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कोलिहा लवन , बलौदाबजार, छत्तीसगढ, India
नाम- मथुरा प्रसाद वर्मा पिता- स्व. जती राम वर्मा माता- श्रीमती पितरबाई वर्मा जन्मतिथि- 22-06-1976 जन्मस्थान - ग्राम -कोलिहा, जिला-बलौदाबाजार (छ ग ) कार्य - शिक्षक शा पु मा शाला लहोद, जिला बलौदाबाजार भाटापारा शिक्षा - एम् ए ( हिंदी साहित्य, संस्कृत) डी एड लेखन- कविता, गीत, कहानी,लेख,

रूपमाला : मुक्तक


रूपमाला : छन्द विधान

( 2122  2122  , 2122 21)× 4

तोर बिन ये जिंदगानी, हे कुलुप अँधियार।
मोर जम्मो साधना ला, तँय करे साकार।।
मँय उहाँ तक जा सकत हँव, हाथ थामे तोर।
एक धरती हा सिराथे, जब छितिज के छोर।।

तँय बढ़ा के मोह माया लूट ले हस चैन।
मँय खड़े हँव राह देखत, हे थके अब नैन।।
का लगा के रोग चल दे, तँय मया के यार।
आदमी मँय काम के अब, हो घलें बेकार।।
आदमी अच्छा भला मँय , हो घलें बेकार।।

कैद होगे आज बचपन, अउ जवानी मोर।
होत हे काबर अकेल्ला, अब बुढापा तोर।।
कोन घर मा बाँध देथे , खींच के दीवार।
आज मोबाइल तको तो, बाँटथे परिवार।।

हे शरद के पूर्णिमा मा, चंद्रमा   हर गोल।
आज चंदा हा धरे हे , रूप जी अनमोल।।
हे जगत के जीव मन बर,मोहनी कस रात।
ओस बन के आज अमरित, बरसथे बरसात।।

सांस मोरे जब जुड़ाए, तोर अचरा पाँव।
जब जनम लौं मँय दुबारा, तोर ममता छाँव।।
मोर दाई  तोर बर मँय, हाँस के दँव प्रान।
हम रहन या मत रहन वो, तोर बाढ़य मान।।

तोर सुरता अब बही रे, नैन बर बरसात।
ढेंकना कस सोय दसना, चाबथे दिन रात।।
तँय करे चानी करेजा , साथ छोड़े मोर।
मँय उही रद्दा म करथौं , अब अगोरा तोर।।

आज तक देखव न सपना, यार तोरे बाद।
मँय मया बर काकरो अब , नइ करँव फरियाद।।
तोर सुरता ला सजाके,पूजथौं दिनरात।
रोज करथे मोर कविता, तोर ले अब बात।।

मन भटकथे रे मरुस्थल, नइ मिलय अब छाँव।
खोजथौं मँय बावरा बन, अब मया के गाँव।।
डगमगाथे मोहनी रे, मोर अब विस्वास।
कोन जाने कब बुताही, मोर मन के प्यास।।

तोर खातिर मोर जोड़ी, कोन पारा जाँव।
कोन तोरे घर बताही, कौन तोरे नाँव।।
तँय बतादे सावरी रे, मोर सपना सार।
कोन होही मोर सोये, नींद के रखवार।।

जोगनी बन जेन लड़थे, रात भर अँधियार।
वो बिहिनिया मान जाथे, रोशनी ले हार।।
कोंन जाने कब सिराही,देश मा संग्राम।
रार ठाने हे भरत हा, रोय राजा राम।।

गाँव देथे तब सहर हर, पेट भरथे रोज।
गाँव हर बनिहार होगे, सहर राजा भोज।।
गाँव सिधवा मोर हावे, अउ शहर मक्कार ।
आदमी के खून चूसे, रोज ये बाजार।।


हाथ ला दे काम के तँय, साल भर अधिकार।
भीख नइ माँगन कभू हम हन भले बनिहार।।
हम कमाबो टोर जाँगर ,दे अपन ये प्राण।
हाथ धर छेनी हथौड़ी , देश बर निर्माण।।

साँझ दे के आन ला मँय हर बिसाथव घाम।
साँस चलही मोर जब तक नइ करँव आराम।।
मँय किसानी ला करे बर लें उधारी तोर।
कोन कर्जा ला  चुकाही जान जाथे मोर।।
मँय किसानी छोड़ आगें अब सहर मा तोर।

मुड़ म बाँधे लाल पागा, डोकरा हरसाय।
आज नाती के बराती, बर बबा अघुवाय।।
हे कहाँ अब डोकरी हा, डोकरा गे भूल।
छोकरा बन अब गली मा, बाँटथे जी फूल।।

पाँख होतिस मँय उड़ाके , आँव तोरे पास।
मोर मन के भावना हा, खोजथे आगास।।
तँय चले गे मोर जोड़ी,छोड़ के परदेश।
मोर चोला हा तरसथे , पाय बर सन्देश।।

रूप अइसन हे सजाए, सालहो सिंगार।
लान दे ना डोकरी बर, डोकरा तँय हार।।
हे रचाए हाथ मेहदी, अउ महावर पाँव।
ओठ में लाली लगा के,घूमे सारा गाँव।।

जान जाए फेर मोला, देश खातिर आज।
बात अइसन बोलना हे, खोल ले आवाज।।
बाद मा बइरी ल होही, जे सजा तँय यार।
देश के गद्दार मन ला, आज गोली मार।।

जेन थारी खाय छेदय, अब उही ला लोग।
जेल मा हे फेर भोगे, रोज छप्पन भोग।
कोन हे आतंकवादी, मन घलो के साथ।
खोज के वो लोग मनला, आज कातव हाथ।

मोर माटी ला  उही मन, नइ  लगावै माथ।
जेन बैरी के मितानी, बर करत हे घात।
साँप बन के लील देथे, देश के सुख चैन।
अब गटारन खेलबो रे, हेर उखरे नैन।

तोर खातिर मोर जोड़ी, कोन पारा जाँव।
कोन तोरे घर बताही, कौन तोरे नाँव।
तँय बतादे सावरी रे, मोर सपना सार।
कोन होही मोर सोये, नींद के रखवार।

छोड़ दे तँय आलसी ला, बात सुनले मोर।
मेहनत के संग आही,गाँव मा अब भोर।
हमन शिक्षा  जोत घर घर,चल जलाबो यार।
लोग लइका हमर पढ़ के, बन जही हुसियार।

गाँव मोरो आज होतिस, सब डहर खुशहाल।
अब किसानी मा कमाई, होय सालोसाल।
चाहिये ना गाँव ला जी, काकरो उपकार।
बस फसल के मोल दे दय, अब बने सरकार।

गाँव देथे तब सहर हा , पेट भरथे रोज।
फेर मोटाके बने फिरथे ,अपन राजाभोज।
गाँव सिधवा मोर हावे, अउ शहर मक्कार ।
खून पी के हाड़ चूसे, रोज ये बाजार।

आज तक पाँवव न सपना देख तोरे बाद।
अब मया बर काकरो मँय , नइ करँव फरियाद।
तोर सुरता ला सजाके,देखथौं दिनरात।
रोज करथे मोर कविता, तोर ले अब बात।

मन भटकथे रे मरुस्थल, नइ मिलय अब छाँव।
खोजथौं रे बावरा बन, मँय मया के गाँव।
डगमगाथे मोहनी रे, मोर अब विस्वास।
कोन जाने कब बुताही, मोर मन के प्यास।


तोर सुरता रोज आथे, फेर तँय नइ आय।
मोर जिनगी खेत परिया, अउ घटा तरसाय।
का करव मय यार कइसे, तोर ले हो बात।
रोज बदली हर घुमड़थे, होय ना बरसात ।

आ जथे चुपचाप भीतर , याद हा अब तोर।
पा जथे सुनसान खोली, कस करेजा मोर।
तोर पीरा सालथे रे, घाव ला जब मोर।
मेट के मँय फेर लिखथव, नाँव ला तब तोर।

खींच लानिस तीर सबला , तोर सुरता आज।
तोर सुग्घर गीत कविता, मोहनी आवाज।
कोन कहिथे तँय चलेगे, छोड़ के संसार।
गीत तोरे ले जही तोला समय के पार।1।

जेन ला रखवार राखन, हे उही मन चोर।
कोन जाने आज कइसे, गाँव आही भोर ?
(कोन जाने अब कहाँ ले, गाँव आही भोर)
पेज पसिया बर लड़त हम, जिन्दगी भर रोन ।
(पेट के खातिर तको अब, कब तलक हम रोन।)
मोर बाँटा के अँजोरी , लेग जाथे कोन ?

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