सिधवा हरन, बइला हरन, तँय चाब ले पुचकार ले।
रिस बात के मानन नहीं, जी भर तहूँ दुत्कार ले।
हम घर अपन मजदूर हन, मालिक हमर आने हरे।
छत्तीसगढ़ के भाग ला , परदेशिया गिरवी धरे।
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मत हार के तँय बइठ जा, ये हार रद्दा जीत के।
काँटा घलो हा गोड़ के , रचथे कहानी बीत के।।
चाहे ठिकाना दूर हे, अब बिन रुके चलते चलो।
होथे उही मन हर सफल, जे उठ जथे गिर के घलो।।
हिम्मत करव डटके बने, कल के फिकर ला छोड़ दौ।
करके भरोसा आपके, कनिहा बिपत के तोड़ दौ।
कैसे मुसीबत हारथे ,तँय देख ले ललकार के।
अब कर उदिम बस जीत बर, मत हार मानव हार के।
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हे सरसती दाई माहूँ , बिनती करव कर जोर के।
तोरे सरन मा आय हँव, मद मोह बँधना छोर के।
अज्ञान के बादर छटय, अउ पाँख ला आगास दे।
मँय हँव परे अँधियार मा, तँय ज्ञान के परकास दे।
माँ सारदा है आसरा , देवी हरस वो ज्ञान के।
सत्मार्ग मा मँय चल सकव, रद्दा छुटय अज्ञान के।
लइका हरव मँय कमअकल, नइ आय मोला साधना।
माथा नवाँ के मँय करव, तोरे चरन आराधना।
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