कुकुभ 16,14
अंत मे 22
राजनीत हा मोर गाँव मा, बोतल मा भरके आथे ।
बरसा के पूरा कस नाला , गाँव गली बोहा जाथे।
सुनता के बँधना टोरे बर, लालच के बिजहा बोंथे।
दुख पीरा मा हितवा बन के,घड़ियाली रोना रोथे।
स्वारथ बर छानी मा होरा, भुंज भुंज के सब खाथे।
जात धरम अउ ऊँच नीच के, भेद कलेचुप बगराथे।
निचट लपरहा नेता बनथे, अउ चमचा जाँगर चोट्टा।
सब झन बर अब खाँचा खनथे, अवसर पाय खोट्टा।
भूखर्रा मन हदराही मा, फोकट के पा के खाथे।
माधोदास ह दार भात ला, खा खा के बड़ इतराथे।
फोकट के पा के लेड़वा मन , चिचियाथे आरा पारा।
चार चवन्नी फेक फेक के ,चतुरा मन चरथे चारा।
कपट कमाई के रक्सा हा, लिलत जात हे मर्यादा।
दरुहा मन के जमघट होंगे ,मोर गाँव सीधा साधा।
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