भूख गरीबी ले भले, जनता हे लाचार।
फुलत फरत हावे तभो, कइसे भ्रष्टाचार।
कइसे भ्रष्टाचार, नाग कस फन फैला के।
लीलत हावय देश, धरम ला बिख बगरा के।
निज स्वारथ जे लोग, बने हे चोर फरेबी।
हे उखरे बैपार, हमर ये भूख गरीबी।
बेचावत हे न्याव हा, खड़े बीच बाजार ।
संग धरे हे चोर के, अब जम्मो रखवार।
अब जम्मो रखवार, लूट के खा थे सबला।
काकर तिर गोहार, करय जी जनता अबला।
अपराधी मन पोठ, रोज होवत जावत हे।
लोग बने लाचार, न्याव हा बेचावत हे।
जन गन मन के साथ मा, हे अधिनायक कउन।
जय हे स्वारथ साधना, भाग्य विधाता मउन।
भाग्य विधाता मौन, खड़े हे काबर बोलय ।
लोकतंत्र मा लोक, कहाँ हे राज ल खोलय।
राजनीति हा बोंय, हवे ये बीज पतन के।
धन बल छल अटियाय, चलय ना जन गन मन के।
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