चल न संगी लोटा धर के ,खेत म जाबो ,का सोचत हस?
लहुटती बेरा मछरी धरे बर, तरिया मताबो,
का सोचत हस?
सबके सुन, कर अपन मन के,काहत हे तेन ल काहन दे ।
सब झन कहिथे पढ़े लिखे हस, तोर बुध तोरे मेर रहन दे।
नौकरी के अब आस छोड़, चल बाजा बजाबो,
का सोचत हस?
ओथिहा हो गे लोग बाग सब, जांगर टोर कमाथे कोन?
अब तो समझव चद्दर ओढ़ के,लुका जलेबी खाथे कोन?
चल जुरमिलके सुनता बना के, भट्ठी जाबो का सोचत हस!
नवा ज़माना के नवा चलन हे,तइहा के गोठ ले ग बइहा ।
आज काल के लोग लइका बर,बिरथा हे बर पिपर छइंहा ।
चल बुढ़वा दाई दादा ला,घर ले भगबो,
का सोचत हस।
पेट म सबके बइठे परेतिन,अउ मुड़ म बइठे मसान।
नरपिशाच मन गिंजरत हावे,लहू पियत हे दिनमान।
एक मन्तरा हे,समझ बुझ के,ओट दे जाबो
का सोचत हस?
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