आ के मँय दरबार मा, हे हनुमन्ता तोर ।
पाँव परँव कर जोर के, सुन ले बिनती मोर।।
सुन ले बिनती, मोर पवनसुत, बिपदा भारी।
कँरव आरती, थाल सजाके, तोर पुजारी।।
फूल पान मँय, लाने हावव, माथ नवा के ।
दे दे दरसन, करके किरपा, तीर म आके।।
पाँव परँव कर जोर के, सुन ले बिनती मोर।।
सुन ले बिनती, मोर पवनसुत, बिपदा भारी।
कँरव आरती, थाल सजाके, तोर पुजारी।।
फूल पान मँय, लाने हावव, माथ नवा के ।
दे दे दरसन, करके किरपा, तीर म आके।।
फागुन आगे ले सगा, गया ले तहूँ हा फाग।
बजा नगारा खोर मा, गा ले सातो राग।
गा ले सातो, राग मतादे, हल्ला गुल्ला।
आज बिरज मा, बनके राधा, नाचय लल्ला।
अब गोरी के, कारी नैना, आरी लागे।
मया बढाले, नैन मिलाले, फागुन आगे।
बजा नगारा खोर मा, गा ले सातो राग।
गा ले सातो, राग मतादे, हल्ला गुल्ला।
आज बिरज मा, बनके राधा, नाचय लल्ला।
अब गोरी के, कारी नैना, आरी लागे।
मया बढाले, नैन मिलाले, फागुन आगे।
बोली बतरस घोर के, मुचुर-मुचुर मुस्काय।
मुखड़ा है मनमोहिनी, हाँसत आवय जाय।।
हाँसत आवय, जाय हाय रे, पास बलाथे।
तीर मा आ के, खन खन खन खन , चुरी बजाथे।।
नैन मटक्का, मतवाली के, हँसी ठिठोली।
जी ललचाथे, अब गोरी के, गुरतुर बोली।।
मुखड़ा है मनमोहिनी, हाँसत आवय जाय।।
हाँसत आवय, जाय हाय रे, पास बलाथे।
तीर मा आ के, खन खन खन खन , चुरी बजाथे।।
नैन मटक्का, मतवाली के, हँसी ठिठोली।
जी ललचाथे, अब गोरी के, गुरतुर बोली।।
काँटा बोलय गोड़ ला, बन जा मोर मितान।
जन सेवक ला आज के, जोंक बरोबर मान।।
जोंक बरोबर, जान मान ये, चुहकय सबला।
बनके दाता, भाग्य विधाता, लूटय हमला।।
अपन स्वार्थ मा, धरम जात मा, बाँटय बाँटा।
हमर राह मा, बोवत हे जे, सब दिन काँटा।
जन सेवक ला आज के, जोंक बरोबर मान।।
जोंक बरोबर, जान मान ये, चुहकय सबला।
बनके दाता, भाग्य विधाता, लूटय हमला।।
अपन स्वार्थ मा, धरम जात मा, बाँटय बाँटा।
हमर राह मा, बोवत हे जे, सब दिन काँटा।
फुलवारी मा मोंगरा, महर महर ममहाय।
परमारथ के काज हा, कभू न बिरथा जाय।।
कभू न बिरथा, जाय हाय रे, बन उपकारी।
प्यास बुझाथे, सबला भाथे, बादर कारी।।
मरते सैनिक, करथे सबके, पहरेदारी।
तभे वतन हा, ममहाथे जी, जस फुलवारी।।
परमारथ के काज हा, कभू न बिरथा जाय।।
कभू न बिरथा, जाय हाय रे, बन उपकारी।
प्यास बुझाथे, सबला भाथे, बादर कारी।।
मरते सैनिक, करथे सबके, पहरेदारी।
तभे वतन हा, ममहाथे जी, जस फुलवारी।।
लबरा मन हर बाँटही, आस्वासन के भात।
रहय चँदैनी चार दिन, फेर कलेचुप रात।।
फेर कलेचुप, रात ह कारी, तोर दुवारी।
अब छुछुवाही, सब झिन आही, आरी पारी।।
मार मताही, खलबल खलबल, सबझन डबरा।
दे दे चारा, जाल फेकही, नेता लबरा।।
रहय चँदैनी चार दिन, फेर कलेचुप रात।।
फेर कलेचुप, रात ह कारी, तोर दुवारी।
अब छुछुवाही, सब झिन आही, आरी पारी।।
मार मताही, खलबल खलबल, सबझन डबरा।
दे दे चारा, जाल फेकही, नेता लबरा।।
नारी ममता रूप हे, मया पिरित के खान।
घर के सुख बर रात दिन, देथे तन मन प्रान।।
देथे तन मन, प्रान लगाके, सेवा करथे।
सुख दुख सहिथे, अउ घर भर के , पीरा हरथे।।
दाई-बेटी, बहिनी- पत्नी, अउ संगवारी।
अलग अलग हे, नाम फेर हे, देवी नारी।
घर के सुख बर रात दिन, देथे तन मन प्रान।।
देथे तन मन, प्रान लगाके, सेवा करथे।
सुख दुख सहिथे, अउ घर भर के , पीरा हरथे।।
दाई-बेटी, बहिनी- पत्नी, अउ संगवारी।
अलग अलग हे, नाम फेर हे, देवी नारी।
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