नाली भरगे हाय, सरे कस बस्सावत हे।
करही कोन ह साफ, समझ मा नइ आवत हे।
कचरा के हे ढ़ेर, फेर ये झिल्ली पन्नी।
लाखों होगे पार, फेक के चार चवन्नी।
कचरा भ्रष्टाचार के, लेस देव चतवार के।
बहिरी धर सब साफ कर, बेरा हे इंसाफ कर।1।
वादा के भरमार, चार दिन चलही संगी।
टकला बर सरकार, लान के देही कंघी।
अब चुनाव हे पास, खास हो जाही जनता।
नेता आही गाँव, पेट भर खाही जनता।
मुद्दा के हर बात ला, दार साग अउ भात ला।
मतलब बर भरमाय सब, जनता के जज्बात ला।
रचरच रचरच आय, सड़क मा बइला गाड़ी।
गाँव गवतरी जाय, करय अउ खेती बाड़ी।
घन्नर घेंच बंधाय, बाजथे घनघन घनघन।
दउड़त सरपट जाय, हवा कस सनसन सनसन।
आज नंदागे कालके , बइला गाड़ी छाँव रे।
मोटर गाड़ी मार हे, तब ले सुन्ना गाँव रे।
आसा अउ बिस्वास, माँग के कोन ल मिलथे।
अपन हाथ अउ गोड़, चला के जिनगी खिलथे।
होबे जाँगर चोर, नदी मा दीया ढिलबे।
फुटय करम हा तोर, आन के चादर सिलबे।
छोड़ आलसी बीर बन, करम कमा रणधीर बन।
पोंगा पण्डित माँग के, भोग लगाथे भाँग के।
आँटे पैरा डोर, बइठ के पैरा जिनगी।
कभू बेच के चाय, तलत हे भजिया जिनगी।
करम करे का लाज, शुरू कर बढ़बे आगे।
दुनियाँ हे रफ्तार आज सब दाउड़े भागे।
चलत चलत सागर मिलय, रुके धार बसाय रे।
ठीहा मिलही ठेल के, ठेलहा धोखा खाय रे।
रोना रोये आज, करम के गठरी बाँधे।
संसो के तँय साग,ऊँ जिनगी भर राँधे।।
काबर लगे लाज , काम तो करे ल परथे।
बनके जाँगर कोड़िया, सो सो उमर बिताय जी।
बोझा होगे जिन्दगी, बिरथा जान गवाय जी।
हमन भूखर्रा तान, कमा के खाथन तब ले।
गड्थन सीधा जाय, गोड़ मा काँटा हब ले।।
उघरा हम रह जान, ढाँक के तन दूसर के।
मरथन भूख मा फेर, नहीं हक मारन पर के।।
छत्तीसगढ़िया सोज रे, करथन बिनती रोज रे।
रोज मनाथन जोग रे, दे के छप्पन भोग रे।
मया ल काबर मोर,नहीं तँय जाने बइरी।
मन मा करते सोर, पाँव के तोरे पइरी।।
निष्ठुर नैना तोर, करेजा घायल होगे।
कहिथे पूरा गाँव, टुरा अब पागल होगे।।
पीरा बाचे हे अभी,ले के जाही जान रे।
सुरता तोरे अब बही, छोड़े नही परान रे।।
जब्बर कर गोहार , उठा के हाथ अपन के।
माँगे बिन अब यार, मिलय हक नही सबन के।
कलजुग के भगवान, यही मन होगे संगी।
मोठ्ठा बर अनुदान, दुबर बर भारी तंगी।
जब सब जनता गाँव के, पनही धर के पाँव के।
हक ल आपन माँगथे, खूंटी मा टोपी टाँगथे।
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