हरिगीतिका 2212, 2212, 2212, 2212
मत हार के तँय बइठ जा ,ये हार रद्दा जीत के।
काटा घलो हा गोड़ के, रचथे कहानी बीत के।
चाहे ठिकाना दूर हे, अब बिन रुके चलते चलो।
होथे उही मन हर सफल,जे उठ जथे गिरके घलो ।
हिम्मत करो डटके बने,कल के फिकर ला छोड़ दो।
कर के भरोसा आप के ,कनिहा बिपत के तोड़ दो।
कइसे मुसीबत हारथे, तँय देख ले ललकार के।
अब कर उदिम बस जीत बर,मत हार मानो हार के।
---//////------
सब जीव मन तड़फत हवे,व्याकुल हवे संसार हा।
अब ताप मा तनमन जरय, आगी बरत हे खार हा।
तरिया सबे अब अउटगे,अउ खेत मन परिया परे।
तँय भेज दे अब नेवता घनमेघ ला धरती तरे।
बरखा बने बरसे तभे ,होही फसल हर धान के।
हम काम कर दे हन अपन,अब आसरा भगवान के।
नागर चले जाँगर चले, बादर चले तब काम के।
सब खेत ला जोतत हवन, अब हम भरोसा राम के।
सिधवा हरन ,बइला हरन,तँय चाब ले ,पुचकार ले।
रिस बात के मानन नही,जीभर तहूँ दुत्कार ले ।
हम घर अपन, मजदूर हन, मालिक हमर आने हरे।
छत्तीसगढ़ के भाग ला, हे आन मन गिरवी धरे।
-------$$$$------
सब जानवर बेघर करे, जंगल तहीं , हा काट के।
कब्जा करे जंगल घलो,नरवा नदी ला पाट के।
तँय नास दे पर्यावरण, गरहन लगाए छाँव मा।
हाथी तको,बघवा घलो , वन छोड़ आ थे गाँव मा।
अब बेंदरा ,आ के शहर, उत्पात करथे टोरथे।
वो आदमी के जिंदगी , ला जोर से झकझोरथे।
हम पूँछथन, भगवान ले ,ये का तमाशा रोज के।
जब भूख लागे पेट मा,चारा सबेेझन खोज के।
जंगल कहाँ हरियर हवे, चारा घलो पाही कहाँ।
तँय घर उजारे हस उखर, सब जीव मन जाही कहाँ।
अब जानवर मन तोर घर, आथे बचाये प्रान ला।
रोथस तभो तँय देख के , अपने अपन नुकसान ला ।
करनी अपन ,अब भोगबे , रोबे तहूँ पछताय के।
जब भूख लगही पेट मा ,पाबे नहीँ कुछु खाय के।
टोटा सुखाही प्यास मा, पाबे पिये पानी नहीँ।
तँय सोच ले ,जंगल बिना, अब तोर जिनगानी नहीं।
मत हार के तँय बइठ जा ,ये हार रद्दा जीत के।
काटा घलो हा गोड़ के, रचथे कहानी बीत के।
चाहे ठिकाना दूर हे, अब बिन रुके चलते चलो।
होथे उही मन हर सफल,जे उठ जथे गिरके घलो ।
हिम्मत करो डटके बने,कल के फिकर ला छोड़ दो।
कर के भरोसा आप के ,कनिहा बिपत के तोड़ दो।
कइसे मुसीबत हारथे, तँय देख ले ललकार के।
अब कर उदिम बस जीत बर,मत हार मानो हार के।
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सब जीव मन तड़फत हवे,व्याकुल हवे संसार हा।
अब ताप मा तनमन जरय, आगी बरत हे खार हा।
तरिया सबे अब अउटगे,अउ खेत मन परिया परे।
तँय भेज दे अब नेवता घनमेघ ला धरती तरे।
बरखा बने बरसे तभे ,होही फसल हर धान के।
हम काम कर दे हन अपन,अब आसरा भगवान के।
नागर चले जाँगर चले, बादर चले तब काम के।
सब खेत ला जोतत हवन, अब हम भरोसा राम के।
सिधवा हरन ,बइला हरन,तँय चाब ले ,पुचकार ले।
रिस बात के मानन नही,जीभर तहूँ दुत्कार ले ।
हम घर अपन, मजदूर हन, मालिक हमर आने हरे।
छत्तीसगढ़ के भाग ला, हे आन मन गिरवी धरे।
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सब जानवर बेघर करे, जंगल तहीं , हा काट के।
कब्जा करे जंगल घलो,नरवा नदी ला पाट के।
तँय नास दे पर्यावरण, गरहन लगाए छाँव मा।
हाथी तको,बघवा घलो , वन छोड़ आ थे गाँव मा।
अब बेंदरा ,आ के शहर, उत्पात करथे टोरथे।
वो आदमी के जिंदगी , ला जोर से झकझोरथे।
हम पूँछथन, भगवान ले ,ये का तमाशा रोज के।
जब भूख लागे पेट मा,चारा सबेेझन खोज के।
जंगल कहाँ हरियर हवे, चारा घलो पाही कहाँ।
तँय घर उजारे हस उखर, सब जीव मन जाही कहाँ।
अब जानवर मन तोर घर, आथे बचाये प्रान ला।
रोथस तभो तँय देख के , अपने अपन नुकसान ला ।
करनी अपन ,अब भोगबे , रोबे तहूँ पछताय के।
जब भूख लगही पेट मा ,पाबे नहीँ कुछु खाय के।
टोटा सुखाही प्यास मा, पाबे पिये पानी नहीँ।
तँय सोच ले ,जंगल बिना, अब तोर जिनगानी नहीं।
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