भूख अउ बड़हत हे, वो मन खात जात हे।
सब उंकर भोभस म , भरात जात हे ।
तभो ले भूख साले उंकर नई मिटाय,
लूट लूट के सब ल पचात जात हे।
जमीन जंगल, रुख राई, कहीं नई बचीस
समसान तको ल पोगरात जात हे।
रेती गिट्टी, सिरमेंट छड़ अउ धुर्रा माटी,
सौहत सड़क ल निपटात जात हे।
वाह रे बेईमान , बाढ़त तुंहर खनदान,
कउवा कुकुर सही जम्मो ल बलात् जात हे।
का करय जनता, उन्डे पी के मन्द महुवा
बेसरम कस वो मन ह भोगात जात हे।
देख देख के मन कल्पथे, त बोले बर परथे,
'परसाद' अब मति मोरो छरियात जात हे।
सब उंकर भोभस म , भरात जात हे ।
तभो ले भूख साले उंकर नई मिटाय,
लूट लूट के सब ल पचात जात हे।
जमीन जंगल, रुख राई, कहीं नई बचीस
समसान तको ल पोगरात जात हे।
रेती गिट्टी, सिरमेंट छड़ अउ धुर्रा माटी,
सौहत सड़क ल निपटात जात हे।
वाह रे बेईमान , बाढ़त तुंहर खनदान,
कउवा कुकुर सही जम्मो ल बलात् जात हे।
का करय जनता, उन्डे पी के मन्द महुवा
बेसरम कस वो मन ह भोगात जात हे।
देख देख के मन कल्पथे, त बोले बर परथे,
'परसाद' अब मति मोरो छरियात जात हे।
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