211× 7+2+1
तुलसी दास जी
बादर हे धनघोर घिरे चमके गरजे बिजली कड़काय।
पोठ भरे नदियाँ नरवा रतिहा अँधियार म जीव डराय।
मार सनाय गली चिखला तब ले सुरता जब तोर सताय।
तोर धरे धुन मैं रतना गिरते हपटे पहुँचे हँव आय।
पोठ भरे नदियाँ नरवा रतिहा अँधियार म जीव डराय।
मार सनाय गली चिखला तब ले सुरता जब तोर सताय।
तोर धरे धुन मैं रतना गिरते हपटे पहुँचे हँव आय।
रत्नावली जी-
मोर मया पर के जग के सुख त्याग करेहस भागतआय।
तैं बरसा नरवा नदियाँ मरहा मुरदा तक ला न डराय।
तोर सहीं कहुँ मूरख हे बिरथा तन खातिर मोह लगाय।
राम घलो जपले बइहा भव सागर जे हर पार कराय।
तैं बरसा नरवा नदियाँ मरहा मुरदा तक ला न डराय।
तोर सहीं कहुँ मूरख हे बिरथा तन खातिर मोह लगाय।
राम घलो जपले बइहा भव सागर जे हर पार कराय।
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