चौपई छन्द विधान : 15,15 अंत मे गुरु लधु 21
कइसे दिन आगे हे आज। नेता बन गे गिधवा बाज।।
टूटत हे जनता के साँस। नोच नोच के खाँवय माँस।।
जइसे खस्सू खजरी खाज। नाचय कूदय अइसे आज।
नइ लागय कोनो ला लाज। कहाँ जात हे आज समाज। ।
गली गली मा नेता रोज। छुछुवावत हे चारा खोज।।
गुरतुर बोली मन भरमाय। लाज सरम ला बेच के खाय।।
लोक तंत्र मा अइसन काम। खादी होगे हे बदनाम।।
वर्दी बन के इखर गुलाम। रोज मचावय कत्लेआम।।
अपन राग अउ अपने ढोल। बजा बजा के खोलय पोल।।
जेती मतलब ओती डोल। अउ स्वारथ बर हल्ला बोल।।
हर आफिस मा खुले दुकान। बाबू साहब खावय पान।।
जब जब माँगय पानी चाय। जनता हा नँगरा हो जाय।।
बिना घूस नइ होवय काम। नेता अफसर सब बइमान।।
फोकट खा जनता नादान। लोक तंत्र के छूटय परान।।
कमा कमा के होवय लाल, नेता अधिकारी अउ दलाल।
मौका पावय झडकय माल। बिगड़े हे सबझन के चाल।
हितवा बन के गला लगाय। मौका पा के छुरी चलाय।।
मनखे कुकुर सही छुछुवाय। येखर ओखर पाछू जाय।
राजनीत मा कोन ह साव। बेचावत कौड़ी के भाव।।
जतका बड़े बड़े हे नाँव। काला बचाव काला खाँव ।।
पाही कोन इँखर जी पार। गल जाए बस अपने दार।।
मार लबारी भर भण्डार । देश धरम के बंठाधार ।।
लबरा मन बइठे दरबार। माते हावे भ्रष्टाचार।।
जनता हो गे हे लाचार। त्राही त्राही करे पुकार।।
बनके सिधवा आवय द्वार। चरण धरे करके गोहार।।
जोड़ तोड़ बनगे सरकार। मिलगे बँगला मिलगे कार।।
कइसे दिन आगे हे आज। नेता बन गे गिधवा बाज।।
टूटत हे जनता के साँस। नोच नोच के खाँवय माँस।।
जइसे खस्सू खजरी खाज। नाचय कूदय अइसे आज।
नइ लागय कोनो ला लाज। कहाँ जात हे आज समाज। ।
गली गली मा नेता रोज। छुछुवावत हे चारा खोज।।
गुरतुर बोली मन भरमाय। लाज सरम ला बेच के खाय।।
लोक तंत्र मा अइसन काम। खादी होगे हे बदनाम।।
वर्दी बन के इखर गुलाम। रोज मचावय कत्लेआम।।
अपन राग अउ अपने ढोल। बजा बजा के खोलय पोल।।
जेती मतलब ओती डोल। अउ स्वारथ बर हल्ला बोल।।
हर आफिस मा खुले दुकान। बाबू साहब खावय पान।।
जब जब माँगय पानी चाय। जनता हा नँगरा हो जाय।।
बिना घूस नइ होवय काम। नेता अफसर सब बइमान।।
फोकट खा जनता नादान। लोक तंत्र के छूटय परान।।
कमा कमा के होवय लाल, नेता अधिकारी अउ दलाल।
मौका पावय झडकय माल। बिगड़े हे सबझन के चाल।
हितवा बन के गला लगाय। मौका पा के छुरी चलाय।।
मनखे कुकुर सही छुछुवाय। येखर ओखर पाछू जाय।
राजनीत मा कोन ह साव। बेचावत कौड़ी के भाव।।
जतका बड़े बड़े हे नाँव। काला बचाव काला खाँव ।।
पाही कोन इँखर जी पार। गल जाए बस अपने दार।।
मार लबारी भर भण्डार । देश धरम के बंठाधार ।।
लबरा मन बइठे दरबार। माते हावे भ्रष्टाचार।।
जनता हो गे हे लाचार। त्राही त्राही करे पुकार।।
बनके सिधवा आवय द्वार। चरण धरे करके गोहार।।
जोड़ तोड़ बनगे सरकार। मिलगे बँगला मिलगे कार।।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें