मेरे बारे में

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कोलिहा लवन , बलौदाबजार, छत्तीसगढ, India
नाम- मथुरा प्रसाद वर्मा पिता- स्व. जती राम वर्मा माता- श्रीमती पितरबाई वर्मा जन्मतिथि- 22-06-1976 जन्मस्थान - ग्राम -कोलिहा, जिला-बलौदाबाजार (छ ग ) कार्य - शिक्षक शा पु मा शाला लहोद, जिला बलौदाबाजार भाटापारा शिक्षा - एम् ए ( हिंदी साहित्य, संस्कृत) डी एड लेखन- कविता, गीत, कहानी,लेख,

आल्हा : मुसवा

you tube म ये कविता सुनव मोर आवाज म
विनती करके गुरू चरण के, हाथ जोर के माथ नवाँव।
सुनलो सन्तो मोर कहानी,पहिली आल्हा आज सुनाँव।।

एक बिचारा मुसवा सिधवा, कारी बिलई ले डर्राय।
जब जब देखे नजर मिलाके, ओखर पोटा जाय सुखाय।।

बड़े बड़े नख दाँत कुदारी, कटकट कटकट करथे हाय।
आ गे हे बड़ भारी विपदा,  कोन मोर अब प्रान बचाय।।

देखे मुसवा भागे पल्ला, कोन गली मा  मँय सपटाँव।
नजर परे झन अब बइरी के,कोन बिला मा जाँव लुकाँव।

आघू आघू  मुसवा भागे ,  बिलई  गदबद रहे कुदाय।
भागत भागत मुसवा सीधा, हड़िया के भीतर गिर जाय।

हड़िया भीतर भरे मन्द हे, मुसुवा उबुक चुबुक हो जाय।
पी के दारू पेट भरत ले,तब मुसवा के मति बौराय।

अटियावत वो बाहिर निकलिस, आँखी बड़े बड़े चमकाय।
बिलई ला ललकारन लागे, गरब म छाती अपन फुलाय।

अबड़ तँगाये मोला बिलई , आज तोर ले नइ डर्राव।
आज मसल के रख देहुँ मँय, चबा चबा के कच्चा खाँव।

बिलई  सोचय ये का होगे, काकर बल मा ये गुर्राय।
एक बार तो वो डर्रागे, पाछु अपन पाँव बढ़ाय।।

बार-बार जब मुसवा चीखे , लाली लाली  आंख दिखाय।
तभे बिलइया हा गुस्सागे, एक झपट्टा मारिस हाय।

तर- तर तर -तर तेज लहू के, पिचकारी कस मारे धार।
प्राण पखेरू उड़गे  तुरते, तब मुसवा हर मानिस हार।

तभे संत मन कहिथे संगी, गरब करे झन पी के मंद।
पी के सबके मति बौराथे, सबके घर घर माथे द्वंद। 

घर घर मा हे रहे बिलइया, रहो सपट के चुप्पे चाप।
बने रही तुहरो मरियादा, गरब करव झन अपने आप।

4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

आदरणीय गुरुजी ल प्रणाम
बहुते सुग्घर आल्हा रचना आप मन रचे हव गुरुजी बहुत बहुत बधाई।।

Unknown ने कहा…

गुरुजी
आपके ये रचना के पाठ अपन रचना बता के मधुर साहित्य परिषद गुंडरदेही के अध्यक्ष विशेश्वर साहूजी अलग अलग मंच में करत जात हे।

नंबर(7697770075 विशेश्वर साहू)

Morchhattisgadhi git kavita ने कहा…

मोला सूचित करें बर बहुत बहुत धन्यवाद मित्र।
आज के समय म तथाकथित कवि मन मंच के मोह म दूसर के रचना ल अपन लिखे रचना बता के सुनाए म संकोच नइ करय। मोर साथ अइसे कई बेर हो गे हे। जब बड़े बड़े कवि मन मोर रचना ल अपन कहिके सुनाथे। अइसे म खुसी घलो होथे कि चलो मोर रचना जनमानस के बीच पहुँचत तो हे। अउ दुख भी हाथे कि मोर मेहनत के रोटी कोनो अउ खात हे। मँय उखर ले बात करहूँ।

जीतेन्द्र निषाद "चितेश" ने कहा…

अब्बड़ सुघ्घर रचना हे गुरुदेव

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