2122 2122 212
भूख मनखे ला कहाँ ले जात हे।
आदमी हा आदमी ला खात हे।
रोज चर्चा होत हे अखबार मा,
राजनेता बइठ के पगुरात हे।
चाट के हम नून बासी खात हन,
प्याज आलू के कहाँ औकात हे।
प्यार के माने बदल गे आजकल,
जेब भारी देख दिल हरियात हे।
भ्रष्ट होगे सब व्यवस्था देख तो,
देश करजा मा बुड़े चिचियात हे।
धान के बिजहा लगा के रोत हन
खेत मा करगा खड़े अटियात हे।
का भरोसा हम करन बरसात के।
रोज बादर हा घलो तरसात हे।
कोन थारी भर मया परसे भला,
दार नइ हे तब रिसाए भात हे।

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