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कोलिहा लवन , बलौदाबजार, छत्तीसगढ, India
नाम- मथुरा प्रसाद वर्मा पिता- स्व. जती राम वर्मा माता- श्रीमती पितरबाई वर्मा जन्मतिथि- 22-06-1976 जन्मस्थान - ग्राम -कोलिहा, जिला-बलौदाबाजार (छ ग ) कार्य - शिक्षक शा पु मा शाला लहोद, जिला बलौदाबाजार भाटापारा शिक्षा - एम् ए ( हिंदी साहित्य, संस्कृत) डी एड लेखन- कविता, गीत, कहानी,लेख,

त्रिभंगी छन्द

मनखे अभिमानी, माँग न पानी, भले भूख मा,  पेट जरे।
लाँघन रही रही के, भूख  सही के, रोज कमा के, गुजर करे।।
तँय बनके भोला, फैला झोला, जीभ लमावत, कहाँ चले।
दूसर के थारी , झाँक दुवारी, माँग खाय ले, मौत भले।1।


मुँह के मारे ले, दुत्कारे ले, उही आदमी, पॉव  परै।
जे लाज सरम ला, बेंच धरम ला, माथ नवाँ के, गोड़ धरै।।
चिक्कन खा खा के, बड़ इतराके , खाय तभो ना, पेट भरे।
जेखर लालच मा, जीभ ह सच मा, लार बोहावय, धार धरे।2।


का करे सियानी, तँय मनमानी, रोज रचाये, खेल इहाँ।
स्वारथ बर मरथे, कोनो करथे, लोक भलाई, काम कहाँ।।
सुनता अब टुटगे,ममता छुटगे, लोग लड़त हे, रोज तने।
घर अपने भर के, शोषण करके, महल बनाए, लोग बने।3।


तँय पडकी मैंना, लूटत चैना, फुदकत रहिथस, गाँव गली।
मन ला तरसा के, मोह लगा के, कोन गली मा , जाय चली।।
हम गोबर  चोता, नागर जोता, प्यार मुहब्बत, काय करन।
जेखर धर हाथे, ओखर साथे, जियत मरत तक, साथ रहन।4।

दोहा: सिखावन

दोहा


मुड़ मा मुतथे मेकरा , जब जब अवसर पाय।
खल देखाथेआचरण, बइठे घात  लगाय।।

चाबय पनही गोड़ ला, अब का करँव उपाय।
ये जनसेवक आजके, लूट देस ला खाय।।



शक्ति

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*शक्ति छन्द*
बनाये बने राम संसार ला।
नहीं पाय कोनो कभू पार ला।
भवर मा फसाये किनारा बने।
तहीं आदमी के सहारा बने।

तहीं भूख दे पेट खाए सके।
दिए हाथ रोटी कमाए सके।
जिहाँ चाह दे राह दे हस तहीं।
विधाता कहूँ तोर जइसे  नहीं।


 बिगाड़े बनाये मिटाए  तहीं।
कि जीना सबे ला सिखाए तहीं।
अभी घाम हे छाँव हो के रही।
इही जिंदगी के कहानी सही।

हवे प्यास पानी घला हे इँहा।
बिपत हे तभे हौसला हे इँहा।
कहीं दुख कहीं सुख रचाए तहीं।
भरे भाव दुनियाँ बनाए तहीं।

विष्णुपद छन्द :


ए अभिमानी गरब करे का, ये माटी तन के।
माटी मा मिलही ये चोला, सब माटी बन के।1।


काल लिखे हे अपन कलम मा, मरना सब झन के।
महुँ मिटाहूँ तहूँ मिताबे , पाट दिही खन के।2।


माटी गोटी जोर जोर के,  बनगे महल बने।
छोड़ छाड़ के जाना परही, रोवत मने मने।३।


पल भर क हेे ये जग मेला, छिन भर तोर मया।
सब चल देही छोड़ एक दिन, लागे नही दया।4।


कोनो सँग मा नइ जावय जी, अब मत समय गवाँ।
मिलखी मारत भूल जही सब, मिलही मीत नवाँ ।5।

चौपई : कइसे दिन आ गे हे आज

कइसे दिन आगे हे आज।  नेता बन गे गिधवा बाज।।
टूटत हे जनता के साँस।  नोच नोच के खाँवय माँस।।

जइसे खस्सू खजरी खाज। नाचय कूदय अइसे आज।।
नइ लागय कोनो ला लाज। कहाँ जात हे आज समाज।।

गली गली मा नेता  रोज।  छुछुवावत हे चारा खोज।।
गुरतुर बोली मन भरमाय। लाज सरम ला बेच के खाय।।

लोक तंत्र मा अइसन काम।  खादी  होगे हे बदनाम।।
वर्दी बन के इखर गुलाम।   रोज मचावय कत्लेआम।।

अपन राग अउ अपने ढोल। बजा बजा के खोलय पोल।।
जेती मतलब ओती डोल।  अउ स्वारथ बर हल्ला बोल।।

हर आफिस मा खुले दुकान।  बाबू साहब खावय पान।।
जब जब माँगय पानी चाय।  जनता हा नँगरा हो जाय।।

बिना घूस नइ होवय काम।   नेता अफसर सब बइमान।। 
फोकट खा जनता नादान।    लोक तंत्र के छूटय परान।।

कमा कमा के होवय लाल। नेता अधिकारी  अउ दलाल।।
मौका पावय  झडकय माल। बिगड़े  हे सबझन के चाल।।

हितवा बन के गला लगाय।  मौका पा के छुरी चलाय।।
मनखे कुकुर सही छुछुवाय। येखर ओखर पाछू जाय।

राजनीत मा कोन ह साव।   बेचावत कौड़ी के भाव।।
जतका बड़े बड़े हे नाँव। काला बचाव काला खाँव ।।

पाही कोन इँखर जी पार। गल जाए बस अपने दार।।
मार लबारी भर भण्डार । देश धरम के बंठाधार ।।

लबरा मन बइठे दरबार।  माते हावे भ्रष्टाचार।।
जनता हो गे हे लाचार।  त्राही त्राही करे पुकार।।

चौपई : भले लेड़गा हँन महराज। हम हर नोहन धोखेबाज।।

चौपई

भले लेड़गा  हँन  महराज।    हम  हर  नोहन  धोखेबाज।।
बइसुरहा बन घुमथन  आज। हमीं सबो के खोलन राज।।


मोर बात  करले बिस्वास ।  करू करेला सहीं मिठास।।
हँसी ठिठोली करथँव खास। करव कपट के सत्यानास।।


पढे लिखे के का पहिचान।   अंग्रेजी मा हाँकय ज्ञान ।।
सास ससुर के कहना मान।   तोर सुवारी हे भगवान।


पर के बेटी जब घर लान। परबुधिया होवय सन्तान।। 
बोझा दाई ददा ल जान।  कुटुम कबीला बैरी मान ।।


पढ़े लिखे सब बिरथा आय।अनपढ़ मन हर देश चलाय।।
तोर योग्यता चूल्हा जाय।   नौकरी घूस देवय पाय।।


चिरहा चिथड़ा फ़इसन आय।डम्मक ढ़य्या नाचय गाय।।
लाज सरम ला बेंचय खाय। लइका मन के मन भरमाय।।


अगड़म बगड़म खाना खाय। खाखा के सब पेट फुलाय।।
सेंट लगा के सब बस्साय ।  पउडर पोतय अउ इतराय।।


मनखे मनखे ला नइ भाय।    बात बात मा मुँहू लडाय।।
भाई भाई के काटय घेच।   पइसा बर दय लइका बेंच।।

     क्रमशः......

चौपई : मोर सिखोंना धरले आज



मोर सिखोंना धरले आज।   बात कहे हे गुरु महराज।।
तोर मूड़ नइ गिरही गाज।    बन जाही सब तोरे काज।।

सूरज ले पहली तँय जाग।   मात पिता के पइयाँ लाग।।
बिपत परे नइ चाबय नाग।   जाग जही जी तोरो भाग।।

दिन दुखिया के बने सहाय। पर पीरा बर जिया दुखाय।।
देश धरम बर जान गवाय।   ये जिनगी बड़ भागी पाय।।

घर के झगरा घर मा टार।   झन कोनो ला ताना मार।।
गाँव गली अउ खेती खार।  रख सबले मीठा व्यवहार ।।

साफ सफाई जिनगी राख।  गिरय नही जी तोरो साख।।
बड़े बड़े मनखे के धाक।      रोग गरीबी करथे खाक।।

बिपत परे मत मानव हार।   धर के धीरज कर उपचार।।
पर के झन लेवव उपकार।   अपन बाट अपने चतवार।।

मर जा तँय पर ले मत  माँग। कभू न पीना गाँजा भाँग।।
पर के काज अड़ा झन टाँग।दउड़ भले ले दू फललाँग।।

बइरी के आघू गुनगान ।    फेर सँगी के सही बखान ।।
गोठ अपन भाई  के मान। सच के खातिर तज दे प्रान।।

गाँठ बाँध ले एक्के सार। समय न फिर के आवय द्वार।।
पहिली उतरे देखे  धार ।।        भवसागर ले पाबे पार।।

रूपमाला छन्द

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साँस मोरे जब जुड़ावय, तोर अचरा पाँव।
जब जनम लँव मँय दुबारा, तोर ममता छाँव।
मोर दाई  तोर बर हम , हाँस के दँन प्रान।
हम रहन या मत रहन वो, तोर बाढ़य मान।


जान जाए फेर मोला, देश खातिर आज।
बात अइसन बोलना हे, खोल ले आवाज।
बाद मा बइरी ल देबोे , जे सजा हम यार।
देश के गद्दार मन ला, आज गोली मार।



तोर सुरता अब बही रे, नैन बर बरसात।
ढेंकना कस सोय दसना, चाबथे दिन रात।
तँय करे चानी करेजा , साथ छोड़े मोर।
मँय उही रद्दा म करथौं , अब अगोरा तोर।



आज तक देखव न सपना, यार तोरे बाद।
मँय मया बर काकरो अब , नइ करँव फरियाद।
तोर सुरता ला सजा के,पूजथौं दिनरात।
रोज करथे मोर कविता, तोर ले अब बात।



मन भटकथे रे मरुस्थल, नइ मिलय अब छाँव।
खोजथौं मँय बावरा बन, अब मया के गाँव।
डगमगाथे मोहनी रे, मोर अब विस्वास।
कोन जाने कब बुताही, मोर मन के प्यास।



तोर खातिर मोर जोड़ी, कोन पारा जाँव।
कोन तोरे घर बताही, कौन तोरे नाँव।
तँय बतादे सावरी रे, मोर सपना सार।
कोन होही मोर सोये, नींद के रखवार।

तोर बिन ये जिंदगानी, हे कुलुप अँधियार।
मोर जम्मो साधना ला, तँय करे साकार।
मँय उहाँ तक जा सकत हँव, हाथ थामे तोर।
भूमि ले अगास मिलथे, जब छितिज के छोर।


जोगनी बन जेन लड़थे, रात भर अँधियार।
वो बिहिनिया मान जाथे, रोशनी ले हार।
कोंन जाने कब सिराही,देश मा संग्राम।
रार ठाने हे भरत हा, रोय राजा राम।


गाँव देथे तब सहर हर, पेट भरथे रोज।
गाँव हर बनिहार होगे, सहर राजा भोज।
गाँव सिधवा मोर हावे, अउ शहर मक्कार ।
आदमी के खून चूसे, रोज ये बाजार।


मोर गुरुवर के कृपा दे दिस हवे सद्ज्ञान।
मोह बँधना मा परे मँय, राह ले अनजान।
गुरु चरण मा मँय नवा के, राख दे हँव माथ।
भाग मोरो जाग गे हे, अब करम के साथ।

ये चरन मा राख मोला , तँय बढ़ाये मान।
रोज सेवा कर सकव मँय, तोर हे भगवान।
तँय बनाये  मोर माटी आदमी  के रूप।
पोठ करदे तँय पका के, ज्ञान के दे धूप।


आ जथे चुपचाप भीतर , याद हा अब तोर।
पा जथे सुनसान खोली, कस करेजा मोर।
तोर पीरा सालथे रे, घाव ला जब मोर।
मेट के मँय फेर लिखथव, नाँव ला तब तोर।

भीख नइ माँगय कभू भी आपले बनिहार।
हाथ ला दे काम के तँय, साल भर अधिकार।
हम कमाथन टोर जाँगर ,दे अपन मन प्राण।
हाथ मा छेनी हथौड़ी , देश नव  निर्माण।

कोन जनता के सुनत हे वोट दे के बाद।
बाढ़गे कांदी  भकाभक चूसथे सब खाद।
सब कमीशन  खात हे जी, बाँट के भरपूर।
चोर नेता भष्ट अफसर,न्याय चकनाचूर।

मोर हे शुभकामना हो , जिंदगी खुशहाल।
आपके सूरज सही मुख, होय लालेलाल।
मोंगरा कस तोर खुसबू आज हे ममहाय।
आज गुरुजी आप ला मोरो उमर लग जाय।

कोन सच के राज खोलय, चुप हवे संसार।
जेन जनता  बर लडत जी, पोठ खावय मार।
न्याय कारावास भोगय, हो जथे बीमार।
जब कलम मजबूर हो के, नाचथे दरबार।








आल्हा: लोकतंत्र के महा परब हे

लोकतंत्र के महा परब हे,  आवत हे अब फेर चुनाव।
ध्यान लगा के सबझन सुनलव, लोकतंत्र के महिमा गाव।।

लोकतंत्र मा जनता राजा, अउ प्रतिनिधि मन  सेवक आय।
चुनथे जनता मन नेता ला, बने बने वो राज चलाय।।

फेर आजकल  उल्टा गंगा, बोहावत हे चारो ओर।
राजा बनगे ये नेता मन, जनता होगे हे कमजोर।।

काबर अइसन होवत हे जी, काबर बढ़गे अत्याचार।
का का गलती हमन करत हन, सोच समझ के करव सुधार।।

धन बल जेखर हावै जादा, ओखर चलथे काबर जोर।
जनता रोवय करम ठठा के, कुर्सी पाथे करिया चोर।।

जेला होना जेल चाहिए, वोहू मन बइठे दरबार।
लूटत हावे आज देश ला, राजनीत के बने अजार।।

अपराधी मन नेता बन के, फैलावत हे भ्रष्टाचार।
कोन बचाही राजनीत ला, माते हावे हाहाकार।।

हमरो हावे दोष बहुत जी, हमी करे हन गलत चुनाव।
अपन ओट ला बेंच डरे हन, औने पौने करके भाव।।

कभू चुनत हन जात देख के, कभू धरम बर कर मतदान।
लालच मा पर वोट गवाथन, माते हावन कर मदपान।।

कभू योग्यता नइ देखन जी, जनहित कोन करत हे काज।
कोन मयारू माटी के हे, कोन चलाही बढ़िया राज।।

पढ़े लिखे विद्वान रहे  जे , करे देश के जे सम्मान।
नेता उही ल चुन के भेजव, जे हर सत बर दे दय प्रान।।

लोकतंत्र मा बहुत जरूरी, होथे जी जनता के ओट।
वोट करव जी बने विचारे, मन मा राखव झन जी खोट।।

हाथ जोड़ के बिनती करथव, सोच समझ करना मतदान।
संसद मन्दिर लोकतंत्र के, बने रहय ओकर सम्मान।।

आल्हा: करू करेला मोर कलम हे




करू करेला मोर कलम हे, करू करू मँय करिहौ बात।
रिस झन करहू मोर बात के, मँय जुगनू अँधियारी रात ।।


मोर कहानी  कहे समारू , इतवारा  हर करे विचार।
मंगलु सोचय गुनय बुधारू, मानय बात ल जानय सार।।


बदलत हावे आज जमाना, बदलत हावे सब व्यवहार।
देख जमाना जे नइ बदलय, वो मन पछवा जाथे यार।।


घर घर जाय दूध बेचइया, अउ मदिरालय आथे लोग।
भाजी वाला भूख मरे अउ, खाय कसाई छप्पन भोग।।


पढ़े लिखे मन घर ला त्यागे, निज स्वारथ  बूड़े दिनरात।
अनपढ़ बेटा दाई ददा ल, करके मजुरी देथे भात।।


अपने भाखा अपने बोली,बोले बर भी लगथे   लाज।
अंग्रेजी नइ आय तभो ले, गिटपिट गिटपिट करथे आज।।


भ्रष्ट आचरण करे कमाई, धन दौलत मा खोजय मान।
दुत्कारे सब दीनदुखी ला, बड़े बड़े ला देथे दान।।


बेरा नइये मनखे बर अउ, मोबाइल मा बाँटय ज्ञान।
सोसल मिडिया मा छाए हे, अउ भटकत हावे सन्तान।।


मनखे होगे आज मशीनी, मर गे हे सबके जज्बात।
बन के बइला पेरावत हे, पइसा के खातिर दिनरात।।


जिनगी के सब सुख  सुविधा बर, जोड़त हे साधन भरपूर।
मजा नहीं अइसन जिनगी मा, होवत हे सब सपना चूर।।

सोभन छन्द

सोभन छन्द 


हौसला रख पार जाबे, हस घिरे मजधार।
दूर होही तोर बाधा, मान झन तँय हार।।
हे बिपत होना जरूरी, जिंदगी बर रोज।
बइठ के जाँगर जुड़ाथे, राह दउड़त खोज।।


मुड़ ऊँचा के तोर आथे, रोज एक सवाल।
सोचथव रे आज होही,जिन्दगी खुशहाल।।
नइ सिरावय ये लड़ाई, जिन्दगी भर मान।
जब तलक तँय नइ पठोबे, साँस ला समसान।।


साँझ होगे राह देखत, मोर गे थक नैन।
राख होगे जलजला के,मोर सुख अउ चैन।।
देख लेते मोर कोती, हाँस के इक बार।
तोर आशा मा खड़े मँय जिन्दगी भर यार।।


मोर मन चट्टान कस हे, मँय न माँनव हार।
नइ करँव मँय काम कोनो , काकरो मनमार।
मस्त मनमौजी हरँव जी, फेर

विष्णुपद छन्द


ए अभिमानी गरब करे का, ये माटी तन के।
माटी मा मिलही ये चोला, सब माटी बन के।1।

काल लिखे हे अपन कलम मा, मरना सब झन के।
महुँ मिटाहूँ तहूँ मिताबे , पाट दिही खन के।2।

माटी गोटी जोर जोर के,  बनगे महल बने।
छोड़ छाड़ के जाना परही, रोवत मने मने।

पल भर के हेे ये जग मेला, छिन भर तोर मया।
सब चल देही छोड़ एक दिन, लागे नही दया।4।

कोनो सँग मा नइ जावय जी, अब मत समय गवाँ।
मिलखी मारत भूल जही सब, मिलही मीत नवाँ ।5।

हरिगीतिका: अटल जी ला श्रद्धांजलि

कर जोर के तोरे चरण, माथा नवाँ पइयाँ परँव।
हे नम नयन सुरता धरे, श्रद्धा सुमन अर्पित करँव।।
माटी हवे बड़ धन्य जी, तोरे असन पा लाल ला।
करके जतन तँय हर चले,भारत ऊँचा के भाल ला।।

लड़ते रहे बाहर भीतर, नइ हार माने हार के।
पीरा सहे अपने अपन, चिंता करे संसार के।।
जीवन मरण सुख दुःख सदा, सम जान के स्वागत करे।
तँय काल के भी गाल मा,हाँसत सदा चुम्बन धरे ।।

माँ भारती के लाल तँय, तोला नमन सत  सत हवे।
झुक के तिरंगा मान दय,  माथा हिमालय के नवे।।
चाहे रहौं मँय मत रहौं, सिरमौर ये भारत रहे।
ये विश्व गुरु भारत हरे, सँसार ला तँय हर कहे।।

होके अटल अविचल रहे, विपदा घलो मा नइ टले।
मँय हार नइ माँनव कभू ,ये गीत तँय गावत चले।।
कवि तोर कस कोमल हृदय,दृढ़ता रहे चट्टान कस।
नेता बने बेदाग  अउ,  तँय देश के पहिचान हस।।

बड़का करे सँसार मा ,तँय हर धरा के मान ला।
अउ बोल निज भाखा बनाये, देश के पहिचान ला।।
हर कंठ तोरे शब्द हे ,कविता सकल जग गात हे।
धरके अपन कोरा तको, माटी घलो ममहात हे।।

विपदा सहे, पीड़ा पिये, तब ले अटल धीरज धरे।
हर पल जिए तँय देश बर, तनमन अपन अर्पित करे।।
सुकुवा सहीं आगास मा, हावे अटल अब नाम हे।
हे पोखरण के बीर तोला आखरी परणाम  हे।।


हरिगीतिका

सिधवा हरन, बइला हरन, तँय चाब ले पुचकार ले।
रिस बात के मानन नहीं, जी भर तहूँ दुत्कार ले।
हम घर अपन मजदूर हन, मालिक हमर आने हरे।
छत्तीसगढ़ के भाग ला , परदेशिया गिरवी धरे।

💐💐💐💐💐

मत हार  के तँय बइठ जा, ये हार रद्दा जीत के।
काँटा घलो हा गोड़ के , रचथे कहानी बीत के।।
चाहे ठिकाना दूर हे, अब बिन रुके चलते चलो।
होथे उही मन हर सफल, जे उठ जथे गिर के घलो।।

हिम्मत करव डटके बने, कल के फिकर ला छोड़ दौ।
करके भरोसा आपके, कनिहा बिपत के तोड़ दौ।
कैसे मुसीबत हारथे ,तँय देख ले ललकार के।
अब कर उदिम बस जीत बर, मत हार मानव हार के।

☺☺☺☺☺☺

हे सरसती दाई माहूँ , बिनती करव कर जोर के।
तोरे सरन मा आय हँव, मद मोह बँधना छोर के।
अज्ञान के बादर छटय, अउ पाँख ला आगास दे।
मँय हँव परे अँधियार मा, तँय ज्ञान के परकास दे।

माँ सारदा है आसरा , देवी हरस वो ज्ञान के।
सत्मार्ग मा मँय चल सकव, रद्दा छुटय अज्ञान के।
लइका हरव मँय कमअकल, नइ आय मोला साधना।
माथा नवाँ के मँय करव, तोरे चरन आराधना।

हरिगीतिका: बरसा

सब जीव मन तडफत हवे, व्याकुल हवे संसार हा।
अब ताप मा तन मन जरय, आगी बरत हे खार हा।
तरिया सबे अब अउटगे, अउ खेत मन परिया परे।
तँय भेज दे अब नेवता, घन मेघ ला धरती तरे।

बरखा बने बरसे तभे, होही फसल हर धान के।
हम काम कर दे हन अपन, अब आसरा भगवान के।
नाँगर चले, जाँगर चले, बादर चले तब काम के।
सब खेत ला जोतत हवन, अब हम भरोसा राम के।

गीतिका छन्द गीत : आदमी के सामने का , आदमी का हारही ?


तँय डराके अब बिपत ले, बइठ झन मन मार के।
मुड़ नवा के काय जीबे, काय पाबे हार के।
आदमी के सामने का आदमी हा हारही।
जेन दे हे जिंदगानी , वो मुसीबत टारही।

तोर बल है साथ तोरे, कर करम कर जोर के।
चल तहूँ बन के नदी कस, पाँव बाधा तोर के।
तोर हिम्मत के रहत ले, कोंन बल फुफकारही।
कोंन हे बलवान अतका , जेन तोला मारही।

छाँव के तँय आस झन कर, घाम सब देही गला।
तोर तन के खर पछिना,नाप देही ताप ला।
हाथ मा थामे हथोड़ा, जेन कस के मारही।
देखबे पथरा घलो हा, मार खा चित्कारही।

अब जुलुम के जोर नइ हे, कर बगावत जीत ले।
जोर के तँय खांद जुड़ जा, तोर साथी मीत ले।
डोल जाही रे सिहासन , गाँठ कतको पारही।
अब जुलमी के रियासत, मेहनत हर बारही।

गीतिका छन्द गीत : आदमी ला चाहिए जी,आदमी बन के रहय।

लूट हक के देख चुप हे, सब सहय मन मार के।
हार मानय बिन लड़े ये, बात हे धिक्कार के।।
जान जावय पर डराके, अब गुलामी झन सहय।
आदमी ला चाहिए जी , आदमी बन के रहय।।

खार चुप हे खेत चुप हे, चुप सबे बनिहार हे।
कारखाना का हरे बस, लूट के भरमार हे।।
अब किसानी छोड़ काबर लोग मजदूरी करय।
आदमी ला चाहिए जी , आदमी बन के रहय।।

कोंन फोकट काय देथे, माँग मत कर जोर के।
स्वाभिमानी काम करथे, रोज जाँगर टोर के।।
चार रोटी बर कुकुर कस, अब गुलामी झन करय।
आदमी ला चाहिए जी , आदमी बन के रहय।।

हाथ हावे काम बर ता,बाँध के का राखना।
हक अपन ला पाय बर भी, पर तरफ का ताकना।
अब बगावत नइ करे ता,कोड़िहा जाँगर सरय।
आदमी ला चाहिए जी , आदमी बन के रहय।

बल करइया  हारथे जी, जीत हिम्मत पा जथे।
हौसला के सामने मा, बल घलो गिधिया जथे।।
का मरे के बाद होही, जेन करना अब करय।
आदमी ला चाहिए जी , आदमी बन के रहय।

गीतिका मुक्तक

हे खटारा फटफटी रे, अब सहारा तोर हे।
चार खरचा बाढ़ गे हे, कम कमाई मोर हे।।
रोज बाढ़े दाम काबर, कोंन जाने तेल के।
तँय चले सरकार जइसे, हम चलाथन पेल के।।

फूल जम्मो अब उजरगे, बाग सब वीरान हे।
लोग मन के लाज मरगे, गाँव भर समसान हे।।
मँय मया के बात बोलव, लोग बइरी हो जथे।
मोर रद्दा मा कलेचुप, को काँटा बो जाथे।।

काम करथन तोर मालिक, लोग लइका पालथन ।
तोर सुख बर अपन तन ला,घाम मा हम घालथन।।
माँग नइ पावन भले हक, पेट हमला टाँगथे।
मेहनत के बाद तन के ,भूख रोटी माँगथे।।

तोर माला तोर पोथी, राख ले तँय हाथ मा।
हम मया के बात करबो, लोग मन के साथ मा।
तँय धरम के नाँव ले के, बाँट डर संसार ला।
हम उठाबो खांद मा जी, अब सबो के भार ला।

चौपाई : छत्तीसगढ़ के पावन माटी



छत्तिसगढ के  माटी पावन।
चन्दन कस हावे मनभावन।
धान कटोरा छइयाँ भुइयाँ।
पहिली लागव तोरे पइयाँ।

महतारी के महिमा गावँव।
ये माटी ला माथ  लगावँव।
मँय गोहरावत मन के पीरा।
खावत मन ला घुन्ना कीरा।

हमरे भाखा बोली हमरे।
नइ हे कभू कहूँ ले कम रे।
काबर छत्तीसगढी तब ले।
कखरो मुँह नइ आवय हब ले।

संस्कृति हा छत्तिसगढ के।
हे दुनियाँ मा सबले बढ के।
तब ले काबर हमन भुलावन।
पर संस्कृति ला अपनावन।

छत्तिसगढ़िया सबले बढ़िया।
धान कटोरा जुच्छा हड़िया।
परदेशी मन बनके राजा।
रोज बजावय अपने बाजा।

भटकत रहिथन येती ओती।
नइ मिल पावय रोजी रोटी।
अपन गाँव अउ अपने घर मा ।
सपटे बइठे रहिथन  डर मा। 

इही नेता  अउ अधिकारी हे।
हम नौकर ये व्यापारी हे।
सिधवा बइला बनके रहिथन।
सबला दादा भैया कहिथन।


अपने घर मा हमन भिखारी।
घर भर ओकर हमर दुवारी।
कर मिठलबरा चुगली चारी।
लूट मचाथे सबझन भारी।

अपराधी मन करय सियानी।
 निचट लपरहा बनके ज्ञानी ।
कानून कायदा के संग खेलय।
बन के बपुरा जनता झेलय।


अब तो समझव अब तो जागव ।
 छोड़ अपन घर अब झन भागव।
घर सम्हालव घर मा रहिके।
सुख उपजे सब पीरा सहिके।

पढ़व लिखव सोंचव सँगवारी ।
कर लव पहिली ले तैयारी।
आघू आ  लव जुम्मेदारी। 
खुश होही  तब तो  महतारी।

तँय जग के बन पालनहारा।
भटकत हावस पारा पारा।
मार लबारी नेता बनगे  ।
ठगजग के तोर महल हा तनगे।

हरिगीतिका :बेंदरा आ के सहर

सब जानवर बेघर करे, जंगल तहीं , हा काट के।
कब्जा करे जंगल घलो,नरवा नदी ला  पाट के।
तँय नास दे पर्यावरण, गरहन लगाए छाँव मा।
हाथी तको,बघवा घलो , वन छोड़ आ थे गाँव मा।1


अब बेंदरा ,आ के शहर, उत्पात करथे टोरथे।
वो आदमी के मुड़ मा चढ़ नाचथे झकझोरथे।
हम पूँछथन, भगवान ले ,ये का तमाशा रोज के।
जब भूख लागे पेट मा,खाथे सबेेझन खोज के।


जंगल कहाँ हरियर हवे, चारा घलो पाही कहाँ।
तँय घर उजारे हस उखर, सब जीव मन जाही कहाँ।
अब जानवर मन तोर घर, आथे बचाये प्रान ला।
रोथस तभो तँय देख के , अपने अपन नुकसान ला ।


करनी अपन ,अब भोगबे , रोबे तहूँ पछताय के।
 जब भूख लगही पेट मा ,पाबे नहीँ कुछु खाय के।
टोटा सुखाही प्यास मा, पाबे पिये पानी नहीँ।
तँय सोच ले ,जंगल बिना, अब तोर जिनगानी नहीं।



रूपमाला

साँस मोरे जब जुड़ाए, तोर अचरा पाँव।
जब जनम लौं मँय दुबारा, तोर ममता छाँव।
मोर दाई  तोर बर मँय, हाँस के दँव प्रान।
हम रहन या मत रहन वो, तोर बाढ़य मान।। 


तोर सुरता अब बही रे, नैन बर बरसात।
ढेंकना कस सोय दसना, चाबथे दिन रात।
तँय करे चानी करेजा , साथ छोड़े मोर।
मँय उही रद्दा म करथौं , अब अगोरा तोर।। 


आज तक देखव न सपना, यार तोरे बाद।
मँय मया बर काकरो अब , नइ करँव फरियाद।
तोर सुरता ला सजाके,पूजथौं दिनरात।
रोज करथे मोर कविता, तोर ले अब बात।। 

हाँसती मुँह तोर चन्दा आज ले भरमाय ।
मोर ले झन पूछ मँय हा का मया मा पाय।
मँय बने बइहा मया के गीत गाथव तोर।
अउ तहीं हा प्यार ला खेलवार कहिथस मोर।

मन भितर के रोग जाने कोन बइगा हाल।
तोर हाँसी मोर होगे जान के जंजाल ।
का बतावव का हरे रे मोर मन के पीर।
 तोर माया मोर बर होगे हवे कश्मीर।

अब मया के मोल का हे, तोर बर तँय जान।
देख के सपना सदा मँय हारथव दिनमान।
का बिधाता खेल करथे , जान पाए कोन।
भाग मा काकर लिखाये , लेग जाए कोन।

मन भटकथे रे मरुस्थल, नइ मिलय अब छाँव।
खोजथौं मँय बावरा बन, अब मया के गाँव।
डगमगाथे मोहनी रे, मोर अब विस्वास।
कोन जाने कब बुताही, मोर मन के प्यास। 


तोर खातिर मोर जोड़ी, कोन पारा जाँव।
कोन तोरे घर बताही, कौन तोरे नाँव।
तँय बतादे सावरी रे, मोर सपना सार।
कोन होही मोर सोये, नींद के रखवार।। 


गाँव देथे तब सहर हर, पेट भरथे रोज।
गाँव हर बनिहार होगे, सहर राजा भोज।
गाँव सिधवा मोर हावे, अउ शहर मक्कार ।
आदमी के खून चूसे, रोज ये बाजार।। 

तोर बिन ये जिंदगानी, हे कुलुप अँधियार।
मोर जम्मो साधना ला, तँय करे साकार।
मँय उहाँ तक जा सकत हँव, हाथ थामे तोर।
भूमि ले अगास मिलथे, जब छितिज के छोर।। 


मोर गुरुवर के कृपा दे दिस हवे सद्ज्ञान।
मोह बँधना मा परे मँय, राह ले अनजान।
गुरु चरण मा मँय नवा के, राख दे हँव माथ।
भाग मोरो जाग गे हे, अब करम के साथ।।

ये चरन मा राख मोला , तँय बढ़ाये मान।
रोज सेवा कर सकव मँय, तोर हे भगवान।
तँय बनाये  मोर माटी आदमी  के रूप।
पोठ करदे तँय पका के, ज्ञान के दे धूप।।


मोर हे शुभकामना हो , जिंदगी खुशहाल।
आपके सूरज सही मुख, होय लालेलाल।
मोंगरा कस तोर खुसबू आज हे ममहाय
आज गुरुजी आप ला मोरो उमर लग जाय।


जान जाए फेर मोला, देश खातिर आज।
बात अइसन बोलना हे, खोल ले आवाज।।
 बाद मा बइरी ल होही, जे सजा तँय यार।
देश के गद्दार मन ला, आज गोली मार।।

जेन थारी खाय छेदय, अब उही ला लोग।
जेल मा हे फेर भोगे, रोज छप्पन भोग।
   कोन हे आतंकवादी, मन घलो के साथ।
   खोज के वो लोग मनला, आज कातव हाथ।

मोर माटी ला  उही मन, नइ  लगावै माथ।
जेन बैरी के मितानी, बर करत हे घात।
      साँप बन के लील देथे, देश के सुख चैन।
       अब गटारन खेलबो रे, हेर उखरे नैन।

छोड़ दे तँय आलसी ला, बात सुनले मोर।
मेहनत के संग आही,गाँव मा अब भोर।
   हमन शिक्षा  जोत घर घर,चल जलाबो यार।
      लोग लइका हमर पढ़ के, बन जही हुसियार।



खींच लानिस तीर सबला , तोर सुरता आज।
तोर सुग्घर गीत कविता, मोहनी आवाज।
कोन कहिथे तँय चलेगे, छोड़ के संसार।
गीत तोरे ले जही तोला समय के पार।

भीख नइ माँगय कभू भी आपले बनिहार।
हाथ ला दे काम के तँय, साल भर अधिकार।
  हम कमाथन टोर जाँगर ,दे अपन मन प्राण।
   हाथ मा छेनी हथौड़ी , देश नव  निर्माण।


कोन जनता के सुनत हे वोट दे के बाद।
बाढ़गे कांदी  भकाभक चूसथे सब खाद।
सब कमीशन  खात हे जी, बाँट के भरपूर।
  चोर नेता भष्ट अफसर,न्याय चकनाचूर।


कोन सच के राज खोलय, चुप हवे संसार।
जेन जनता  बर लडत जी, पोठ खावय मार।
 न्याय कारावास भोगय, हो जथे बीमार।
  जब कलम मजबूर हो के, नाचथे दरबार।


जेन ला रखवार राखन, हे उही मन चोर।
कोन जाने अब कहाँ ले, गाँव आही भोर।
पेज पसिया बर लड़त हम, जिन्दगी भर रोन ।
 मोर बाँटा के अँजोरी , लेग जाथे कोन ?


जोगनी बन जेन लड़थे, रात भर अँधियार।
वो बिहिनिया मान जाथे, रोशनी ले हार।।
कोंन जाने कब सिराही,देश मा संग्राम।
रार ठाने हे भरत हा, रोय राजा राम।।

गाँव मोरो आज होतिस, सब डहर खुशहाल।
अब किसानी मा कमाई, होय सालोसाल।
चाहिये ना गाँव ला जी, काकरो उपकार।
 बस फसल के मोल दे दय, अब बने सरकार।

गाँव देथे तब सहर हर, पेट भरथे रोज।
गाँव हर बनिहार होगे, सहर राजा भोज।।
गाँव सिधवा मोर हावे, अउ शहर मक्कार ।
आदमी के खून चूसे, रोज ये दरबार ।।


हाथ ला दे काम के तँय, साल भर अधिकार।
भीख नइ माँगन कभू हम हन भले बनिहार।।
 हम कमाबो टोर जाँगर ,दे अपन ये प्राण।
  हाथ धर छेनी हथौड़ी , देश बर निर्माण।।


साँझ दे के आन ला मँय हर बिसाथव घाम।
साँस चलही मोर जब तक नइ करँव आराम।।    
ले किसानी छोंड़  के आ  सहर मा तोर। 
 मँय किसानी ला करे बर लें उधारी तोर।
 ( कोन कर्जा ला चुकाही जान जाथे मोर।।)

     (  मँय किसानी छोड़ आ गें अब सहर मा तोर।)


हे शरद के पूर्णिमा मा, चंद्रमा   हर गोल।
आज चंदा हा धरे हे , रूप जी अनमोल।।
 हे जगत के जीव मन बर,मोहनी कस रात।
  ओस बन के आज अमरित, बरसथे बरसात।।


कैद होगे आज बचपन, अउ जवानी मोर।
होत हे काबर अकेल्ला, अब बुढापा तोर।।
कोन घर मा बाँध देथे , खींच के दीवार।
 आज मोबाइल तको तो, बाँटथे परिवार।।

मुड़ म बाँधे लाल पागा, डोकरा हरसाय।
आज नाती के बराती, बर बबा अघुवाय।।
 हे कहाँ अब डोकरी हा, डोकरा गे भूल।
 छोकरा बन अब गली मा, बाँटथे जी फूल।।


रूप अइसन हे सजाए, सालहो सिंगार।
लान दे ना डोकरी बर, डोकरा तँय हार।।
हे रचाए हाथ मेहदी, अउ महावर पाँव।
ओठ में लाली लगा के,घूमे सारा गाँव।।

सरसी छन्द

भक्ति भाव ला मन मा रखके, जोत जला दिन रात।
दुर्गा दाई  जिनगी बितगे , तोर आरती गात।।


हाथ जोर के बिनती  करथौ, सुनले मोर पुकार।
हर ले विपदा मोर देस के, दाई कर उद्धार।।


भूख गरीबी गाँव ल छोड़य, खेत खार आकाल।
मिहनत करने वाला हाथ ल, कर दे माला माल।।


अब झन आये कभू बिमारी, मनखे रहे निरोग।
साफ सफाई अपनाये सब, मोर देस के लोग।।


भारत के सेना ला बल दे, बइरी के बल तोड़।
आतंकी मन थरथर काँपय, भागय सीमा छोड़।।


स्वाभिमान जनता के जागय, होवय देस विकास।
कर दे दाई भ्रष्टाचारी, नेता मन के नास।।


भेद मिटय बेटा बेटी के , मानन एक समान।
सब नर नारी संग चले जी, करय देस गुणगान।।


धरम जात के झगरा टूटय, बड़े सबो मा प्यार।
शोषन करने वाला मन के, डूब जाय व्यापार।।


मिट जाए अज्ञान अँधेरा, सजग रहे इंसान।
दारू दंगा छोड़ बुधारू, बन जाय बुद्दिमान।


पूरब ले सूरज कस निकलय, खुशहाली के भोर।
चहकय सोनचिरैया चिव चिव, देस म चारो ओर।

मोर छत्तीसगढ़ी गीत: छन्न पकैया छन्द,

मोर छत्तीसगढ़ी गीत: छन्न पकैया छन्द,

छन्न पकैया

छन्न पकैया छन्न पकैया, आज काल के राधा।
लाज सरम ला नइ जाने रे, फरिया पहिरे आधा।


छन्न पकैया छन्न पकैया, रोज नवा घोटाला।
देस ल खादिन बेंच सड़क मा, देस बचाने वाला।


छन्न पकैया छन्न पकैया, मजा म नीरव मोदी।
पेट भर बर हम ला संगी, खनना परथे गोदी।


छन्न पकैया छन्न पकैया, अब सुराज ह आ थे।
सस्ता चाउर पा के जनता, पी पी के बौराथे।

छन्न पकैया छन्न पकैया, मनखे सीधा साधा।
बखत परे मा हो जाथे जी, चतुरा सबले जादा।

छन्न पकैया छन्न पकैया, जीव हा मोर जुड़ागे।
 रानी ताेरे दरसन पा के मन मोरो हरियागे।

छन्न पकैया छन्न पकैया, मिडिया मा हे चर्चा ।
भारत के भविष्य बेचागे, लीक होत हे पर्चा ।

छन्न पकैया छन्द,

छन्न पकैया छन्न पकैया, ये जग आना जाना।
चार साँस के बोहे गठरी, मरघट तक पहुचाना।।

छन्न पकैया छन्न पकैया,तन माटी के ढ़ेला।
जिनगी भर हे तोर मोर अउ, जाबे चले अकेल्ला।

छन्न पकैया छन्न पकैया, मरबे रे अभिमानी।
तन के गरब करे रे काबर, लबरा हे जिनगानी।

छन्न पकैया छन्न पकैया, नदिया कस हे पानी।
बोहावत ले जीयत रहिबे, रुके बने कहानी।

छन्न पकैया छन्न पकैया,दुनियां एक झमेला।
ये मोह माया रिस्ता नाता, दू दिन के सब मेला।

छन्न पकैया छन्न पकैया, सबके आही पारी।
पाके पाके आमा झरगे, कच्चा के तैयारी।


सार छन्द: जाँगर टोर कमाबो

अब तो संगी जुर मिल के सब, जाँगर टोर कमाबो।
भूख गरीबी सँग लड़ लड़ के, मया पिरित बगराबो।1।

झगरा मिटही गली गली के, सम्मत के दिन आही।
गाँव हमर बनही फुलवारी, महर महर ममहाही।2।

ऊँच नीच के खचवा डिपरा, पाट नहर सिरजाबो।
रापा धर के माटी गोटी, खाँच खाँच बगराबो।3।

नवजवान हम अपन पाँव बर, नावा सड़क बनाबो।
घर घर जा के दुख पीरा के, काँटा खुटी जराबो।4।

सार छन्द : होरी

राधा बोलिस मोहन काली, होरी खेले आबे।
रास रचाबे हमर गाँव मा, रंग गुलाल उड़ाबे।

वृषभानू के राज दुलौरिन, मोर गाँव बरसाना।
करिया कारी कालिंदी के, तिरे तिर चले आना।

रद्दा देखत खड़े रहूँ मँय, फरिया पहिरे सादा।
आना परही काली तोलि, भुला जबे झन वादा।

मनमोहन हा हाँसत बोलिस, आहूँ काली राधा।
कइसे तोला भुला जहूँ रे, तोर बिना मँय आधा।

जब जब मोला सुरता करबे, अपन तिर म पाबे।
होरी होही ब्रज मा अइसे, जीयत भर सुरताबे।

गोरी मोरे रंग रंग के, लाल लाल हो जाबे।
बन जाहूँ मँय तोरे राधा, किसना बन इतराबे।








छप्पय छन्द

नाली भरगे हाय, सरे कस बस्सावत हे।
करही कोन ह साफ, समझ मा नइ आवत हे।
कचरा के हे ढ़ेर, फेर ये झिल्ली पन्नी।
लाखों होगे पार, फेक के चार चवन्नी।
कचरा भ्रष्टाचार के, लेस देव चतवार के।
बहिरी धर सब साफ कर, बेरा हे इंसाफ कर।1।

वादा के भरमार, चार दिन चलही संगी।
टकला बर सरकार, लान के देही कंघी।
अब चुनाव हे पास, खास हो जाही जनता।
नेता आही गाँव, पेट भर खाही जनता।
मुद्दा के हर बात ला, दार साग अउ भात ला।
मतलब बर भरमाय सब, जनता के जज्बात ला।

रचरच रचरच आय, सड़क मा बइला गाड़ी।
गाँव गवतरी जाय, करय अउ खेती बाड़ी।
घन्नर घेंच बंधाय, बाजथे घनघन घनघन।
दउड़त सरपट जाय, हवा कस सनसन सनसन।
आज नंदागे कालके , बइला गाड़ी छाँव रे।
मोटर गाड़ी मार हे, तब ले सुन्ना गाँव रे।

आसा अउ बिस्वास, माँग के कोन ल मिलथे।
अपन हाथ अउ गोड़, चला के जिनगी खिलथे।
होबे जाँगर चोर, नदी मा दीया ढिलबे।
फुटय करम हा तोर, आन के चादर सिलबे।
छोड़ आलसी बीर बन, करम कमा रणधीर बन
पोंगा पण्डित माँग के, भोग लगाथे भाँग के।

आँटे पैरा डोर, बइठ के पैरा जिनगी।
कभू बेच के चाय, तलत हे भजिया जिनगी।
करम करे का लाज, शुरू कर बढ़बे आगे।
दुनियाँ हे रफ्तार आज सब दाउड़े भागे।
चलत चलत सागर मिलय, रुके धार बसाय रे।
ठीहा मिलही ठेल के, ठेलहा धोखा खाय रे।

रोना रोये आज, करम के गठरी बाँधे।
संसो के तँय साग,ऊँ जिनगी भर राँधे।।
काबर लगे लाज , काम तो करे ल परथे।

बनके जाँगर कोड़िया, सो सो उमर बिताय जी।
बोझा होगे जिन्दगी, बिरथा जान गवाय जी।

हमन भूखर्रा तान, कमा के खाथन तब ले।
गड्थन सीधा जाय, गोड़ मा काँटा हब ले।।
उघरा हम रह जान, ढाँक के तन दूसर के।
मरथन भूख मा फेर, नहीं हक मारन पर के।।
छत्तीसगढ़िया सोज रे, करथन बिनती रोज रे।
रोज मनाथन जोग रे, दे के छप्पन भोग रे।

मया ल काबर मोर,नहीं तँय जाने बइरी।
मन मा करते सोर, पाँव के तोरे पइरी।।
निष्ठुर नैना तोर, करेजा घायल होगे।
कहिथे पूरा गाँव, टुरा अब पागल होगे।।
पीरा बाचे हे अभी,ले के जाही जान रे।
सुरता तोरे अब बही, छोड़े नही परान रे।।

जब्बर कर गोहार , उठा के हाथ अपन के।
माँगे बिन अब यार, मिलय हक नही सबन के।
कलजुग के भगवान, यही मन होगे संगी।
मोठ्ठा बर अनुदान, दुबर बर भारी तंगी।
जब सब जनता गाँव के, पनही धर के पाँव के।
हकआपन माँगथे, खूंटी मा टोपी टाँगथे।

अमृतध्वनि छन्द

आ के मँय दरबार मा, हे हनुमन्ता तोर ।
पाँव परँव कर जोर के, सुन ले बिनती मोर।।
सुन ले बिनती, मोर पवनसुत, बिपदा भारी।
कँरव आरती, थाल सजाके, तोर पुजारी।।
फूल पान मँय, लाने हावव, माथ नवा के ।
दे दे दरसन, करके किरपा, तीर म आके।।

फागुन आगे ले सगा, गया ले तहूँ हा फाग।
बजा नगारा खोर मा, गा ले सातो राग।
गा ले सातो, राग मतादे, हल्ला गुल्ला।
आज बिरज मा, बनके राधा, नाचय लल्ला।
अब गोरी के, कारी नैना, आरी लागे।
मया बढाले, नैन मिलाले, फागुन आगे।

बोली बतरस घोर के, मुचुर-मुचुर मुस्काय।
मुखड़ा है मनमोहिनी, हाँसत आवय जाय।।
हाँसत आवय, जाय हाय रे, पास बलाथे।
तीर मा आ के, खन खन खन खन , चुरी बजाथे।।
नैन मटक्का, मतवाली के, हँसी ठिठोली।
जी ललचाथे, अब गोरी के, गुरतुर बोली।।

काँटा बोलय गोड़ ला, बन जा मोर मितान।
जन सेवक ला आज के, जोंक बरोबर मान।।
जोंक बरोबर, जान मान ये, चुहकय सबला।
बनके दाता, भाग्य विधाता, लूटय हमला।।
अपन स्वार्थ मा, धरम जात मा, बाँटय बाँटा।
हमर राह मा, बोवत हे जे, सब दिन काँटा।

फुलवारी मा मोंगरा, महर महर ममहाय।
परमारथ के काज हा, कभू न बिरथा जाय।।
कभू न बिरथा, जाय हाय रे, बन उपकारी।
प्यास बुझाथे, सबला भाथे, बादर कारी।।
मरते सैनिक, करथे सबके, पहरेदारी।
तभे वतन हा, ममहाथे जी, जस फुलवारी।।

लबरा मन हर बाँटही, आस्वासन के भात।
रहय चँदैनी चार दिन, फेर कलेचुप रात।।
फेर कलेचुप, रात ह कारी, तोर दुवारी।
अब छुछुवाही, सब झिन आही, आरी पारी।।
मार मताही, खलबल खलबल, सबझन डबरा।
दे दे चारा, जाल फेकही, नेता लबरा।।

नारी ममता रूप हे, मया पिरित के खान।
घर के सुख बर रात दिन, देथे तन मन प्रान।।
देथे तन मन, प्रान लगाके, सेवा करथे।
सुख दुख सहिथे, अउ घर भर के , पीरा हरथे।।
दाई-बेटी, बहिनी- पत्नी, अउ संगवारी।
अलग अलग हे, नाम फेर हे, देवी नारी।

कुण्डलिया


जब जब मनखे हारथे, खुले जीत के राह।
गिर उठ कर के हौसला, खोज नवा उत्साह।
खोज नवा उत्साह, चाह ला पंख नवा दे।
झन जुड़ाय अब आग, रोज तँय  फूँक हवा दे।
मारे जब झटकार, हाथ ले सकरी खनके।
बँधना टोरय खास, आस कर जब जब मनखे।1।

तोरे बस मा राम हे, झन तँय कर आराम।
जिनगी माँगे तोर ले, कर ले बेटा काम।।
कर ले बेटा काम, भाग ला अपन गढ़ ले।
खेत खार ला देख ,संग मा थोकुन पढ़ ले।।
पानी कस हे धार, मेहनत दउड़य नस मा।
हार जीत सब यार, रही तब तोरे बस मा।2।

खाथे मलाई रात दिन, नेता मन हर खास।
आजादी के नाव ले , आजो हमला घाँस।।
आजो हमला घाँस, फाँस हिरदय मा गड़थे।
निज स्वारथ ल साध, आज सब आघु बढ़थे।।
जनता है बर्बाद, बढ़े, ऊँच नीच के खाई।
मरे भूख से देश, आज वी खाय मलाई।3।

चाटी चुरगुन गाय गरू, अपन पेट बर खाय।
वोखर जग मा नाव हे, परहित जे मर जाय।।
परहित जे मर जाय, उही इतिहास म जीथे।
नीलकण्ठ बन जेन, जेन जगत के जहर ल पीथे।।
धन दौलत अउ नाम,सबो हो जाही माटी।
मानुस पर बर आय, अपन बर जीवय चाटी।4।

रोटी है संसार मा, भूखे बार भगवान ।
सुरुज उगे जब पेट मा, तन मा तब दिनमान।।
तन मा तब दिनमान, रात हा घलो सुहाथे।
मिहनत कर इंसान , पेट भर अन ला खाथे।।
सबो हाथ ला काम, लाज बर मिलय लँगोटी।
किरपा कर भगवान, सबो ला  दे दे रोटी।5।

बइठे आमा डार मा, कउवा बोलय काँव।
कोन गली हे कोयली, सुन्ना परगे गाँव।।
सुन्ना परगे गाँव, छाँव हा घलो नँदागे ।
बिरवा कटगे हाय, गाँव मरघट्टी लागे।।
करे नहीं अब बात, रहे सब मुँह ला अइठे।
चौरा हे न चौक, कहाँ अब मनखे बइठे।6।

दुर्गा दाई आज तँय, धर चण्डी के रूप।
बइरी मन के नास कर, रणचण्डी तँय झूप।।
रणचण्डी तँय झूप, गाँज दे मुड़ के खरही।
लहू बोहावय धार, तोर जब बरछी परही।।
बढ़गे अतियाचार, तहीं हा हमर सहाई।
आजा रन मा आज, मोर तँय दुर्गा दाई।7।

हर दफ्तर मा मातगे, चिखला भ्रष्टाचार।
सरकारी अनुदान तँय, कइसे पाबे यार।।
कइसे पाबे यार,चढ़ावा बिना चढाये।
बाबू साहब लोग, सबो हे जीभ ल लमाये।
का करबे प्रसाद, फँसे एखर चक्कर मा।
घुस खाये के होड़, मचे हे हर दफ्तर मा।8।


विपदा तोरे जिंदगी , के करही सिंगार।

तपके सोना के सहीं, पाबे तहूँ निखार।

पाबे तहूँ निखार, हार के झन थक जाबे।

रेंगत रेंगत यार, एक दिन मंजिल पाबे।

आसा अउ विस्वास, राख के मन मा जोरे।

हिम्मत जाही जीत, हारही विपदा तोरे।9।


पनिहारिन मन  हॉस के , तरिया नदिया आय।

घाट घठौन्डा फूल कस,महर महर ममहाय।

महर महर ममहाय, गाँव के गली गली हा।

देखय अउ सरमाय, फूल के कली कली हा।

सुख दुख अपन सुनाय, चार झिन सँगवारिन मन।

हाँसत आवय जाय, आज जब पनिहारिन मन।





रोला

जिनगी के दिन चार, बात ला मोरो सुन ले।
माया हे संसार, आज तँय एला गन ले।
        जीयत भर के नाँव, तोर पल मा मिट जाही।
        जोरे धन भरमार, काम नइ तोरो आही। 1।

रीसा झन तँय आज, बात तोरे माने हँव।
लच्छा खिनवा हार, तोर बर लाने हँव।
         तँय जिनगी मा मोर, मया रस  घोरे हस।
         सुख राखे परिवार, मोर ले गठजोरे हस।2।

भूखन लाँघन लोग, कभू झन कोनो सोवय।
बाँधे पथरा पेट, नहीं अब लइका रोवय।
         दे दे सबला काम, सबो ला रोजी-रोटी।
         किरपा कर भगवान, मिलय सब झन ल लँगोटी।3।

नेता खेलय खेल, बजावै  जनता ताली
अब तिहार तो रोज, मनावै जनता 
खाली
        सस्ता चाउर-दार, पढावै हमला पट्टी।
        ले लय सबला लूट, खोल के दारू भट्ठी।

काँटा बों के यार, फूल तँय कइसे पाबे।
अपन करम के भार, तहूँ हा इहें उठाबे।
        पर पीरा बर रोय, मान वो जग मा पाथे।
        उदिम करइया हाथ, भाग ला खुद सिरजाथे।

मछरी काँटा मोर, घेच मा अइसे फँसगे।
आवय- जावय साँस , नहीं अब  जउहर  भइगे।
         होगे आँखी लाल, लार मुँह ले चुचुवावय।
         काबर खाये आज, सोच के मन पछतावय।

जूता चप्पल मार, फेक के वो मनखे ला।
खन के गड्ढा पाट, चपक दे माटी ढेला।
        काम करे न काज, रोज जे मार लबारी।
         मनखे मनखे भेद, करे स्वारथ बर भारी।

कहाँ रिहिस हे बात, करे के दारू बन्दी।
धान पान के भाव, घलो तँय मारे डंडी।
        मिठलबरा तँय मार,लबारी मन भरमाये।
        भूखन जनता देख, पेटभर कइसे खाये।
        

कइसे मरय  किसान, कभू नइ सोंचे काबर।
लउठी धर के देख, फाँद के बइला नाँगर।          गुंगवावत हे तोर , करम के गांजे खरही।
       अब चुनाव हे आज, लबारी भारी परही।
        

उल्लाल ३

चल जोड़ी अब बाजार मा, लाली भाजी बेच के।
मँय पैरी लेहव गोड़ बर, अउ माला ला घेच के।।

जा गोटी सुरता के गड़य, जोही तोरे पाँव रे।
तँय किंदर  दुनियां भले, फिर आबे अब गाँव रे।

उल्लाला 2

कीमत मनखे के कहाँ, महिमा पइसा के जहाँ।
मानवता ह नदात हे, मनखे मनखे  खात हे।।

जंगल के सब जानवर, आवत जावत हे सहर।
पछतावत मन मार के, जंगल सबो उजार के।

जहर हवा मा घोरथे, आघु पाछु डोलथे।
रोटी रोटी बोलथे, अउ मनखे ला तोलथे।

मोर गाँव के डोकरा, संग संग मा छोकरा।
खाये जाथे ओखरा, खाथे मिलके बोकरा।

तिवरा भाजी राँध के, भउजी भेजे बाँध के।
भइया खावय चाट के, सबो मया ला बाँट के।।

उल्लाला 1

बिनती सुन ले मोर प्रभु, करबे तँय उद्धार जी।
पालनहारी जान के, आये हँव मँय द्वार जी।।

नहीं नहीं कोई कहे, कोई दय दुत्कार रे।
माँग-माँग के जिंदगी, लगही बेड़ापार रे।।

सुन्दर तोरे सुन्दरी, रुप रंग अउ चाल वो।
माते हाँवव देख के, हो गे हँव कंगाल वो।।

मूरख तन के का गरब, बिरथा एखर प्रीत रे।
माटी माटी मा मिलय, इही जगत के रीत रे।।

माटी हो गे हे इहाँ , बड़े-बड़े बलवान मन।
का संगी धन के गरब, माटी के इंसान मन।।

मनखे मनखे एक हे, छोट बड़े न होय जी।
माटी फल तोला दिही, जइसे बिजहा बोय जी।।

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