किरपा गुरु के सार हे, ये तन माटी जान।
जभे गढ़े गुरु हाथ ले, बन जाथे भगवान।
गुरु वशिष्ठ होतिस नहीं, कोंन बनातिस राम।
मर्यादा के पाठ ला, काकर पढ़ते नाम।
गुरुवर श्रद्धा रूप हे, अउ मन के विस्वास।
बिन गुरु जग अँधियार हे, गुरुजी हे परकास।
गुरु ब्रम्हा गुरु विष्णु हे, अउ गुरु जान महेश।
गुरु सउहत भगवान हे, मन के हरथे क्लेश।
पारस गुरु के हाथ हे, लोहा होथे सोन।
चरण छु के गुरु आपके, कलुष कटे सिरतोन।
गुरुजी गढथे जिन्दगी, ये तन माटी ताय।
तपा ज्ञान के आँच मा, सबके दोष जराय।
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