरे ख़ातिर मारत हन लबारी ।
तोर बिना नई होवय ककरो चिन्हारी।
तोरे किरपा ले झड़कथन रसगुल्ला
तोर बिना पर जाथे चाटे बर थारी ।।
तोरे ऊपर बइठ के तोर करथन रखवारी।
पांच बछर नई आवे फेर हमर पारी ।
आज जेन मन हमर आगुपाछु गिंजार्थे
हांव हांव करही वो कुकुर मन सरकारी ।
हे कुर्सी देव ......
ये रचना मोर बहुत पहली के ये
दैनिक भास्कर माँ प्रकाशित घलो हो चुके हे
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