मेरे बारे में

मेरी फ़ोटो
कोलिहा लवन , बलौदाबजार, छत्तीसगढ, India
नाम- मथुरा प्रसाद वर्मा पिता- स्व. जती राम वर्मा माता- श्रीमती पितरबाई वर्मा जन्मतिथि- 22-06-1976 जन्मस्थान - ग्राम -कोलिहा, जिला-बलौदाबाजार (छ ग ) कार्य - शिक्षक शा पु मा शाला लहोद, जिला बलौदाबाजार भाटापारा शिक्षा - एम् ए ( हिंदी साहित्य, संस्कृत) डी एड लेखन- कविता, गीत, कहानी,लेख,

मनहरण घनक्षरी

खुद ला बड़े कहे मा, 
कोनो बड़े होय नहीं,
उही बड़े होथे  जेला 
बड़े कहे  लोग हा।

अभिमानी मनखे ला,
 कोनों हर भाय नहीं,
फोकट बढ़ाई मारे , 
बाढ़ जाथे रोग हा।

पर के जे हक मारे, 
लूट लूट धन जोरे,
महल अटारी ताने,
 बिरथा हे भोग हा।

मनखे के हलाये ले, 
एक पान हाले नहीं, 
प्रभु के बनाए ले ही , 
होथे जी संजोग हा।

गीत : छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, दुनियाँ ला ये बताना  हे ।
आधा  पेट  खा  के  रे  संगी, जाँगर  टोर कमाना हे ।
सोना-चाँदी, हीरा-मोती, इहाँ के धुर्रा माटी हे !
तभो ले शोषित दलित गरीबहा, छत्तीसगढ़ के वासी हे ।
रतिहा पहागे अब तो संगी .. नवा बिहनिया लाना हे ।
आधा पेट .....................
खेत हमर कागद हे अऊ, कलम हमर बर नाँगर हे ।
हरियर-हरियर धान हमर करम के उज्जर आखर हे ।
कौनो रहय अब अनपढ़ झन, पढ़ना अऊ पढ़ाना हे ।
आधा पेट ..........................
जागे-जागे रहना हे सँगी करना हे देश के रखवारी ।
बन रखवार करत हे बैरी मन हा घर घर मा चोरी ।
बेंच दिही लालच मा आ के , इंखर  का ठिकाना हे  ।
घर मा लुकाये चोर मन ले मोर छत्तीसगढ़ ला बचाना हे।
मथुरा प्रसाद वर्मा

छत्तीसगढ़ी व्यंग्य : तँय पढ़ा,तँय पढ़ा तँय पढ़ा गुरूजी ।


तँय पढ़ा, तँय पढ़ा, तँय पढ़ा गुरूजी ।
अब कोनो रहय झन अड़हा गुरूजी।
तँय पढ़ा, तँय पढ़ा, तँय पढ़ा गुरूजी ।

एक-एक कक्षा, सौ-सौ लइका,
फेर हर लइका ल ज्ञान दे।
का व्यवस्था हे का बेवस्था ,
एला तँय झन धियान दे।

तोरे भरोसा हे कइसनो कर फेर,
तहीं ह जोखा मढ़ा गुरूजी।
तँय पढ़ा, तँय पढ़ा, तँय पढ़ा गुरूजी ।

जेन लइका स्कूल नइ आवय,
ओला स्कूल म लाने ला परही।
नीति हे शासन के चाहे बिन चाहे,
तोला सबो ला माने ला परही ।

सीखय भले झन, फेर साक्षर कहाही ,
नाँव ला  रजिस्टर म चढ़ा गुरूजी।
तँय पढ़ा,तँय पढ़ा, तँय पढ़ा गुरूजी ।

फोकट म सबला,सब कुछ चाही,
नवाँ जमाना के इही लोकतंत्र ये ।
चलनी म चाल फेर रजगा झन निकाल, सस्ता लोकप्रियता के इही मूलमंत्र ये।

खिंच-तान अउ ढकेल-पेल फेर,
सबो ल आगु बढ़ा गुरूजी।
तँय  पढ़ा, तँय पढ़ा, तँय पढ़ा गुरूजी ।

न बने बिजहा,न उपजाऊ भुइयां,
न बने खातू ,न हवा पानी ।
परही तुतारी, तुही ल रे बइला,
 तोरे भरोसा होही किसानी ।

भले भूख मरबे नइ पाबे चारा,
फेर फसल रहय झन  कड़हा गुरूजी ।
तँय  पढ़ा,तँय  पढ़ा तँय पढ़ा गुरूजी ।


   मथुरा प्रसाद वर्मा "प्रसाद'
   ग्राम-कोलिहा ,लवन  बलौदाबाजार ( छ० ग०)
         

चकोर सवैया: तुलसी

211× 7+2+1

तुलसी दास जी

बादर हे धनघोर घिरे  चमके गरजे बिजली  कड़काय।
पोठ भरे नदियाँ नरवा  रतिहा अँधियार  म जीव डराय।
मार सनाय गली चिखला तब ले सुरता जब तोर सताय।
तोर धरे धुन मैं रतना  गिरते हपटे पहुँचे  हँव आय।

रत्नावली जी-

मोर मया पर के जग के सुख त्याग करेहस भागतआय।
तैं बरसा  नरवा नदियाँ मरहा मुरदा तक ला न डराय।
तोर सहीं कहुँ मूरख हे बिरथा तन खातिर मोह लगाय।
राम घलो जपले बइहा भव सागर जे हर पार कराय।

अमृत ध्वनि



आ के मँय दरबार मा, हे हनुमंता तोर।
पाँव परत कर जोर के, सुनले बिनती मोर।
         सुन ले बिनती, मोर पवनसुत, विपदा भारी।
         बड़ संकट मा, आज परे हे, तोर पुजारी।
               दीनदुखी मँय, अरजी करथँव, माथ नवाँ के।
               किरपा करके, हर लव  दाता, संकट आ के। 

बोली बतरस घोर के, मुचुर मुचुर मुस्काय।
सूरत हे मनमोहनी, हाँसत आवय जाय।
        हाँसत आवय, जाय हाय रे, पास बलाथे।
        तिर मा आ के, खन-खन खन-खन, चुरी बजाथे।
               नैन मटक्का, मतवाली के, हँसी ठिठोली।
               जी ललचाथे, अब गोरी के, गुरतुर बोली।

कइसे आदमखोर अब, होगे मनखे आज।
नान्हे लइका के घलो, लूट लेत हे लाज।
        लूट लेत हे, लाज तको ला, रखवाला मन।
        बनके रकसा, गली गली मा, नोचत हे तन।
                सरम लागथे  , लाज लुटाही, देश म अइसे।
                माथ उठाकेआज रेंगही , बेटी कइसे।

फागुन आगे ले सगा, गा ले तहूँ हा फाग।
बजा नगारा खोर मा, गा ले सातो राग।
        गा ले सातो, राग मता दे, हल्ला गुल्ला।
       आज बिरज मा, बनके राधा, नाँचय लल्ला।
               अब गोरी के, कारी नैना, आरी लागे।
               मया बढ़ा ले, नैन मिला ले, फागुन आगे।

काँटा बोलय गाड़ ला, बन जा मोर मितान।
जनसेवक ला आज के, जोंक बरोबर जान।
        जोंक बरोबर, जान मान ये, चुहकय सबला।
         बनके दाता, भाग्य विधाता, लूटय हमला।
                 अपन स्वार्थ मा, धरम जात मा, बाँटय बाँटा।
                 हमर पाँव मा, बोंवत रहिथे, सबदिन काँटा।

लबरा मन हर बाँटही, आस्वासन के भात।
रहय चँदैनी चारदिन, फेर कुलुप हे रात।
         फेर कुलुप हे, रात ह कारी, तोर दुवारी।
         अब छुछवाये, सब झन आही, आरी पारी।
                 मार मताही, खलबल खलबल, जइसे डबरा।
                 दे दे चारा, जाल फेंकही, नेता लबरा।

अइसन बेवस्था कभू, होय नहीं जी नीक।
आज परीक्षा आगु ले, पेपर होथे लीक।
        पेपर होथे, लीक तभे तो, बेंचावत हे।
        भ्रष्टाचारी, देश बेंच के, अब खावत हे।
                 जमो चोर हे, इँहा व्यवस्था, बनही कइसे।
                 लूट मचे हे, चारों कोती, देश म अइसे।

नारी ममता रूप हे, मया पिरित के खान।
घर के सुख बर रातदिन, देथे तन मन प्रान।
          देथे तन मन, प्रान लगा के, सेवा करथे।
          खुद दुख सहिथे, अउ घर भर के, पीरा हरथे।
                  दाई बहिनी, बेटी नारी, सँग सँगवारी।
                  ममता के हे, अलग अलग सब, रुप मा नारी।

फुलवारी मा मोंगरा, महर-महर ममहाय।
परमारथ के काम हा, कभू न  बिरथा जाय।
         कभू न बिरथा, जाय हाय रे, बन उपकारी।
          प्यास बुझाथे, सबला भाथे, बादर कारी।
                   मरथे तबले, सैनिक करथे, पहरेदारी।
                   तभे देश हा, ममहावत हे, बन फुलवारी।


चौपई : नेता चरित

चौपई छन्द विधान : 15,15  अंत मे गुरु लधु 21

कइसे दिन आगे हे आज।  नेता बन गे गिधवा बाज।।
टूटत हे जनता के साँस।    नोच नोच के खाँवय माँस।।

जइसे खस्सू खजरी खाज। नाचय कूदय अइसे आज।
नइ लागय कोनो ला लाज। कहाँ जात हे आज समाज। ।

 गली गली मा नेता  रोज।  छुछुवावत हे चारा खोज।।
गुरतुर बोली मन भरमाय। लाज सरम ला बेच के खाय।।

लोक तंत्र मा अइसन काम। खादी  होगे हे बदनाम।।
वर्दी बन के इखर गुलाम। रोज मचावय कत्लेआम।।

अपन राग अउ अपने ढोल। बजा बजा के खोलय पोल।।
जेती मतलब ओती डोल।  अउ स्वारथ बर हल्ला बोल।।

हर आफिस मा खुले दुकान। बाबू साहब खावय पान।।
जब जब माँगय पानी चाय। जनता हा नँगरा हो जाय।।

बिना घूस नइ होवय काम।   नेता अफसर सब बइमान।।
फोकट खा जनता नादान।    लोक तंत्र के छूटय परान।।

कमा कमा के होवय लाल, नेता अधिकारी  अउ दलाल।
मौका पावय  झडकय माल।  बिगड़े  हे सबझन के चाल।

हितवा बन के गला लगाय।  मौका पा के छुरी चलाय।।
मनखे कुकुर सही छुछुवाय। येखर ओखर पाछू जाय।

राजनीत मा कोन ह साव।   बेचावत कौड़ी के भाव।।
जतका बड़े बड़े हे नाँव। काला बचाव काला खाँव ।।

पाही कोन इँखर जी पार। गल जाए बस अपने दार।।
मार लबारी भर भण्डार । देश धरम के बंठाधार ।।

लबरा मन बइठे दरबार।  माते हावे भ्रष्टाचार।।
जनता हो गे हे लाचार।  त्राही त्राही करे पुकार।।

बनके सिधवा आवय द्वार। चरण धरे करके गोहार।।
जोड़ तोड़ बनगे सरकार।  मिलगे बँगला मिलगे कार।।

शक्ति छंद : कहे बात सिरतोन कोदा कका

शक्ति 122 122 122 12

कहे बात सिरतोन कोंदा कका।
हमन रोज खावन करोंदा कका।
जरय पेट खेती किसानी करे।
इँहा मीठ लबरा सियानी करे।

गली गाँव तरिया नहर हे हमर।
तभो गाँव मा का गुजर हे हमर।
हमन गाँव भर काम करके मरन।
सबे बेंच दुबराज कनकी  दरन ।

कमा के अपन खून पानी करे।
जरय पेट खेती किसानी करे।
इँहा मीठ लबरा सियानी करे।

कहाँ बीजहा खाद पानी कहाँ।
किसानी करे जिंदगानी कहाँ।
कहाँ भाव  हे धान अउ पान के।
दलाली करे   कोन दूकान के।

कहे कोन सच ला नदानी करे।
जरय पेट खेती किसानी करे।
इँहा मीठ लबरा सियानी करे।

बहुत योजना रोज अखबार मा।
नही आज पहुँचे कभू खार मा।
चरय कोन चारा सहीं देस ला।
दलाली करे बदल भेस ला।

कमाथे उखर जे मितानी करे।
जरय पेट खेती किसानी करे।
इँहा मीठ लबरा सियानी करे।


बरवै : कोन कमाही संगी,खेती खार।

बरवै छन्द
12, 7


कोन कमाही संगी,खेती खार।
मिलय कहूँ नइ अब तो, जी बनिहार।

फोकट के चक्कर मा, लोगन आज।
होत ओतिहा करय न, कोनो काज।

बिना पढ़े लइका मन, होथे पास।
अपने भविष्य करथेे ,सत्यानास।

फोकट पा के  जनता,  होत अलाल।
मार लबारी नेता, झडकय माल।

होही कइसे संगी, सोच विकास।
जाँगर चोट्टा बाँटा, पाथे खास।

काम करइया दिन दिन , होय निराश।
बइठाँगुर  के बाढ़त, हावय आश।।

स्वाभिमान होवत हे, चकनाचूर।
फोकट खा के आदत , ले मजबूर।


आज कोढ़िया होगे , हमर समाज।
बीच सड़क मा घूमय, बेंचत लाज।।

दिनभर बइठे टूरा, होय उदास।
मोबाइल हर होगे, टाइम पास।

सोच सोच के मनमा, गड़थे फांस।
भट्ठी अटके जवान , मन के सांस।

काम बुता बर मिलय न, कोनो लोग।
राजनीति हा बनगे, अब उद्योग।

बाँटे बिन नइ पावे, कोनो वोट।
पव्वा अध्धी बोतल , माँगय नोट।

लालच परके होही, जब मतदान।
गलत आदमी बनही, हमर सियान।

कुर्सी पा के होही , मद मा चूर।
रोज  मलाई खाही, जी भरपूर ।

सोच समझ के करना, हे मतदान।
बइठ सिहासन जाए, झन बइमान।








हरिगीतिका

हरिगीतिका 2212,   2212,   2212,    2212



मत हार के  तँय बइठ जा ,ये हार रद्दा जीत के।
काटा घलो हा गोड़ के, रचथे कहानी बीत के।
चाहे ठिकाना दूर हे, अब बिन रुके  चलते चलो।
होथे उही मन हर सफल,जे उठ जथे गिरके घलो ।

हिम्मत करो डटके बने,कल के फिकर ला छोड़ दो।
 कर के भरोसा आप के ,कनिहा बिपत के तोड़ दो।
कइसे मुसीबत हारथे, तँय देख ले ललकार के।
अब कर उदिम बस जीत बर,मत हार मानो हार के।

---//////------

सब जीव मन तड़फत हवे,व्याकुल हवे संसार हा।
अब ताप मा तनमन जरय, आगी बरत हे खार हा।
तरिया सबे अब अउटगे,अउ खेत मन परिया परे।
तँय भेज दे अब नेवता घनमेघ ला धरती  तरे।

बरखा बने बरसे तभे ,होही फसल हर धान के।
हम काम कर दे  हन अपन,अब आसरा भगवान के।
नागर चले जाँगर चले, बादर चले तब काम के।
सब खेत ला जोतत हवन, अब हम भरोसा  राम के।

सिधवा हरन ,बइला हरन,तँय चाब ले ,पुचकार ले।
रिस बात के मानन नही,जीभर तहूँ दुत्कार ले ।
हम घर अपन, मजदूर हन, मालिक हमर आने हरे।
छत्तीसगढ़ के भाग ला, हे आन मन गिरवी धरे।

-------$$$$------

सब जानवर बेघर करे, जंगल तहीं , हा काट के।
कब्जा करे जंगल घलो,नरवा नदी ला  पाट के।
तँय नास दे पर्यावरण, गरहन लगाए छाँव मा।
हाथी तको,बघवा घलो , वन छोड़ आ थे गाँव मा।


अब बेंदरा ,आ के शहर, उत्पात करथे टोरथे।
वो आदमी के जिंदगी , ला जोर से झकझोरथे।
हम पूँछथन, भगवान ले ,ये का तमाशा रोज के।
जब भूख लागे पेट मा,चारा सबेेझन खोज के।

जंगल कहाँ हरियर हवे, चारा घलो पाही कहाँ।
तँय घर उजारे हस उखर, सब जीव मन जाही कहाँ।
अब जानवर मन तोर घर, आथे बचाये प्रान ला।
 रोथस तभो तँय देख के , अपने अपन नुकसान ला ।

करनी अपन ,अब भोगबे , रोबे तहूँ पछताय के।
जब भूख लगही पेट मा ,पाबे नहीँ कुछु खाय के।
टोटा सुखाही प्यास मा, पाबे पिये पानी नहीँ।
तँय सोच ले ,जंगल बिना, अब तोर जिनगानी नहीं।

छप्पय छंद :

छप्पय  =रोल+उल्लाला।

भ्रष्टाचारी आज, बेच के देश ल खावय।
सब होगे बइमान, कोन हा देश बचावय।
कव्वा कुकूर बाज, सहीं सब माँस चिथइया।
जनता रोवय रोज, कोन हे हमर बचइया ।
रखवारी कर  देश के,  नेता मन ले आज रे।
बेचत हे बइमान मन , महतारी के लाज रे ।

आल्हा : मुसवा

you tube म ये कविता सुनव मोर आवाज म
विनती करके गुरू चरण के, हाथ जोर के माथ नवाँव।
सुनलो सन्तो मोर कहानी,पहिली आल्हा आज सुनाँव।।

एक बिचारा मुसवा सिधवा, कारी बिलई ले डर्राय।
जब जब देखे नजर मिलाके, ओखर पोटा जाय सुखाय।।

बड़े बड़े नख दाँत कुदारी, कटकट कटकट करथे हाय।
आ गे हे बड़ भारी विपदा,  कोन मोर अब प्रान बचाय।।

देखे मुसवा भागे पल्ला, कोन गली मा  मँय सपटाँव।
नजर परे झन अब बइरी के,कोन बिला मा जाँव लुकाँव।

आघू आघू  मुसवा भागे ,  बिलई  गदबद रहे कुदाय।
भागत भागत मुसवा सीधा, हड़िया के भीतर गिर जाय।

हड़िया भीतर भरे मन्द हे, मुसुवा उबुक चुबुक हो जाय।
पी के दारू पेट भरत ले,तब मुसवा के मति बौराय।

अटियावत वो बाहिर निकलिस, आँखी बड़े बड़े चमकाय।
बिलई ला ललकारन लागे, गरब म छाती अपन फुलाय।

अबड़ तँगाये मोला बिलई , आज तोर ले नइ डर्राव।
आज मसल के रख देहुँ मँय, चबा चबा के कच्चा खाँव।

बिलई  सोचय ये का होगे, काकर बल मा ये गुर्राय।
एक बार तो वो डर्रागे, पाछु अपन पाँव बढ़ाय।।

बार-बार जब मुसवा चीखे , लाली लाली  आंख दिखाय।
तभे बिलइया हा गुस्सागे, एक झपट्टा मारिस हाय।

तर- तर तर -तर तेज लहू के, पिचकारी कस मारे धार।
प्राण पखेरू उड़गे  तुरते, तब मुसवा हर मानिस हार।

तभे संत मन कहिथे संगी, गरब करे झन पी के मंद।
पी के सबके मति बौराथे, सबके घर घर माथे द्वंद। 

घर घर मा हे रहे बिलइया, रहो सपट के चुप्पे चाप।
बने रही तुहरो मरियादा, गरब करव झन अपने आप।

रूपमाला : मुक्तक


रूपमाला : छन्द विधान

( 2122  2122  , 2122 21)× 4

तोर बिन ये जिंदगानी, हे कुलुप अँधियार।
मोर जम्मो साधना ला, तँय करे साकार।।
मँय उहाँ तक जा सकत हँव, हाथ थामे तोर।
एक धरती हा सिराथे, जब छितिज के छोर।।

तँय बढ़ा के मोह माया लूट ले हस चैन।
मँय खड़े हँव राह देखत, हे थके अब नैन।।
का लगा के रोग चल दे, तँय मया के यार।
आदमी मँय काम के अब, हो घलें बेकार।।
आदमी अच्छा भला मँय , हो घलें बेकार।।

कैद होगे आज बचपन, अउ जवानी मोर।
होत हे काबर अकेल्ला, अब बुढापा तोर।।
कोन घर मा बाँध देथे , खींच के दीवार।
आज मोबाइल तको तो, बाँटथे परिवार।।

हे शरद के पूर्णिमा मा, चंद्रमा   हर गोल।
आज चंदा हा धरे हे , रूप जी अनमोल।।
हे जगत के जीव मन बर,मोहनी कस रात।
ओस बन के आज अमरित, बरसथे बरसात।।

सांस मोरे जब जुड़ाए, तोर अचरा पाँव।
जब जनम लौं मँय दुबारा, तोर ममता छाँव।।
मोर दाई  तोर बर मँय, हाँस के दँव प्रान।
हम रहन या मत रहन वो, तोर बाढ़य मान।।

तोर सुरता अब बही रे, नैन बर बरसात।
ढेंकना कस सोय दसना, चाबथे दिन रात।।
तँय करे चानी करेजा , साथ छोड़े मोर।
मँय उही रद्दा म करथौं , अब अगोरा तोर।।

आज तक देखव न सपना, यार तोरे बाद।
मँय मया बर काकरो अब , नइ करँव फरियाद।।
तोर सुरता ला सजाके,पूजथौं दिनरात।
रोज करथे मोर कविता, तोर ले अब बात।।

मन भटकथे रे मरुस्थल, नइ मिलय अब छाँव।
खोजथौं मँय बावरा बन, अब मया के गाँव।।
डगमगाथे मोहनी रे, मोर अब विस्वास।
कोन जाने कब बुताही, मोर मन के प्यास।।

तोर खातिर मोर जोड़ी, कोन पारा जाँव।
कोन तोरे घर बताही, कौन तोरे नाँव।।
तँय बतादे सावरी रे, मोर सपना सार।
कोन होही मोर सोये, नींद के रखवार।।

जोगनी बन जेन लड़थे, रात भर अँधियार।
वो बिहिनिया मान जाथे, रोशनी ले हार।।
कोंन जाने कब सिराही,देश मा संग्राम।
रार ठाने हे भरत हा, रोय राजा राम।।

गाँव देथे तब सहर हर, पेट भरथे रोज।
गाँव हर बनिहार होगे, सहर राजा भोज।।
गाँव सिधवा मोर हावे, अउ शहर मक्कार ।
आदमी के खून चूसे, रोज ये बाजार।।


हाथ ला दे काम के तँय, साल भर अधिकार।
भीख नइ माँगन कभू हम हन भले बनिहार।।
हम कमाबो टोर जाँगर ,दे अपन ये प्राण।
हाथ धर छेनी हथौड़ी , देश बर निर्माण।।

साँझ दे के आन ला मँय हर बिसाथव घाम।
साँस चलही मोर जब तक नइ करँव आराम।।
मँय किसानी ला करे बर लें उधारी तोर।
कोन कर्जा ला  चुकाही जान जाथे मोर।।
मँय किसानी छोड़ आगें अब सहर मा तोर।

मुड़ म बाँधे लाल पागा, डोकरा हरसाय।
आज नाती के बराती, बर बबा अघुवाय।।
हे कहाँ अब डोकरी हा, डोकरा गे भूल।
छोकरा बन अब गली मा, बाँटथे जी फूल।।

पाँख होतिस मँय उड़ाके , आँव तोरे पास।
मोर मन के भावना हा, खोजथे आगास।।
तँय चले गे मोर जोड़ी,छोड़ के परदेश।
मोर चोला हा तरसथे , पाय बर सन्देश।।

रूप अइसन हे सजाए, सालहो सिंगार।
लान दे ना डोकरी बर, डोकरा तँय हार।।
हे रचाए हाथ मेहदी, अउ महावर पाँव।
ओठ में लाली लगा के,घूमे सारा गाँव।।

जान जाए फेर मोला, देश खातिर आज।
बात अइसन बोलना हे, खोल ले आवाज।।
बाद मा बइरी ल होही, जे सजा तँय यार।
देश के गद्दार मन ला, आज गोली मार।।

जेन थारी खाय छेदय, अब उही ला लोग।
जेल मा हे फेर भोगे, रोज छप्पन भोग।
कोन हे आतंकवादी, मन घलो के साथ।
खोज के वो लोग मनला, आज कातव हाथ।

मोर माटी ला  उही मन, नइ  लगावै माथ।
जेन बैरी के मितानी, बर करत हे घात।
साँप बन के लील देथे, देश के सुख चैन।
अब गटारन खेलबो रे, हेर उखरे नैन।

तोर खातिर मोर जोड़ी, कोन पारा जाँव।
कोन तोरे घर बताही, कौन तोरे नाँव।
तँय बतादे सावरी रे, मोर सपना सार।
कोन होही मोर सोये, नींद के रखवार।

छोड़ दे तँय आलसी ला, बात सुनले मोर।
मेहनत के संग आही,गाँव मा अब भोर।
हमन शिक्षा  जोत घर घर,चल जलाबो यार।
लोग लइका हमर पढ़ के, बन जही हुसियार।

गाँव मोरो आज होतिस, सब डहर खुशहाल।
अब किसानी मा कमाई, होय सालोसाल।
चाहिये ना गाँव ला जी, काकरो उपकार।
बस फसल के मोल दे दय, अब बने सरकार।

गाँव देथे तब सहर हा , पेट भरथे रोज।
फेर मोटाके बने फिरथे ,अपन राजाभोज।
गाँव सिधवा मोर हावे, अउ शहर मक्कार ।
खून पी के हाड़ चूसे, रोज ये बाजार।

आज तक पाँवव न सपना देख तोरे बाद।
अब मया बर काकरो मँय , नइ करँव फरियाद।
तोर सुरता ला सजाके,देखथौं दिनरात।
रोज करथे मोर कविता, तोर ले अब बात।

मन भटकथे रे मरुस्थल, नइ मिलय अब छाँव।
खोजथौं रे बावरा बन, मँय मया के गाँव।
डगमगाथे मोहनी रे, मोर अब विस्वास।
कोन जाने कब बुताही, मोर मन के प्यास।


तोर सुरता रोज आथे, फेर तँय नइ आय।
मोर जिनगी खेत परिया, अउ घटा तरसाय।
का करव मय यार कइसे, तोर ले हो बात।
रोज बदली हर घुमड़थे, होय ना बरसात ।

आ जथे चुपचाप भीतर , याद हा अब तोर।
पा जथे सुनसान खोली, कस करेजा मोर।
तोर पीरा सालथे रे, घाव ला जब मोर।
मेट के मँय फेर लिखथव, नाँव ला तब तोर।

खींच लानिस तीर सबला , तोर सुरता आज।
तोर सुग्घर गीत कविता, मोहनी आवाज।
कोन कहिथे तँय चलेगे, छोड़ के संसार।
गीत तोरे ले जही तोला समय के पार।1।

जेन ला रखवार राखन, हे उही मन चोर।
कोन जाने आज कइसे, गाँव आही भोर ?
(कोन जाने अब कहाँ ले, गाँव आही भोर)
पेज पसिया बर लड़त हम, जिन्दगी भर रोन ।
(पेट के खातिर तको अब, कब तलक हम रोन।)
मोर बाँटा के अँजोरी , लेग जाथे कोन ?

दोहा : गुरु कृपा


किरपा गुरु के सार हे, ये तन माटी जान।
जभे गढ़े गुरु हाथ ले, बन जाथे भगवान।

गुरु वशिष्ठ होतिस नहीं, कोंन बनातिस राम।
मर्यादा के पाठ ला,  काकर पढ़ते नाम।

गुरुवर श्रद्धा रूप हे, अउ मन के विस्वास।
बिन गुरु जग अँधियार हे, गुरुजी हे परकास।

गुरु ब्रम्हा गुरु विष्णु हे, अउ गुरु जान महेश।
गुरु सउहत भगवान हे, मन के हरथे क्लेश।

पारस गुरु के हाथ हे, लोहा होथे सोन।
चरण छु के गुरु आपके, कलुष कटे सिरतोन।


गुरुजी गढथे जिन्दगी, ये तन माटी ताय।
तपा ज्ञान के आँच मा, सबके दोष जराय।

सरसी छंद : हिम्मत


हिम्मत के अचरा ला थामे, जाना हे बड़ दूर।
जे हा करथे अपन भरोसा, होय नही मजबूर।

मंजिल आही खुद रेंगत जी, चुमही आ के गोड़।
पग बाधा तो आवत रहिथे, ओखर चिंता छोड़।

ऊँच नीच अउ खचवा डिपरा, पथरा अउ चट्टान।
रोक सके ना राह बीर के, जब मन मा ले थान।

गिरथे उठथे  उठके चलथे, कभू न बोले हाय।
नरवा नदिया जंगल झाड़ी, पार करत बढ़ जाय।

हरिगीतिका : सरस्वती दाई

हे सरसती दाई महूँ , बिनती करव कर जोर के।
तोरे सरन मा आय हँव, मद मोह बँधना छोर के।
अज्ञान के बादर छटे, अउ पाँख ला आगास दे।
मँय हँव परेअँधियार मा,तँय ज्ञान के परकास दे।

माँ सारदा हे आसरा, देवी हरस वो ज्ञान के।
सत्मार्ग मा मँय चल सकव,रद्दा छुटय अज्ञान के।
लइका हरव मँय कमअकल ,नइ आय मोला साधना।
माथा नवा के  मँय करँव ,तोरे चरण आराधना ।

हरिगीतिका : गुरुवर


गुरुवर करें कर जोड़कर, हम आपकी आराधना।
आशीष दो हमको यही, अब हो सफल हर साधना।
 हम क्या करें नादान हैं कुछ भी हमें आता नहीं ।
तेरे चरणरज के सिवा, कुछ और अब भाता नही।


भगवान से बढ़ कर तुझे, कहते जगत के लोग हैं।
मेरे किसी सद्कर्म से , अब तू मिला संजोग है।
तेरी कृपा  मुझ दास पर,  गुरुवर सदा बरसा करे।
तेरे चरण दर्शन मिले,मेरे नयन तरसा करे।

अज्ञान का बादल छटे, सूरज उगे अब ज्ञान का ।
मैं हूँ पतित पग में पड़ा , तू कर जतन उत्थान का।
मद लोभ में घिर कर फसा, यह मोह बन्धन तोड़ दे।
मैं बह रहा अनजान पथ, तू धार मेरी मोड़ दे।

मुक्तक : राम के चर्चा

1222  1222 1222 1222

न तोरो  नाम के चर्चा, न मोरो  काम के चर्चा।
दुनो झन बइठ के करबो, चलो अब घाम के चर्चा।
इहाँ  तन कपकपावत  हे, त भूर्री बार के बइठी,
रहन दे आज तो सँगी, रहीम अउ राम के चर्चा।





बरवै छंद : नरियर



हाथ जोर के बोलय, नरियर आज।
मोर मुक्ति हो कइसे , अब महराज।


मन्दिर मा चढ़ चढ़ के , फेर बजार।
काबर बेंचव मोला, बारम्बार।

आय भगत मन श्रद्धा, ले के रोज।
फूल पान अउ नरियर, लाने खोज।

रोज भगत मन करथे ,कतको दान।
सोचय खुश होही जी, अब भगवान।

देवी देवता नही  , माँगय दान।
रोज पुजारी  बेचय, फेर समान।

मन्दिर के आघू  मा , सबे दुकान।
  मोर करत हे काबर , अब अपमान।

मोरो आत्मा करथे, जी चित्कार।
नरियर  फोरव कर दव , अब उद्धार।

सुन्दरी सवैया : जग हा पगला जी


नइ लाज लगे  पग तोर परे, हम छोड़ दिये जग मा  सबला जी।
अब जे करना सब राम करे, अउ का करना अब हे हमला जी।
सब हा पगला कहिथे हमला, हम बोलन ये जग हा पगला जी।
चतुरा बन के नइ राम मिले, बन के रहिबो हम तो भकला जी।

सुन्दरी सवैया : रामा

अब कोन हमार सहाय करे  , ठगवा जग मा फँस गे हँव रामा।।
बँधना  बँध के तन नाँच करे, जम के छँदना कस गे हँव रामा।
घर नो हय ये तन चार दिनी, सब जान तभो बस गे हँव रामा।
जतका उठथौ गिर के परथौ,  मँय कोन गली धस गे हँव रामा।

सुन्दरी सवैया : मन मूरख मोर



नइ बात सुने ककरो ल कभू, मन मूरख मोर करे मनमानी।।
परगे मद लोभ सवारथ मा, बिरथा कर के धर दे जिनगानी ।
अब तोर सिरावत साँस हवे, भकला बन जाय चले न जवानी।
सत मारग मा पग ला धर ले, सुरता करही जग तोर कहानी।




सुन्दरी सवैया : हदराही

मनखे मन होत अलाल हवे, मन मा अब बाढ़त हे हदराही।
सरकार घलो जब बाँटत हे , जनता हर फोकट पा इतराही।
नइ काम करे बर जाँगर हे, अउ फोकट पा डट के सब खाही।
हम देख परे हन आलस मा, अब देश विकास ल कोन बढाही।

सुन्दरी सवैया : मत माथ नवाँ

मत माथ नवाँ पर के पग मा, डर के मुँह तोप झनी सँगवारी।
झन लालच मा परके लुलवा, पर के मत खा अब गा तँय गारी।
सिधवा बन के बइला बनके, तँय काज करे कतको बढ़ भारी।
नइ हाथ उठा हक माँग सके, तब होवय तोर कहाँ चिनहारी।

अरविन्द सवैया : भगवान

कतको मन रोज कमावत हे, बनथे सब लोग कहाँ धनवान।
लड़थे दिनरात तभो न सबो,  मनखे मन होवय जी बलवान।
मन हार गए सब हारत हे, मन जीत लिए जग जीत जवान।
पथरा कहिथे कतको ह भले, विसवास करे मिलथे भगवान।

अरविंद सवैया : सैनिक




जब सैनिक भारत माँ बर जी,तन ला  हँस के करथे बलिदान।
उखरे तप त्याग हरे हम ला, दुनियाँ भर मा मिलथे पहिचान।
मत भूल कभू उपकार सँगी, मरगे अउ देश बढाइन मान।
जस गा कवि  माथ नवाँ अपने, उखरे अब देश करे गुनगान।

सुन्दरी सवैया : बेटी

जब मात पिता कहना सुनके, मन मा गुन काज सँवारय बेटी।
परिवार रहे सुख मा गुनके, विपदा सुख -त्याग निवारय बेटी।
अभिमान हरे घर के कुल के, लिख के पढ़के कुल तारय बेटी।
जिनगी भर तो लड़थे दुख ले,पर के सुख खातिर हारय बेटी।

अरविंद सवैया : गुरु कृपा

किरपा गुरु होय जभे जग मा, तब तोर सहाय करे  भगवान ।
कुमहार रचे हड़िया जइसे,  रचथे गुरु हाथ बने इनसान।
गुरु के पग मा  विसवास करे, जतके सुनबे तँय जी रख ध्यान।
जिनगी  हर धन्य बने  तुमरे , बनथे जग मा तब नाम महान।

विशिष्ट पोस्ट

रूपमाला छन्द

you tube में सुने साँस मोरे जब जुड़ावय, तोर अचरा पाँव। जब जनम लँव मँय दुबारा, तोर ममता छाँव। मोर दाई  तोर बर हम , हाँस के दँन प्र...