बात के बड़का महल झन तान दे।
पेट खाली हे हवा अब आन दे।
तँय सियासत के कहानी झन सुना,
छोड़ ओला बाँध के अब पान दे।
पोठ चारी गाँव भर के कर डरे।
जा अपन घर मा घलो अब ध्यान दे।
मुड़ म चढ़ के एक दिन वो नाचही,
नीच मनखे ला बड़े झन मान दे।
रोज पथरा हा मनाये मानथे ,
वो नहीं माने करेजा चान दे।
झन गवा बिरथा उमर ला प्यार बर।
ये जवानी देश खातिर जान दे।
साग भाजी होय हे सपना सहीं,
रोज चटनी रोज बासी खान दे।
फेर काली मँय मयारू आ जहूँ।
रात होगे अब मोला घर जान दे।
मापनी 2122 2122 212
1 टिप्पणी:
बहुत सुंदर रचना करे हा।
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