राधा बोलिस मोहन काली, होरी खेले आबे।
रास रचाबे हमर गाँव मा, रंग गुलाल उड़ाबे।
वृषभानू के राज दुलौरिन, मोर गाँव बरसाना।
करिया कारी कालिंदी के, तिरे तिर चले आना।
रद्दा देखत खड़े रहूँ मँय, फरिया पहिरे सादा।
आना परही काली तोलि, भुला जबे झन वादा।
मनमोहन हा हाँसत बोलिस, आहूँ काली राधा।
कइसे तोला भुला जहूँ रे, तोर बिना मँय आधा।
जब जब मोला सुरता करबे, अपन तिर म पाबे।
होरी होही ब्रज मा अइसे, जीयत भर सुरताबे।
गोरी मोरे रंग रंग के, लाल लाल हो जाबे।
बन जाहूँ मँय तोरे राधा, किसना बन इतराबे।
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