मेरे बारे में

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कोलिहा लवन , बलौदाबजार, छत्तीसगढ, India
नाम- मथुरा प्रसाद वर्मा पिता- स्व. जती राम वर्मा माता- श्रीमती पितरबाई वर्मा जन्मतिथि- 22-06-1976 जन्मस्थान - ग्राम -कोलिहा, जिला-बलौदाबाजार (छ ग ) कार्य - शिक्षक शा पु मा शाला लहोद, जिला बलौदाबाजार भाटापारा शिक्षा - एम् ए ( हिंदी साहित्य, संस्कृत) डी एड लेखन- कविता, गीत, कहानी,लेख,

हिरदे के बात कका

बता मत हिरदे के बात काका ।
करही  सारी दुनिया ह घात काका।
पर उपदेस कुसल बहुतेरे।
बांटत गियान साँझ सबेरे।
अपन भीतर झाँकय नहीं।
पुछही तोर औकात कका।
पोंगा पण्डित महिमा मण्डित।
बाँटत समाज करत विखण्डित।
सब स्वार्थ के खेल हरे जी,
मूर्खता हे जातपात कका।
बड़बोला मन, खाये मनमानी
सोजमतिहा नई पावय पानी।
सच गोठियाबे त झंझटिहा अस,
बदल गे अब हालात कका।

छत्तीसगढ़ी घनाक्षरी


1.
आज मोर देश मा हे, चारो कोती बेईमानी,
बाढ़त मंहगाई ले, लोग परेसान हे।
पक्ष अउ विपक्ष मा, माते हावे झगरा ह, 
जनता के हित बर, कोन ल धियान हे?
नेता मन मीठ मीठ, गोठ कर भुलवारे, 
मजदूरी किसानी मा, छुटत परान हे।
झन कही बात सहीं, तही बैरी बन जाबे,
चोर पहरेदार के,  बनगे मितान हे।

2.
छत्तीसगढ़ी भाखा ल, छत्तीसगढ़  म सँगी
राजभासा हक अब, देवाये ल परही।
उही कवि लेखक ह, रही इतिहास म जी,
जे निज भाखा बर,  जिही अउ मरही।
जे हा बैरी मन के जी, पाँव तरी परे रही,
उही बेशरम चारा, चार दिन चरही।
कहे परसाद ह जी,हाथ जोड़ पाव पर,
मर जा तै हक बर, पुरखा ह तरही।

3.
मया मा बंधा के गोरी, मैं हा तोर चोरी चोरी,
कारी कारी नैनन म, नैन अरझाये हौं।
भूख प्यास लागे नहीं,जिहां देखो तोरे सहीं,
रही रही गली गली , चक्कर लगाये हौं।
अब कोनो ताना मारे, कोनो मोला भुलावारे,
तारे-नारे तारे-नारे, गीत तोर गाये हौं।
बइहा सही घुमथौ, नाचत अउ झुमथौ,
घूम घूम तोरे संग,  पिरित लगाये हौं।

4
देश के भविष्य गढ़, पढ़-पढ़ पढ़-पढ़,
अनपढ़ झन रह , चल आगे बढ़ जी।
आखर के खेती कर, कर म कलम धर, 
अंधियारा मेटे बर, डट कर लड़ जी।
उबड़ खाबड़  रद्दा, जिनगी के हावे तभो
उठ-गिर गिर-उठ, पाहड़ मा चढ़ जी।
अड़बड़ गड़बड़, चारो कोती मचे हे जी,
सम्हल के चल तँय, जिनगी ल गढ़ जी।

5,
अब  कोनो ह काबर, हक बर लड़े नहीं,
जेला देख  तिही अब, मुड़ ल नवाये हे।
डर डर डर डर, जियत हे मर मर,
अत्याचारी बैरी करा, सब ला लुटाय हे।
इही माटी हरे जिन्हां, वीर नारायण सिंह,
 देश बर लड़ लड़ , शीश ल चढ़ाये हे।
गुंडाधुर जैसे वीर,बइरी के छाती चीर।
लहू के तरिया मा, तौर के नहाये हे।





यार गदहा रे।

झन सरमा तँय यार गदहा रे।
तोरे  सहीं   संसार गदहा रे ।
नारियाये बर सबे नारियाथे
तही ह  खाथस मार गदहा रे।

लड़ चुनाव मंत्री बन जाबे,
मिहनत हे बेकार गदहा रे।
पढहे लिखे मन करय मजूरी ,
सिस्टम हे बेकार गदहा रे।

का सासन अउ का परसासन ,
माते भ्रस्टाचार गदहा रे।
बड़े बड़े ल कोन सुधारय ,
संसद हे लाचार गदहा रे।

लगाये मुखउटा बाटय गियान,
तोरे रिस्तेदार गदहा रे ।
कतको चेला आघू पाछु,
रोज खड़े हे  दुवार गदहा रे।

नियत म तोर वफादारी हे,
तभे खड़े लाचार गदहा रे।
तहुँ हा ऊँचा पदबी पाबे,
बन थोड़ा मक्कार गदहा रे।

कहे प्रसाद पुकार गदहा रे,
झन करबे  कभू प्यार गदहा रे।

हो जाही कहूँ तोरो शादी

जिनगी तब बेकार गदहा रे।


का सोचत हस?


चल न संगी लोटा धर के ,खेत म जाबो ,का सोचत हस?
लहुटती बेरा मछरी धरे बर, तरिया मताबो, 
का सोचत हस?


सबके सुन, कर अपन मन के,काहत हे तेन ल काहन  दे ।
सब झन कहिथे पढ़े लिखे हस, तोर बुध तोरे मेर रहन दे।
नौकरी के अब आस छोड़, चल बाजा बजाबो, 
का सोचत हस? 

ओथिहा हो गे लोग बाग सब, जांगर टोर कमाथे कोन?
अब तो समझव चद्दर ओढ़ के,लुका जलेबी खाथे कोन?
चल जुरमिलके सुनता बना के, भट्ठी जाबो का सोचत हस!


नवा ज़माना के नवा चलन हे,तइहा  के गोठ ले ग बइहा ।
आज काल के लोग लइका बर,बिरथा हे बर पिपर छइंहा ।
चल बुढ़वा दाई दादा ला,घर ले भगबो, 
का सोचत हस।


पेट म सबके बइठे परेतिन,अउ  मुड़ म बइठे मसान।
नरपिशाच मन गिंजरत हावे,लहू पियत हे दिनमान।
एक मन्तरा हे,समझ बुझ के,ओट दे जाबो
का सोचत हस?

तलवार झन तलवार के धार देखव जी।


तलवार झन तलवार के धार देखव जी।
हुजूर आज के अखबार देखव जी।



राम ह टोर दे हे अपन मरजादा,
कलजुग म रावन के भरमार देखव जी।



जरत हे खेत खार , दुकाल के मारे,
ऊपर ले मंहगाई के मार देखव जी।



डाक्टर के फ़ीस सुन के मरीज ह मर गे
नर्स कहत हे बुखार देखव जी।



डरपोकना जनता रिश्वतखोर अधिकारी,
आउटसोर्सिंग से बने सरकार देखव जी।



छत्तीसगढ़िया सेर बन्द हे सरकस के पिंजरा म
कोलिहा मन करत हे इन्हे सीकर देखव जी।



गदहा अउ जोजवा मन , अकल के ठेकेदार हो गे
सिक्छा ह बेचात हे सरेबाजार देखव जी।



बहुत होंगे झन सहव, मार हथोड़ा जोर से
दीवार जुन्ना होंगे, दरार देखव जी।



सबे झन अपन ए कोन ल छोड़ दव
दिल म परसाद दुलार देखव जी













भूख

भूख अउ बड़हत हे, वो मन खात जात हे।
सब उंकर भोभस म , भरात जात हे ।


तभो ले भूख साले उंकर नई मिटाय,
लूट लूट के सब ल पचात जात हे।


जमीन जंगल, रुख राई, कहीं  नई बचीस
समसान तको ल पोगरात जात हे।


रेती गिट्टी, सिरमेंट छड़ अउ धुर्रा माटी,
सौहत सड़क ल निपटात जात हे।


वाह रे बेईमान , बाढ़त तुंहर खनदान,
कउवा कुकुर सही जम्मो ल बलात् जात हे।


का करय जनता, उन्डे पी के मन्द महुवा
बेसरम कस वो मन ह भोगात जात हे।


देख देख के  मन कल्पथे, त बोले बर परथे,
'परसाद' अब मति मोरो छरियात जात हे।


उजाला दिही

सपना भर निराला दिही।
रोज नवा घोटाला दिही।


नेता मन ह देस ल अपन,
डउकी , लइका , साला दिही।


चोर मन ल चाबी दे दे के,
फोकट म हमला ताला  दिही।


अखबार चलने वाला मन ल
रोज नवा मसाला दिही।


सिरमेंट रेती छड़ खवैया मन,
का भुखउ ल निवाला दिही।


काम नई देवय कोनो हाथ ल,
जपे बर सबला माला दिही।


हर  चौक म दारु भट्ठी,
अउ पिए बर पियाला दिही।


सबे परे हे खखाये-भुखाये,
कोन ह कोन ल काला दिही।


'परसाद' जला के घर अपन ल
कबतक दूसर ल उजाला दिही।

जिनगी म उकेरे पियार होही।


जिनगी म उकेरे पियार होही।
सिक्का के जीहां बौछार होही।

धन  बर बनही सबो रिस्ता नाता,
मया के डोरी तार तार होही।

दू कौड़ी  मा ईमान बेचाही ,
ये दुनिया ह सिरतोन बजार होही।

लबरा मन के दिन ह बहुरही,
सतवन्ता  के ऊजार होही।

पइसा के बाढ़ही  कतका ताकत
मनखे ह कतका अउ लाचार होही।

जनता लुटाही संझा बिहिनिया,
बैपारी मनके जब सरकार होही।

अब कौन बचाही काकर धन ल,
चोर मन जिहां पहरेदार होही।

कतको बरजबे कोनो नई माने,
परसाद' जिनगी तोरे ख्वार होही।



छत्तीसगढ़िया सेर।

भीख झन मांगव, अब तो जागव, होवत हे अंधेर।
 अब मुँह फाडव, अउ दहाड़व,  छत्तीसगढ़िया सेर।

बिल्होरे हे मिठलबरा मन, खेलत हावय खेल।
ऊंच पदबी अपने मन पाथे, दे के हमका ढकेल।

हमन चुगली-चारी करथन, अपने मन बर कैराही ।
हमन जुठा पतरी चाटन , वो मन रसगुल्ला खाही।

देर होतिस त कुछू नई कहितेन, होवत हे अंधेर।
अब मुह फाड़व अउ दहाड़व ,  छत्तीसगढ़िया सेर।

हमरे जंगल, हमरे भुंइया , तब ले हमीं भिखारी।
हम होगेन जोतनहा बइला , वो मन धरे तुतारी।

हमरे राज ले हमरे पलायन ,छुटत घर अउ दुवारी।
हमी बन गेन निच्चट कुटहा, खाथन उंकर गारी।

कुआँ खनव जी अब सुनता के, सुमत के टेरा टेर।
अब मुह फाड़व अउ दहाड़व, छत्तीसगढ़िया सेर।

हमरे गाँव,  सहर हे हमरे,  हमरे घर अउ दुवारी।
हमरे भाखा संस्कृति अब , खोजत हे चिन्हारी।

हमरे मन्दिर  देवता धामी,  वोमन बने पुजारी।
हमरे  मुड़ मा हमरे पनही, उंकर सोनहा थारी।

सुते रहव झन बेसुध हो के, देखव नजर ल फेर।
अब मुँह फाड़व , अउ दहाड़व ,छत्तीसगढ़िया सेर।

वो मन  साहूकार बने हे, नेता अउ बैपारी।
धन बल सब हो गे उखर,  हमर जिनगी उधारी।

सोन चिरईया,धानकटोरा ,छत्तीसगढ़ महतारी,
ओकर बेटा धरे कटोरा, छी कैसे लाचारी।

क्रांति के कुकरा  बासन दे ,  चढ़ के अब  मुंडेर।
अब  मुँह खोलव, अउ दहाड़व,  छत्तीसगढ़िया सेर।

मोर छत्तीसगढ़ी भासा हे।


सब भासा ले मीठ मयारू,
मोर छत्तीसगढ़ी भासा हे।


सुवा करमा अउ ददरिया, 
      पण्डवानी अउ जसगीत हे।


किस्सा कहानी आनी-बानी ,
      मया अउ पिरित हे ।


मुँह म ये रस घोरत रहिथे,
ये ह मीठ बतासा हे।

सब भासा ले मीठ मयारू ,
मोर छत्तीसगढ़ी भासा हे।



दाई के कोरा ले सीखे हवन,
       ये हमर गरब गुमान हे।
जे अप्पड़ के भासा समझे,
       सिरतोन वो नादान  हे।



हम तो सीना ठोक के कहिथन,
इही परान के आसा हे।

सब भासा ले मीठ मयारू,
मोर छत्तीसगढ़ी भासा हे।



जम्मो राज म अपने भासा म,
       होवत हे सब काम जी।
लिखथे -पढ़ते अपने भासा म,
       करथे जग म नाम जी।



हमर राज बर छत्तीसगढ़ी,
इही हमर अभिलासा हे।


सब भासा ले मीठ मयारु
मोर छत्तीसगढ़ी भासा हे।


बड़े- बड़े गुनी गियानी मन,
सहित एकर सिरजाये हे।

दुनियां भर म एकर मया के,
झंडा ल फहराये हे।


अपने घर म तभो ले काबर,
रही जाथे ये ह पियासा हे

सब भासा ले मीठ मयारु,
मोर छत्तीसगढ़ी भासा ये।



इस्कूल कालेज , कोट- कचहरी म,
छत्तीसगढ़ी बोलव जी।
विधानसभा के दुवारी ल,
महतारी बर खोलव जी।



बैरी मन ह खेल खेलत हे,
जस  सकुनी के पासा हे।

सब भासा ले मीठ मयारु,
मोर छत्तीसगढ़ी भासा ये।



हमर राज ल हमी  चलाबो,
नवा रद्दा अब गड़बो रे।
तभे  हमर बिकास होही।
जब अपन भासा म पढ़बो रे।



परबुधिया मन काय समझही,
का तोला  का मासा हे।

सब भासा ले मीठ मयारु,
मोर छत्तीसगढ़ी भासा हे।



लड़े बर परही त लड़बो,
छत्तीसगढ़ महतारी बर।
मरे बर परही त मर जाबो,
अपन घर अउ दुवारी बर।



हमरे राज म हमी भिखारी,
बस अतके हतासा हे।

सब भासा ले मीठ मयारु ,
मोर छत्तीसगढ़ी भासा हे।


बाबा किहिस मोर से।


बाबा किहिस मोर से
एक सवाल हे तोर से

ये रोज रोज चिल्लाने वाला मन कोन ये?
कोन ये?
कोन ये?



ये रोज रोज के रैली
बन्द करथे बड़पेली
ये मन कोन ये?
कोन ये ?
कोन ये ?



का ये मन भूख मरत हे? 
का इंकर पेट जरत हे?



का ये मन बेघर हे?
का ये मन नंगा हे।
का इकर मन के दंगा हे



मय अपन चेथी ल खजवायेव,
बने सचेव अउ गोठियायेव।



ए बाबा वो मन कैसे चिल्लाही
वो परबुधिया मन तो
मंद महुआ पी पी के बौरात हे।
फोकट के पाये बर लाइन लगत हे।



वो मन का  चिल्लाही,
वो मन तो दूसर के गोड़ म
दबे  परे हे।

इकर जिनगी ल तो 
बाहिरी गोल्लर मन चरे हे।



इकर नाव ले वो मन चिल्लात हे।
जेन मन येमन ल लूटत हे
अउ खात हे।

इकर भूक पियास ले 
अपन पियास  बुझात हे।


झूठ लबारी मार झन।

झूठ लबारी मार झन।
भूल ककरो उपकार झन।

आह घलो हा लग जाथे
छानही ककरो ओदार झन।

तीर तार के डूबकैया आस ,
भरे तरिया के पार झन।

हिरदय के मोर हाल पूछ के,
जरे म अउ नून डार झन।

बोर दे चाहे पार लगा,
गठबंधन सरकार झन।

तरी तरी मसकत मलाई,
दीया ल अभी बार झन।

रखवार हे गोल्लर ह इहाँ के,
रइचर ल अभी तार झन।

परसाद जे कोनो सरन म आवे,
कभू ओला दुत्कार झन।

शायरी मोर छत्तीसगढ़ के

उखर हक फूल नइ आवय, जे काँटा आन बर बोंही।
के दिनभर  हाँसही चाहे, कलेचुप साँझ के  रोही।
पिरा ला देख के ककरो , कभू तँय हाँस झन देबे, 
आज मोर साथ होवत हे, काली तोर साथ मा हो ही।

वो मोला देख भर लिही , गुलाबी गाल हो जाही।
प्रेम के फूल हा फूलही अउ बगरके गुलाल हो जाही।
भुलाये नइ सकय  कभू, एसो के होरी ला;
मया के रंग म रंग के , वो लाले लाल हो जाही।

तोर सुरता के गोटी हा गोड़ मा गड़ जाथे।
मया के पा के पंदोली  मुड़ मा चढ़ जाथे।
मँय सोज अपन रद्दा म आथव-जाथव फेर;
जब तोला देख लेथव मोर मति बिगड़ जाथे।

मया म मुँह ओथराबे, त तँय बीमार हो जाबे।
वोखर बर जान दे देबे,तँय अखबार हो जाबे।
पार मा बइठ के रोये ले कोंन ह पार पाये  हे;
उदिम कर तँय हा बुड़ जाबे या  वो पार  हो जाबे।

मोर घर छितका कुरिया अऊ, तोर महल अटारी हे ।।
तोर घर रोज महफिल अऊ, मोर सुन्ना दुवारी हे ।।
तहु भरपेट नई खावस, महु भरपेट नई खावव 
तोला  अब भूख नई लागय, अउ मोर  जुच्छा थारी हे ।।

सपना भर निराला दिही


सपना बने निराला दिही।
रोज नवाँ  घोटाला दिही।

नेता  बड़े हरय  देश  ला
डवकी,लइका, साला  दिही।

चाबी दे दे हवे चोर ला,
फ़ोकट मा अब ताला दिही।

अखबार चलाने वाला मन ला
रोज नवाँ मसाला दिही।

रेती,सिरमेंट,छड़ खाने वाला
भुखउ ला काबर निवाला दिही।

काम कोनो ला नई देवय
जपे बर सबला माला दिही ।

हर  चौक मा दारू भट्टी ,
हर हाथ म प्याला दिही।।

सबे इहाँ हे खाखाये भुखाय,
कोन हा  कोन ला,काला दिही।।

'प्रसाद' अपन घर ला जला जला के '
कब तक पर ला उजाला दिही।

मथुरा प्रसाद वर्मा 'प्रसाद'

अपन पियास बुझात हे


बबा किहिस मोर ले
एक सवाल हे तोर ले
ये जो रोज रोज  चीखने -चिचियाने वाला
मन कोन  ए ?


 जेन भुखाय हे ?
जेन पियासे हे?
जे  बेघर हे ?
जे  नंगा हे ?
का उकर दंगा हे?


में चेथी  ल  खजवावत
बने सोचेंव 

अउ गोठियायेव
ये बाबा तँय नइ जानस !
वो मन कइसे चिल्लाही ? 


वो बिचारा मन तो 

अपने मारे मरत
कलेचुप मौन हे
त तहीं  बता न रे नाती!
ये चिचियाने वाला कोन हे?  

कोन हे ? 
कोन हे?


मँय  कहवे बबा!
इही बात के तो रोना हे

इहाँ आन के गाय अउ 
आन के दुहना हे।

इहाँ उही मन चिल्लात हे /
जेन मन देश आजादी  के 

बाद ले  अब तक ,
हमर भूख अउ गरीबी ला 

सवारथ बर  भुनात हे/
हमर पियास ले, 

अपन पियास  बुझात हे।


* मथुरा प्रसाद  वर्मा "प्रसाद"

शिक्षा कब मिलही

तरिया पार म बइठ के 
 बाबा ह करे मुखारी।
आती जाती लोगन मन पूछय हाल।

अब नई पूछय कोनो कोनो ले
कहाँ जात हस
कब लहुटबे।
सबे झन 
अपन अपन म बूड़े हे । 

पढ़े लिखें के इही सुभीता
कोनों ला कोनों ले 
कोनों  मतलब नई हे।

गाँव गाँव  मा  स्कुल खुलगे।
बड़े बिहिनिया लोग लइका
स्कूल जाथे।

स्कूल मा अब लइका मन ला 
सब मिल जाथे।
खाना /पीना , 
कापी पुस्तक 
ओनहा कपड़ा  । 
शौचालय घलो अब स्कूले मा बनगे 
  चकाचक । 

गुनत रइथे काका दाई हा 
अब स्कूल मा लइका मन ला 
कब शिक्षा मिलही
जिहा हमर लइका
थारी धर के पढ़े बर जाथे । 


मथुरा प्रसाद वर्मा" प्रसाद'

छत्तीसगढ़ के पूत

भाजपा नेता माननीय श्री सोहन पोटाईजी नेएक जन सभा को सम्बोधित करते हुए आउट सोर्सिंग के खिलाफ खुलकर अपनी बात रखी। उनके साहस को सलाम।

बात तो सही बोलेव , पोटाई जी ।
आप तो मुह खोलेव , पोटाई जी।

आउट सोर्सिंग के सच बोले हव।
सरकार।के नियत खोले हव।
छत्तीसगढ़िया मजबूर के कतका।
कसाई के हाथ म छेरी जतका।
पार्टी अनुशासन टोरेव फेर ,
माटी के संग होलेव पोटाई जी।

माटी के तै कर्जा चूका दे।
चट्टू मन के मुड़ ल झुक दे।
छत्तीसगढ़िया शेर दहाड़े।
कुनीति के जबड़ा फाडे।
देर करे फेर आखिर बोल े
भेद बड़े खोलेव , पोटाई जी।

जिए-खाये बर परदेश जाथन।
जांगर तोर हमें कामथन।
तभो ले नई हे हमर बनौती।
जिनगी हमर रोज।चुनौती।
चीख चीख के आज गली म
पीरा ल हमर रो लेव पोटाई जी ।

बाहिर के जब नेता मंत्री।
बाहिर के सब ऑफिसर  सन्तरी।
का करही ये हमर उद्धार।
बैपारि ये करही बैपार ।
छत्तीसगढ़िया जोहर हे तोला
स्वाभिमान दिल म घोलेव , पोटाई जी।

मथुरा प्रसाद वर्मा प्रसाद

तै पढ़ा तै पढ़ा तै पढ़ा गुरूजी।

तै पढ़ा,तै पढ़ा , तै पढ़ा गुरूजी।



रहय कोनो झिन अड़हा गुरूजी।।
तै पढ़ा, तै पढ़ा ,तै पढ़ा गुरूजी।।



एक-एक कक्षा,सौ सौ लइका;
              हर लइका ल ज्ञान दे ।
का व्यवस्था,का बेवस्था ;
             एला तै  झिन धियान दे।

तोरे भरोसा हे कइसनो कर फेर;
तही ह जोखा ल मढ़ा गुरूजी।।


तै पढ़ा, तै पढ़ा ,तै पढ़ा गुरूजी।।


जेन लइका स्कूल नई आवय,
               ओला स्कूल म लाने ल परही।
निति हे शासन के चाहे बिन चाहे ;
                   तोला ,ओला माने ल परही ।

शिक्षा झिन मिलय फेर साक्षर बनाना हे।
नाव ल रजिस्टर म चढ़ा गुरूजी।।


तै पढ़ा तै पढ़ा तै पढ़ा गुरूजी ।



फोकट म सब ला ,सब कुछ चाही
                 नवा जमाना के इही लोकतन्त्र ये ।
चलनी म चाल फेर रजगा झन निकालबे
            सस्ता लोकप्रियता के इही मूलमन्त्र ये।

खिंच-तान अउ ढकेल-पेल फेर;
सबो ल आघू बढ़ा गुरूजी।


तै पढ़ा, तै पढ़ा, तै पढ़ा गुरूजी।



न बने बिजहा,न उपजाऊ भुइयां;
                 न बने खातू , न हवा पानी ।।
परही तुतारी , तुही ल रे  बइला;
                   तोरे भरोसा होही किसानी।।



न समय पे तोला मिलही रे चारा
फेर फसल रहय झन  कड़हा गुरूजी ।।


तै पढ़ा,तै पढ़ा, तै पढ़ा गुरूजी।



   मथुरा प्रसाद वर्मा "प्रसाद'
   ग्राम-कोलिहा ,लवन 
       बलौदाबाजार  छ ग 
           8889710210 ु

मुक्तक छत्तीसगढ़ी



                         1.
बहुत अभिमान मँय करथौं,छत्तीसगढ के माटी मा।
मोर अंतस जुड़ा जाथे, बटकी भर के बसी मा।
ये माटी नो हाय महतारी ये, एकर मान तुम करव 
बइला आन के चरथे, काबर  तुम्हर बारी मा।
                       2
मँय तोरे नाँव लेहुँ , तोरे गीत  गा के मर  जाहूं ।।जे तै इनकार कर देबे,  कुछु खा के मर जाहुं ।।अब तो लगथे ये जी हा जाही,संगी तोर मया मा,  
कहुँ हाँ कही देबे, त मय पगला के मर जाहुं ।।

                      3
ये कइसे पथरा दिल ले मँय हा काबर प्यार कर डारेंव ।। 
जे दिल ला टोर के कईथे,का अतियाचार कर डारेंव ।।
नइ जानिस वो बैरी हा, कभू हिरदे के पीरा ला, 
जेकर मया जिनगी ला,मँय अपन ख़्वार कर डारेंव।।

                     4
मोरो घर मा देवारी कस, दिया दिनरात जरत हे फेर।।
महूँ ला देख के कोनो,अभी ले हाथ मलत हे फेर।।
मँय तोरे नाँव  ले ले के, अभी ले प्यासे बइठे हौं
मोरो चारो मु़ड़ा घनघोर, बादर बरसत हे फेर।।

                    5

महूँ तरसे  हँव तोरे बर, तहुँ ला तरसे ला परही 
मय कतका दुरिहा रेंगे हौ,तहूँ ला सरके ला परही।।
मँय तोरे नाँव के चातक,अभी ले प्यासे बइठे हौं
तड़प मोर प्यास  मा  होही त तोला बरसे ला परही।
                   6
मोर घर छितका कुरिया अऊ, तोर महल अटारी हे ।
तोर घर रोज महफिल अऊ,मोर सुन्ना दुवारी हे ।।
तहुँ भर पेट नइ खावस,महुँ भर पेट नइ खावव 
तोला अब भूख नइ लागय,,अउ मोर जुच्छा थारी हे ।

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कभू करथे दिल मोरो,  के मँय देवदास हो जातेंव।।
नई परतेंव तोर  चक्कर मा त कुछु ख़ास हो जातेंव।।
अगर होतिस सिलेबस मा,तोरे रूप के चर्चा;
ता एसो के परीक्षा मा ,महुँ हा पास हो जतेंव।।

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उही मा राजी ख़ुशी हे, जेला हम पा जाथन ।
प्यार से कोनो बलाथे, त हममन आ जाथन।
तुहीं मन राख लव , मया म तराजू धर के,
हम तो मुहब्बत म मलोवन,घलो बेचा जाथन।

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तहीं हा टोर के बँधना मया के चल देथस।
कुँवर करेजा ला गोड़ मा मसल देथस।
मँय खड़े हावव अभी ले तोर अगोरा मा,
तीर मा आ के तँय हा बदल देथस।

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