छत्तिसगढ के माटी पावन।
चन्दन कस हावे मनभावन।
धान कटोरा छइयाँ भुइयाँ।
पहिली लागव तोरे पइयाँ।
महतारी के महिमा गावँव।
ये माटी ला माथ लगावँव।
मँय गोहरावत मन के पीरा।
खावत मन ला घुन्ना कीरा।
हमरे भाखा बोली हमरे।
नइ हे कभू कहूँ ले कम रे।
काबर छत्तीसगढी तब ले।
कखरो मुँह नइ आवय हब ले।
संस्कृति हा छत्तिसगढ के।
हे दुनियाँ मा सबले बढ के।
तब ले काबर हमन भुलावन।
पर संस्कृति ला अपनावन।
छत्तिसगढ़िया सबले बढ़िया।
धान कटोरा जुच्छा हड़िया।
परदेशी मन बनके राजा।
रोज बजावय अपने बाजा।
भटकत रहिथन येती ओती।
नइ मिल पावय रोजी रोटी।
अपन गाँव अउ अपने घर मा ।
सपटे बइठे रहिथन डर मा।
इही नेता अउ अधिकारी हे।
हम नौकर ये व्यापारी हे।
सिधवा बइला बनके रहिथन।
सबला दादा भैया कहिथन।
अपने घर मा हमन भिखारी।
घर भर ओकर हमर दुवारी।
कर मिठलबरा चुगली चारी।
लूट मचाथे सबझन भारी।
अपराधी मन करय सियानी।
निचट लपरहा बनके ज्ञानी ।
कानून कायदा के संग खेलय।
बन के बपुरा जनता झेलय।
अब तो समझव अब तो जागव ।
छोड़ अपन घर अब झन भागव।
घर सम्हालव घर मा रहिके।
सुख उपजे सब पीरा सहिके।
पढ़व लिखव सोंचव सँगवारी ।
कर लव पहिली ले तैयारी।
आघू आ लव जुम्मेदारी।
खुश होही तब तो महतारी।
तँय जग के बन पालनहारा।
भटकत हावस पारा पारा।
मार लबारी नेता बनगे ।
ठगजग के तोर महल हा तनगे।
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