जब मात पिता कहना सुनके, मन मा गुन काज सँवारय बेटी।
परिवार रहे सुख मा गुनके, विपदा सुख -त्याग निवारय बेटी।
अभिमान हरे घर के कुल के, लिख के पढ़के कुल तारय बेटी।
जिनगी भर तो लड़थे दुख ले,पर के सुख खातिर हारय बेटी।
परिवार रहे सुख मा गुनके, विपदा सुख -त्याग निवारय बेटी।
अभिमान हरे घर के कुल के, लिख के पढ़के कुल तारय बेटी।
जिनगी भर तो लड़थे दुख ले,पर के सुख खातिर हारय बेटी।
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