करू करेला मोर कलम हे, करू करू मँय करिहौ बात।
रिस झन करहू मोर बात के, मँय जुगनू अँधियारी रात ।।
मोर कहानी कहे समारू , इतवारा हर करे विचार।
मंगलु सोचय गुनय बुधारू, मानय बात ल जानय सार।।
बदलत हावे आज जमाना, बदलत हावे सब व्यवहार।
देख जमाना जे नइ बदलय, वो मन पछवा जाथे यार।।
घर घर जाय दूध बेचइया, अउ मदिरालय आथे लोग।
भाजी वाला भूख मरे अउ, खाय कसाई छप्पन भोग।।
पढ़े लिखे मन घर ला त्यागे, निज स्वारथ बूड़े दिनरात।
अनपढ़ बेटा दाई ददा ल, करके मजुरी देथे भात।।
अपने भाखा अपने बोली,बोले बर भी लगथे लाज।
अंग्रेजी नइ आय तभो ले, गिटपिट गिटपिट करथे आज।।
भ्रष्ट आचरण करे कमाई, धन दौलत मा खोजय मान।
दुत्कारे सब दीनदुखी ला, बड़े बड़े ला देथे दान।।
बेरा नइये मनखे बर अउ, मोबाइल मा बाँटय ज्ञान।
सोसल मिडिया मा छाए हे, अउ भटकत हावे सन्तान।।
मनखे होगे आज मशीनी, मर गे हे सबके जज्बात।
बन के बइला पेरावत हे, पइसा के खातिर दिनरात।।
जिनगी के सब सुख सुविधा बर, जोड़त हे साधन भरपूर।
मजा नहीं अइसन जिनगी मा, होवत हे सब सपना चूर।।
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