सच कहे ले काय होही।
झूठ हर भरमाय होही।
जे लबारी मार लेथे,
पेट भर के खाय होही।
देश आगी मा जरत हे,
कोई तो सुलगाय होही।
पोठ पहरा हे पुलिस के,
चोर मन जुरियाय होही।
भूख मा लइका बिलखथे,
भात दाई लाय होही।
मँय इँहा बिजहा मया के,
बोंय हँव ममहाय होही।
छोड़ देअब तँय सियानी,
शेर मन हा गाय होही।
फेर मनमाने पियत हे,
आज धोका पाय होही।
मापनी 2122 2122
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