हाथ जोर के बोलय, नरियर आज।
मोर मुक्ति हो कइसे , अब महराज।
मन्दिर मा चढ़ चढ़ के , फेर बजार।
काबर बेंचव मोला, बारम्बार।
आय भगत मन श्रद्धा, ले के रोज।
फूल पान अउ नरियर, लाने खोज।
रोज भगत मन करथे ,कतको दान।
सोचय खुश होही जी, अब भगवान।
देवी देवता नही , माँगय दान।
रोज पुजारी बेचय, फेर समान।
मन्दिर के आघू मा , सबे दुकान।
मोर करत हे काबर , अब अपमान।
मोरो आत्मा करथे, जी चित्कार।
नरियर फोरव कर दव , अब उद्धार।
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